पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५२

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खनखनाना खपड़झार खनखनाना--क्रि० स० 'खन' 'वन' योन्द उत्पन्न करना । जैसे- वृद्धि होती है और धान्य से कोश और भांडार दोनों पूर्ण | " रुपया खनखनाना। होते हैं। पर यदि प्रदेश बहुत मूल्यवान् पदार्थों की खानों- खनधक @-संवा पुं० [अ० खदक] दे० 'खदक' । ३०-वनधक जल वाला हो तो वही अच्छा है। 1. कंन ल . समीर सुभ लूह दनावत ।--प्रेमघन॰, भा०१ खप-संवा पुं० [अनु॰] किसी चोखी या पतली धारदाय वस्तु का १०१०॥ शरीर या गीली मिट्टी आदि में घुसने का शब्द । स०-उन्होंने खनन-संच पुं० [सं०] १. खोदने खनने का कार्य । उ० खनक सूई में दवा भरी और निश्चित स्थान पर खप से सुई मारी। -किन्नर०, पृ०१६।। किए जा कर कनन ।--दैनिकी, पृ० ३० । २. गाड़ना या खनियाना- क्रि० स० [हिं० खान या खाली] १. रिक्त करना। दवाना (को०)। खाली करना। २. खनना खिोदना। खननहारी@-वि० [सं० खनन+हि० हारी (प्रत्य॰)]१. खोदने- खनी-संशा श्री० [सं० दे० 'खनि' (को०]] _वाली । २. नाश करनेवाली । उ०--सो नंदकुल की खननहरी खनोना -क्रि० स० [हिं० खनना] खनना । खोदना । उ-राधे बुद्धि नित मो मैं रहे 1-भारतेंदु ग्र०, मा० १, पृ० १५७ । कत निकुंज ठाढ़ी रोवति । इंदु ज्योति मुखारविंद को चकित खनना@t-कि० स० [सं० बनन] १. खोदना । उ०-(क) च दिणि जोवति । द्रुम शाखा अवलं व वेलि गहि नख सों कीन्हेसि लोवा इंदुर चाटी । कीन्हेचि दहुत रहैं खनि माटी। 'भूमि खनोवति । मुकुलित कच तन धन की प्रोट व असुवन ., -जायसी (शब्द०)। (क) कूप खनि कत जाय रे नर जरत चीर निचोवति । सूरदास प्रभु तजी गर्व ते भये प्रेम गति भुवन बुझाय। सूर हरि को भजन कार ले जन्म मरण गोवति ।-सूर (शब्द०)। नसाय । -सूर (शब्द०)। २. कोड़ना। खन्ना--संज्ञा पुं० [सं० खनन = काटना] १. चारा काटने का स्थान । | खनयित्री-संक्षा चौ० [सं०] खंती नामक अौजार । २. खत्रियों की एक उपाधि । खनवाना--क्रि० स० [हिं० खनना] खनना का प्रेरणार्थ रूप । खपचा-संज्ञा पुं० [तु० कमचा] १. बाँस की पटरी या लकड़ी का - किसी को खनन के काम में प्रवृत्त करना। पटरा । उ०—ऐसा. पहलवान था कि बस मैं क्या कह। इधर देखो यह खपचे (हाय से दिखाकर) यह कल्ला ठल्ला।- ख-वारा-वि० [हिं० खन+वारा] खनकनेवाला । खन् खन् करने- फिसाना०, भा०३, पृ० १७१।२. लकड़ी की कलछी या .वाला । 30-नख के गढ़ाइ दक गोखरू, खनवारे की छल्ला पलटा। छाप ।-पोद्दार अभि० न०, १०८७७।। खनहन-वि० [सं० क्षीण+ हीन] १. दुबला पतला। कमजोर । २. खपचा खपची-संज्ञा सी [तु० कमचो] १. वांस की पतली तीली । कमठी। जिसमें भद्दापन न हो। खूबसूरत । सुदर । जैसे,--बनहन २. कवाब भूनने की सीख या सलाई । ३. वास को वह , पतली पटरी जिससे डाक्टर या जर्राह टूटा हुया अंग बांधते |: मुखड़ा। | खनाई-संभा श्री० [हिं० खनना] १. खनने के काम की मजदूरी। हैं। ४. कोड़ । गोद। २. खनने की स्थिति या क्रिया । क्रि० प्र०-भरना=प्रालिंगन करना । खनाना-क्रि० स० [हिं० खनना का प्रे० रुप] दे० 'बनवाना'। खपच्चा'-संज्ञा खी हि० खपची| दे० 'खपची'। उ०.-बांस की - उ-जाय खनावर सागर साता।-फबार सा०, पृ० १७।। खपच्चियों पर लगे गन्ने के टुकड़ा पर मुनाफाखोरी वंद करो।-अभिशप्त, १०४३ सनि-संवा बी० [सं०] १. रत्नों की खान । २. गुफा । कदरा। ३. खपच्ची-वि० बाँस की पतली खपची सा अर्थात्-दुबला पतला। गर्न । गड्ढा (को०)। दुर्बल। खनिक-संवा पुं० [सं०] दे॰ 'बनक' (को०] । खपट'-वि० [हिं० खपड़ा] खपड़े की तरह शुष्क । अत्यधिक बढे । खनिका-संवा सी० [सं०] तालाब [को०] । उ०-हीरा गया तो देखा कि अब्बासी और बूढ़ी खपत खनिज-वि० [सं०] खान से खोदकर निकाला हुआ। जैसे, मुगलानी में गलखप हो रही है।-फिसाना०, भा० ३, - खनिज पदार्थ । पृ०२१४। __ खनिता-संशा पुं० [सं०] खनने या खोदनेवाला व्यक्ति [को०)। खपटा-संशा पुं० [हिं० खपड़ा) दे० 'खपड़ा। खनित्र, खनित्रक-संवा पु० [सं०] खंता नाम का खोदचे का खपटी --संशा स्त्री हि० खपड़ा] १. छोटा खपड़ा। २. तखते के औजार । गनी। छोटे छोटे टुकड़ जो कड़ियों क वीच मे मा इनावदी के लिये | खानत्रिका-संवा स्त्री० [सं०] छोटा खंता या गंनी को०] । ' जड़े जाते है। | खानमोग-संशा पुं० [सं०] वह प्रदेश या उपनिवेश जिसमें धातुयों खपड़शारा-संहा पुं० [हिं० खपड+aरना किसानों को एक रसमा " की खाने हो और जहाँ के निवासियो का निर्वाह खानों में विशेष-प्रति वर्ष पहले पहल कख पेरने के समय यह रसम की काम करने से ही होता हो। जाती है । इसमें ब्राह्मणों और गरीबों को नया रस पिलाया -: विशेष कौटिल्य न साधारणतः खनिभोग' की अपेक्षा धान्य जाता है और थोड़ा गुड़ बनाकर देवता के निमित्त प्रसाद पूर्ण प्रदेश का अच्छा कहा है, क्योकि खानो स केवल कोथ की वाटा जाता है।