पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५२४

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चौरा 'चौलुक्य . चौरा'---संहा पुं० [सं० चामर ] वह बैल जिसकी पूछ सफेद हो। होता है । इस स्तूप में मूर्ति या प्रतीक की पूजा की जाती है। .. चौरा-संवा ही० [सं०] गायनी का एक नाम । कहीं कहीं स्तुप में एक पोर तिकोना या गोल गढा होता है। चौराई-संचा की० [हिं० चौ+राई] १. चौलाई नाम का साग । जिसमें दिया रखते हैं। दे० 'चौरा-31t३, मूल स्थान । : 3०-चौराई तो राई तोराई मुरई मुरब्बा भारी श्री - मादि स्थान । ४.अकेली दूब का या जमीन पर पसरनेवाली विधाम (शब्द०)। २. अगरवाले बनियों की एक रीति जिसमें किसी एक घास का घना और छोटा विस्तार । घास या : किसी उत्सव पर किसी को निमंत्रण देते समय उसके द्वार दूब का थक्का । जैसे, -दूब की चोरी। पर हल्दी में रंगे पीले चावल रख आते हैं । ३. एक चिड़िया। चोरी--संज्ञा दी [देश॰] १. एक पेड़ जो हिमालय पर तथा विशेष-इसकी गरदन मटमैली, डेने चितकवरे, दुम नीचे सफेद रावी नदी के किनारे के जंगलों में होता है। मदरास तथा : और ऊपर लाल मौर चोंच पीली होती है। इसके पर भी मध्य प्रदेश में भी यह पेट मिलता है। .. पीले ही होते हैं। विशेष-इसकी लकड़ी चिकनी और बहुत मजबूत होती है और . चौरानवे' -वि० [सं० चतुर्नव ति, प्रा० शाउण्णवई नब्बे से चार मेज, कुरसी, पालमारी, तसबीर के चौखटे धादि बनाने के . , अधिक । ., काम में आती है। इसकी छाल दवा के काम में आती। . . चौरानवेल-संघा पुं० नब्बे से चार अधिक की संख्या जो अंकों में .२. एक पेड़ जिसकी छाल से रंग बनता और चमड़ा सिझाया .. इस प्रकार लिखी जाती है-६४।। जाता है। . . . . . . . . चौराया@ संथा पुं० [हिं० चौराहा[ दे० 'चोराहा'। उ०- चौरी-संगा सी० [सं०] १. चोरी। २. गायत्री का एक नाम।. . . बिकट चौरायौ पवन पावत चहु पोर की।-पोद्दार अधि० चौरेठा-संशा पुं० [हिं० चाउर+पीठा] पानी के साथ पीसा - अं०, पृ० ५७५ । चौराष्टक-संहा पुं० [सं०] पाड़व जाति का एक संकर राग जो चौडा० सं० चोरी।स्तेय । हुप्रा चावल । . प्रातःकाल गाया जाता है। ___ यौ०-चौर्यरत गुप्त मैथुन । वीर्यप्ति=(१) चोरी पर चौरासी-वि० [सं० चतुरशीति, प्रा० चउरासीइ] अस्सी से चार अधिक । जो संख्या में अस्सी और चार हो। . जीविका चलानेवाला । (२) चोरी करनेवाला। , चौरासी-..-संथा पुं० १. अस्सी से चार अधिक की संख्या जो इस गायक-सचा पु० [सं०] चारा [को०] ' प्रकार लिखी जाती है-६४।२. चौरासी लक्ष योनि । उ०-. चोल'-संपा पुं० [सं०] चोल नामक देश । वि० दे० 'चोल'। पाकर पारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी चौल-वि० [सं०] चूडाकर्म संबंधी (को०)। . . --मानस, १।। चौल-संशा पुं० मुंडन । चूडाकर्म (को० : विशेष-पुराणों के अनुसार जीव चौरासी लाख प्रकार के माने । चौलकर्म-संशा पुं० [सं० चौसफर्मन] चूडाकर्म । मुडन । गए हैं। चौलड़ा वि० [हिं० चौ+लड़] जिस में चार लड़ें हों। . मुहा-चौरासी में पहना या भरमना-निरंतर बार बार कई चौला--संया पुं० [देश०] लोविया । बोड़ा। प्रकार के शरीर धारण करना । आवागमन के चक्र में पड़ना चौलाई-संहा श्री० [हिं० चौ+राई (= दाने)] एक पौधा जिसका उ०-औरासी पर नाशत उस उपदेसत छविधारी।- साग खाया जाता है । उ० --चौलाई लाल्हा अरु पोई । मध्य देवस्वामी। (शब्द०)। - मेलि.निबुप्रोन निचोई।-सूर (शब्द०)। . .... . ३. एक प्रकार का घु चहा पैर में पहनने का घुघरुषों का गुच्छा विशेष यह हाथ भर के करीब ऊंचा होता है। इसकी गोल :: जिसे नाचते समय पहनते हैं। उ०---मानिक जड़े सौम नौ .. पत्तियाँ सिरे पर चिपटी होती हैं और डंठलों का रंग लाल .. काँधे । चंवर लाग चौरासी बौधे - जायसी (शब्द०)।४. होता है। यह पौधा वास्तव में छोटी जाति का मरसा है। ... . पत्थर काटने की एक प्रकार की टॉकी। ५ एक प्रकार . इसमें भी मरसे के समान मंजरियां लगती हैं जिनमें राई के फी रुखानी। . इतने बड़े काले दाने पड़ते हैं। वैद्यक में चौलाई हलकी, .. चौराहा-संक्षा पुं० [हिं० (चार)+राह(-रास्ता)] वह .. शीतल खो, पित्त-कफ नाशक, मल-मूत्र-निःसारक, विष- स्थान जहां चार रास्ते या सड़कें मिलती हों। वह स्थान जहाँ ... नाशक और दीपन मानी जाती है। .. से चार तरफ को चार रास्ते गए हों। . . पर्याय-तंडुलीय । मेघनाद । कांडेर । तंडुलेरक। भंडीर। चौरियाना--कि० अ० [हिं० चौरी से नामिक धातु] दूब या विषघ्न । अल्पमारिष, इत्यादि।। पास का फैलकर बना होना। चोलावा:-संशा पुं० [हिं० चौ+लाना (=लगाना)] ऐसा कुआँ . चौरी--संज्ञा सी० [हिं० चौरा] १. छोटा चबूतरा । बेदी (10- जिसमें एक साथ चार मोट चल सके। रची चोरी पाप ब्रह्मा चरित खंभा लगाइ के ।-सूर (शब्द०) चोलि-संज्ञा पुं० [सं०] एक ऋपि का नाम । २.किसी देवी, देवता सती ग्रादि के लिये बनाया हुआ छोटा चौलुक्या-संघा पुं० [सं०] १...चुलुक · ऋपि के वंशज । २. . चौरा या चबूतरा जिसके ऊपर एक छोटा सा स्तूप जैसा बना 'चालुक्य' ।