पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५२२

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चौबाइन ___ चौमुखा । चौबाइन-संज्ञा स्त्री० [हिं० चौबे ] चौवे को भी। चौभी -संधा स्त्री० [हिं० चोभना ] नांगर या नगरा में मिला हुमा चौबाई---संक्षा नौ० [हिं० चौ+वाई (हवा)] १. चारों ओर से हल का वह भाग जिसमें फल लगा होता है और जुताई के बहनेवाली हवा । २. अफवाह । किंवदंती। उड़ती खबर । ३. समय जिसका कुछ भाग 'फाल के साथ जमीन के अंदर धुमधाम की चर्चा। रहता है। . . पोबाछा--संघा पुं० [हिं०ची (-चार)+घाछना (कर या चंदा चौमं जिला-वि० [हिं० चौ (चार)+फा० मंजिल ] चार चसूल करना) ] एक प्रकार का कर जो दिल्ली के बादशाहों मरातिब या खंडोंवाला ( मकान मादि)। . . . के समय में लगता था। चौमसः संडा पुं० । हि० चौ---मास] बह खेत जो रबी की बोवाई विशेष—यह कर चार वस्तुओं पर लगता था--पाग (प्रति मनुष्य), के लिये वर्षा के चार मास जोता गया हो । चौमासा। ताग अर्थात् करधनी (प्रति बालक), करी अर्थात अलावा चौमसिया--वि० [हिं० चौ+मास ] १. चार महीने का। २. वर्षा । कौड़ा, (प्रति घर), और पूछी (प्रति चौपाया)। के चार महीनों में होनेवाला । ३. मौसम सबंधी। चौबानी-संज्ञा खी० [हिं० चौ+बानी] चार प्रकार की वाणी, चौमसिया-संघा पुं. वह हलवाहा जो चार महीने के लिये नौकर हैं-परा, पश्यंती, मध्यमा और वैखरी। उ०---परा पसंती रखा गया हो। मधमा वैखरी, चौबानी ना मानी। पांच कोष नीचे कर देखो, चौमसिया-संशा पुं० [हिं० चार+माश! ] चार माशे का बाट। इनमें सार न जानी। कबीर० श०, भा०२, पृ०६६। . चार भाशे तौल का वटखरा। चौबार-संज्ञा पुं० [हिं० चौवारा दे० 'चौबारा'।। चौमहला-वि० [हिं० चौ+महल ] चार खंडों का। चार मरातिव..... चौवारा-संपा पुं० [हिं० चौ (=चार)+वार (=द्वार)] १. का (मकान)। कोठे के ऊपर की वह कोठरी जिसके चारों ओर दरवाजे हों। चौमाप-संमा स्त्री॰ [हिं० चौ+माप ] [ वि० चौमापी] १. किसी , . ढंगला। बालाखाना। २. खुली हुई बैठक । लोगों के बैठने उठने चीज की लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई तथा काल नापने का चार : का ऐसा स्थान जो ऊपर से छाया हो, पर चारों और अंग । २. उक्त चारों अंगों का समन्वित रूप। चारों प्रायाम। खुला हो। चौमार्ग:-संशा पुं० [सं० चतुर्मार्ग ] चौरस्ता । चौमुहानी। । चौबारा--कि० वि० [हिं० ची (चार)+बार (=दफा) ] चौमास-संसा पुं० [हिं० चौमासा ] दे० 'चौमासा' ". चौथी दफा । चौथी बार। चौमासा'---संज्ञा पुं० [सं० चातुर्मास ] १. वर्षा काल के चार महीने चौबारी-संशा सी० [हिं० चौबारा का स्त्री.] दे० 'चौवारा'। आपाढ़, श्रावण, भाद्रपद और माश्विन । चातुर्मास । २. वर्षा घौबाहा-वि० [हिं० चौ+बाहना (जोत ग)] बोने से पूर्व .ऋतु के संबंध की कविता । ३. खरीफ की फसल उगने का : चार बार जोता जानेवाला (सेत)। समय । ४. वह खेत जो वर्षा काल के चार महीनों (असाढ़, चौबाहा" -संहा पु० चार बार जीतने की क्रिया। सावन, भादों और फुवार ) में जोता गया हो। ५. किसी चौडिसा-वि० [हिं० चौबीस ] दे० 'चौबीस' । .. स्त्री के गर्भवती होने के चौथे महीने में किया जानेवाला । चौबीस'-वि० [सं० चतुर्विशत्, प्रा० चउबीसा जो गिनती में बीस उत्सव । ६. दे० 'चौमसिया'। और चार हो । बीस से चार प्रधिक । चौमासा'-वि०१. चौमासे में होनेवाला। चौमासा संबंधी। २. चार चौबींस- संज्ञा पुं० बीस से चार अधिक की संख्या जो अंकों में इस मास में होनेवाला । . ." .. प्रकार लिखी जाती है--२४ । चौमासी-संज्ञा स्त्री० [हिं० चौमास+ई (प्रत्य॰)] एक प्रकार : चौबीसवाँ वि० [हिं० चौवीस+वाँ (प्रत्य०)] क्रम में जिसका का रंगीन या चलता गाना जो प्रायः बरसात में गाया - - स्थान तेइसर्वे के पागे हो । जिसके पहले तेईस और हों। . जाता है। चौबे-संज्ञा पुं० [सं० चतुर्वेदी, प्रा. चिउम्बेदी, हिं. चउबेदी] चौमासी-वि० दे० 'चौमासा'। [सी० चौवाइन ] बाहह्मणों की एक जाति या शाखा। चौमुख-क्रि० वि० [हिं० चौ (-चार) +मुख (=ौर) ] चारो - विशेष-मथुरा के सब पंडे चौवे कहलाते हैं। ओर । चारो तरफ । उ---चमचमात चांमीकर मंदिर चौमुख । चौबोला--- संज्ञा पुं० [हिं० चौ+योल ] एक मात्रिक छंद जिसके . चित्त विचारु ।-रघुराज (शब्द०)। प्रत्येक चरण में ८ और ७ के विश्राम से १५ मात्राएँ होती चौमुख-वि० दे० 'चौमुखा' । जैसे, चौमुख दियना (=दीपे)। हैं। अंत में लघु गुरु होता है । जैसे,--रघुवर तुम सों विनती चौमखा--वि० [हिं० चौ-चार + मुख-मा-(प्रत्य॰) । करौं । कीजै सोई जाते तरौं । भिखारीदास ने इसके दुगुने का बी० चौमुखी] १. चार म होंवाला। जिसके मुह चारा 'चौबोला मानकर १६ और १४ मात्रामों पर यति- मानी है। और हों। चौभड़-मस्या सी [हिं०. चौ+दाढ़ ] - दाढ़ वा वह चौड़ा, . यौ० .. चौमुखा दीया वह दीपक जिसमें चारों ओर चार बत्तियाँ चिपटा और गड्ढेदार दाँत जिप्तसे पाहार कूचते या चबाते हैं। जलती हों। चौभर-संज्ञा स्त्री० [हिं० चौभर ] दे० 'चौभर'। .. मुहा०-चौमुखा दिया जलाना=दिवाला निकालना ।