पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५२०

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चौपखा १५६६ चौपाई सेव। दीन दयानिधि भेव अभव। मम दिशि देखो यह चीपर-संशा स्त्री० [हिं० चौपड़ है 'चौपड़। यश लेव। . चीपर - स्त्री० [हिं० चौपढ़ (= धौसर के सानेवाला प्रांगन)] चौपखा-संशा पुं० [हिं० को (चार)+सं० पक्ष, हिं० पाख ] प्रांगन । प्रांगण । उ०- स्यामगौर कर मूदरी हीरन की जु परिजा । चहारदीवारी। उदोत । मनो मदनपुर चौपर दीपमालिका होत !-व्रज ग्रं, चौपगा-संज्ञा पुं० [हिं० चौ+ पग] चार पैरों वाला पशु । चौपाया। , . पृ०६६। चौपट'--वि० [हिं० चौ (चार)+पट (फियाड़ा), या हिं० चीपरतना-कि० स० [हिं० चौ (= चार)+परत+ना (प्रत्य०)। चापट ] चारों ओर से खुला हुमा । अरक्षित। कपड़े प्रादि की तह लगाना । कपड़े पादि को चारों पोर से . क्रि० प्र०-छोड़ना। कई फेर मोड़कर परत ठाना। . चौपट - वि० [हिं० चौ (= चार)+पट (= सतह) तात्पर्य, चारो चौपरि -संजा स्त्री० [हिं० चौपा] 20 चौपद'। उ०-मनपति तरफ से वरावर या विपरीत(=-नष्ट)] नष्ट भ्रष्ट । विध्वस । सोहत स्माम दिग सरमुति राधसंग । दंपतिहित संपति सहित तवाह । बरवाट । सत्यानाश । उ०—जो दिन प्रति महार फर खेलत चोपरि रंग-ग्रज पं०, पृ०६५। सोई । विस्व बेगि सब चौपट होई 1-मानस, १११८० चौपल-संज्ञा पुं० [० चतुएफसक] चोपत नाम का परयर जिसपर यौक-चौपट घरमा जिसके काहीं पहुंचते ही सब कुछ नष्ट भ्रष्ट्र पुम्हार का चाक रहता है। हो जाय । सन्जकदम । चौपटा । चोपहरा यि-[हिं० चौ (=पार)+पहर] १ चार पहर का।। चौपटहा-वि० [हिं० चौपट+हा (प्रत्य॰)] [वि० सी० चौपटही] चार पहर संबंधी १२.पार चार पहर के अंतर का। चौपट करनेवाला । नष्ट करनेवाला । सर्वनाशी। चौपटा-वि० [हिं० चौपट] चौपट मारनेवाला । नाश करनेवाला। मुहा०-चौपहरा देना=चार पार पहर के धतर पर घोड़े से - काम बिगाड़नेवाला । सत्यानाशी। काम लेना। चौपटानंद---वि० [हिं० चौपटा+नंद] अत्यंत सत्यानाशी । जिसका चौपहल'-संदा ० [हिं० पौ+ पहल] चार पहल या पाश्र्व। .. - अागछ बुरा हो । चौपहल-वि० [हिं० चौ+फा०पहलू, मि० म० फलक] जिसके चोपड़-सँचा सौ. [सं० चतप्पट, प्रा० चउप्पट ] १. चौसर नाम का चार पद्दल या पार हों। जिसमें लंबाई, चौड़ाई पौर मोटाई खेल । नर्दवाजी। २. इस खेल की बिसात पर गोटियां मादि। . हो । वर्गात्मक । २. पलंग आदि की यह बनायट जिसमें पौसर के से याने चौपहला-पि० [हिं० चौपहल-पा (प्रत्य॰)] दे "चौपहल'।.. बने हों। ४. शांगन की बनावट जिसमें चौसर के याने चापहला-वि० [हिं० चौपहल+था (प्रत्य॰)] एक प्रकार का । बने हों। डोला । वि० दे० 'चौपाल ५'। चोपता-संग खी० [हिं० चौ (चार)+परत] पापड़े की तह या चौपहलू-वि० [हिं० चौपहल+ (प्रत्य॰)] २० 'चौपहला। . - घड़ी जो लगाई जाती है। चौपहिया -वि० [हिं० चौपहिया चार पहियों का । जिसमें चौपत-संगा डी००'चौपतिया'। चार पहिए हों। चौपत--संश पुं० पत्थर का यह टुकड़ा गिसमें एक कील लगी रहती चोपहिया-संसाधी चार पहियों की गाड़ी। हैं और जिसपर पुम्हार का चाक रहता है। चौपहलू -वि० [हिं० चौपहला] ६० 'चौपहला' 130--हापनि चौपतना-मि० स० [हिं० चौपत से नामिक धातु तह लगाना। चारि चारि चूरी पाहनि इफ सार पूरा पौपदिसू इक टक रहे परत लगाना। (कपड़े आदि को)। .. हरि हेरी।-स्वामी हरिदास (शब्द॰) । चोपताना - मि० स० [हिं० चौपत] कपड़े प्रादि की तह लगाना। चौपही-संशा श्री० [हिं० चौपाई] दे० 'चौपाई' । उ०-कथा . घड़ी लगाना। संसकृत सुनि बाछु चोरी। भाषा बोधि चोपही जोरो।- चौपतिया ---मंधा सी० [हिं० चौ+पती] १. एक प्रकार की घास : माधवानल०, पृ. १८७। . . . . जो गेहूं के खेत में उत्पन्न होकर फसल को बहुत हानि पहुंचाती चौपा-संज्ञा पुं० [.. चतुष्पाद ] दे० 'चौपाया। । ... हैं । २. एक प्रकार का साग । उटंगन। ३. कशीदे प्रादि में पापा ., . वह बूटी जिसमें चार पत्तियां हों। प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं। इसके बनाने में केवल द्विकत पौर विकल का ही प्रयोग होता है । इसमें किसी त्रिकत . चौपतिया-वि० १. चार पत्तियोंवाला । २. (कशीदा) जिसमें ... के बाद दो गुरु और सबसे अंत में जमण या तगरण न पड़ना . चार पत्तियां दिखलाई गई हों।.., . चाहिए । इसे रूप चौपाई या पादाकुलक भी कहते हैं । चौपथ-संशा पु० [पुं० चतुष्पथ] १. चौराहा । चौरस्ता । चौमुहानी। -ससा पु० [पु० चतुष्प था . चाराहा । चारस्ता । चामुहाना। विशेष-वास्तव में चौपाई (चतुष्पदी) वही है जिसमें चार .. २. चौपत नाम का पत्थर जिसपर चाक रहता है। ... चरण हों और चारों चरणों का अनुपास मिला हो । जैसे,-. चौपदं -- संज्ञा पुं०.{० चतुष्पद] चार पैरों वाला पशु । चौपाया। छुप्रत सिला भइ नारि सुहाई । पाहन तें न काठ कठिनाई। . चोपयासुंदा पु० [हि हौपाया] दे चिौपाया। तरनिज मुनिधरनी होइ जाई । वाट् परइ मोरि जावड़ाई। ..