पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चौमुहानी १६०३ चौरा .. विशप लोग कहते हैं कि प्राचीन समय में जव महाजन को अपने चौर@-संब पुं[सं० मर] है. 'चमर' 1. उ०-चौर इले हैं. .. दिवाले की सूचना देनी होती थी, तब वह अपनी दूकान पर न्याचे पवन चेरी।-दक्खिनी ०, पृ०३० .. चौमुख दीया जला देता था। चीर-संक्षा पुं० [सं० चुण्डा ताल जिसमें बरसाती पानी बहुत दिन चौमूहानी-संञ्चा स्त्री० [हिं० चौ (=चार)+फा महाना] चौराहा तक रुका रहे । खादर । चौरस्ता । चतुप्पथ । चौरई-संशश की० [हिं०] दे॰ 'चौराई। - चौमे डा-मंशा पुं० [हिं० चौ (=चार)+में+या (प्रत्य॰)] वह चोरचारा-संशा सी० [देश॰] चहल पहल । स्थान जहां पर चार मेंड़ या सीमाएं मिलती हों। चौरठा- संथा पुं० [हिं० चाउर-पीठा] 'चौरेठा'। चौमेखा'-वि० [हिं० चौ (चार)+ मेख+ (प्रत्य०)] चार चौरठit संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'चोरठा' । . मेखोंबाला । जिसमें चार मेख या कीलें हों। . रिदार- संज्ञा पुं॰ [सं० चमर, हि० चौर+फा० दार (प्रत्य॰)] चौमेखा'- संज्ञा पुं० एक प्रकार का कठोर दंड जिससे अपराधी को दे० 'चंबरदार' । ई०-चौरदार सुखपाली पइया । चौरा पर - जमीन पर चित या पट लिटाकर उसके दोनों हाथों और . उन खबर जनइया !--घट० पृ० १६२ । दोनों पैरों में मेखें ठोंक देते थे। चौरस-वि० [हिं० चौ(चार) + (एक) रस (=समान)] १. चौरंग'-मंचा 'पुं० [हिं० चौ (=चार)+रंग (= प्रकार, ढब)] .. जो चा नीचा.न हो । समथल । हमवार। बराबर । जैसे, " तलवार का एक हाथ । तलवार चलाने का एक ढव जिससे चीजें चौरस मैदान । २. चौपहल ! वर्मात्मक । कटकर चार टुकड़े हो जाती हैं । खङ्ग प्रहार का एक ढंग। चौरस-संज्ञा पुं०.१. ठठेरों का एक औजार जिससे वे खुरचकर वर- चौरेंग-वि० १ तलवार के वार से कई टुकड़ों में कटा हुआ । खङ्ग . तन चिकने करते हैं । २. एक वसंवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में के प्राघात खंड खंड। उ०-कहूँ तेग को घालिक, करहि टूक एक तगण और एक यगरण होता है । इसको 'तनुमध्या' कहते . चौरंग। सुनि, लखि पितु बिसुनाथ नृप, होत मनहि पन दंग। हैं । जैसे,-तू यों किमि माली । धूमै मतवाली (सुनार)। . -(शब्द०) चौरसा'-संज्ञा पुं० [हिं० चौरस] १.ठाकुर जो की शय्या की क्रि० प्र० करना !-काटना।। ' चदर २. चार रुपये भर का बाट (सुनार)। मुहा०-चौरंग उडाना या काटना=(१) तलवार आदि से चौरसा-वि० जिसमे चार रस हों। चार रसोंवाला। किसी चीज को बहुत सफाई से काटना । (२) एक में बंधे हुए चौरसाई-संचार [हिं० चौरसान।] १.चौरसाने की क्रिया। 'ऊँट के चारों पैरों को तलवार के एक हाय में काटना । २. चौरसाने का भाव । ३.चौरसाने की मजदूरी। विशेष-देशी रियासतों तथा अन्य स्थानों में बीरता की परीक्षा चौरसाना-क्रि० स० [हिं० चारस से नामिक धातु] चौरस के लिये यह परीक्षा थी। इसमें केंट के चारों पर एक साथ करना । वरावर करना। हमवार करना। बांध दिए जाते हैं । ऊँट के पैर की नलियां बहुत मजबूत चौरसी-संघा सी० [हिं० चौरस] १. बांह पर पहनने का एक होती हैं। इसलिये जो उन चारों परों को एक ही हाथ ____चौखूटा गहना। में काट देता है, वह बहुत बीर समझा जाता है। २. चार विशेष-सीतापुर आदि जिलों में इसका प्रचार है। ... - रंगोंवाला । ३. चारो तरफ समान रूप से होनेवाला । ४.जो २. चौरस करने का औजार । ३. अन्न रखने का फोठा या - चारों तरफ एक जैसा हो। बखार । चौरंगा-वि० [हिं०ची+रंग वि स्त्री० चौरंगी] चार रंगों का। चौरस्ता--संक्षा पु० [हिं० ची-फा० रास्ता] चौराहा। .... जिसमें चार रंग हो। सुदर । चित्र विचित्र । उ०-बहन चौरहा-संशा पुं० [हिं० चौरा[ दे० 'चौरा' । उ०-जब वह . . बटी सो तुरंग चमर पसगी चौरंगा। पंच घाट पंचास प्रस्सि । लहर मारता कबीरचौरह के समीप पहुंचा, तब सामने कबीर ..., तवोली पंगा।-पृ० रा०, १२ । ११८ । साहब को बैठा देखा ।-कदीर म०, पृ०००। चौरंगिया-संज्ञा पुं० [हिं० चौ+रंग] मालखंभ की एक कसरत चौरहा-संदा पुं० [हिं० चौ+राह-प्रा (प्रत्य०)] दे० 'चौराहा'। - जिसमें बेत को एक जंधे पर बाहर की ओर से लेकर पिंडरी चौरा'-संका पुं० [सं० चत्वरक प्रा० चउर] [को० अल्पा० चोरी] को छुलाते हुए उसी पर के अंगूठे में अटकाते हैं और फिर १. पोतरा। चबूतरा । वेदी । २. किसी देवी, देवता, सती, दूसरे जंघे से उसे भीतर लेकर पिंडरी से बाहर करते हुए दूसरे । मृत महात्मा, भूत, प्रेत आदिका स्थान जहाँ वेदी या चबूतरा अंगूठे में अटकाते हैं। बना रहता है । जैसे, सती का बौरा । उ०-पेट को मारि चौरंगी-संघा सी० [देश॰] १.चौराहा । बंगाल में कलकत्ते का एक . मर पुनि ह चौरा पुजावत देव समान । -रघुराज भत ... प्रमुख स्थान। . . . . (शब्द०)। ३. चौपाल । चौवारा। चौर'-संज्ञा पुं० [सं०] १. दूसरों की दस्तु चुरानेवाला। चोर। चौरा --संज्ञा पुं० [हिं० चौला या देश०] लोविया । चोड़ा। यो०- चौकर्म = चोरी। प्रखो । रवांस । उ०-गेहावर चाना उरद जब मूग मोठ .., २. एक गंध द्रव्य । ३. चौरपुप्पी । चौरपंचाशिका के रचयिता लि । चौरा मटर मसूर तुवर सरसों मडवा मित। -सदन ... संस्कृत के एक कवि का नाम । तिर