पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५२७

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च्युतसंस्कारता ... जो मैदा,नामक श्रुति से प्रारंभ होता है । इसमें दो श्रुतियाँ होती हैं। च्युनसंस्कारता-संथा ली० सं०] साहित्यदर्पण के मत से काव्य का वह दोष जो व्याकरणविरुद्ध · पदविन्यास से होता है। .. काव्य का व्याकरण संबंधी दोप ।

विशेष-यह दोप प्रधान दोषों में है।

च्युतसंस्कृति-संशा नौ० [सं०] दे० 'न्युतसंस्कारता' ... च्युति-संज्ञा बी० [सं०] १. पतन । स्खलन । झड़ना । गिरना। ...२. गति । उपयुक्त स्थान से हटना । ३. पूक। कर्तव्यविमुखता। ४.अभाव । कसर । ५. गुदद्वार । गुदा । ६. भग । योनि । च्युप-संधा पुं० [सं०] मुख । चेहरा [को०] । च्यूटा-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'चिउँ'टा'। , ... च्यूटी-संज्ञा स्त्री० [हिं०] १० 'चिउटी'। च्यूड़ा-संवा पुं० [हिं०] दे० चिउड़ा'। च्यूत-संत्रा पुं० [सं०] आम का पेड़ या फल । च्योना-संज्ञा पुं॰ [देश॰] घटिया । च्योल-संज्ञा पुं० [सं०] चूना । टपकना । गिरना (को०)। . . छ-हिंदी वर्णमाला में व्यंजनों के स्पर्श नामक भेद के प्रतर्गत चवर्ग अथवा लघु गुरु का कुछ विचार नहीं किया गया है। उनमें ...' का दूसरा व्यंजन । इसके उच्चारण का स्थान तालु है । इसके छंदों का निश्चय केवल उनके अक्षरों की संख्या के अनुपार होता है। ... उच्चारण में अघोष पौर महाप्राण नानक प्रयत्न लगने हैं। - छंग--संज्ञा पुं० [सं० उत्सङ्ग प्रा० उच्छंग, पुं० हि० उछंग छंग] २.वेद । वि० 'वेद' । ३.वह वाक्य जिसमें वर्ण या मात्रा .." गोद । अंक। ७०-खर को दहाँ प्ररंगजा लेपन मर्कट की गणना के अनुसार विराम प्रादि का नियम हो। भूषणा ग्रंक । गज को कहा न्हवाये सरिता बहुरि धरै खहि . विशेप-यह दो प्रकार का होता है-वणिक पौर मात्रिक । । ... छग (शब्द०)। जिस छंद के प्रति पाद में अक्षरों की संख्या और लघु गुरु के 'छंगा - वि० [हि छह ऊँगली] छह गलियोंवाला । जिसके फ्रम का नियम होता है, वह वणिक या वर्णवृत्त और जिसमें एक पंजे में छह उपलियां हों। प्रक्षरों की गणना भौर लघु गुरु के क्रम का विचार नहीं, - छंगू-वि० छह + अंगु (= गुनी)] दे० 'छंगा'। केवल मात्रामों की संख्या का विचार होता है, यह मात्रिक छछल-संदा पुं० [अनु० या प्रा. छिछोली छिछछंछ । छींटा। छंद कहलाता है। रोला, रूपमाला, दोहा, चौराई इत्यादि धार | प्रवाह। उ०-कृधि छंछ छुट्टि संमुह चलिय पति पद्भुत मात्रिक छंद हैं। वंशस्य, इंद्रवज्रा, उपेंद्र बना, मानिनी, ": सुदिपियो । पृ० रा०,३॥ २४ । . मंदाक्रांता इत्यादि वर्णवृत्त हैं । पादों के विचार से वृत्तों के छंछाल -त्रा पुं० [हिं० छंछ+भाल (प्रत्य॰)] १.. हाथी । तीन भेद होते हैं-समवृत्ति, अर्धसम वृत्ति और विषमवृत्ति। ... २. हाथी की सू । उ०-बहै जोर छछाल से मुक्ष नीरं। जिस वृत्ति में चारों पाद समान हों वह समवृतित, जिसमें वे ...' लगे गंह गुजार सो भौर भीर-प०. रासो, पृ० १६७ । असमान हों वह विपमवृत्ति और जिसके पहले और तीसरे छंछाल -वि० मस्त । मदमस्त । उ०-छकियो गज छछाल, तथा दूसरे और चौथे चरण समान हों. वह अर्धसमवृत्ति ... - धौरंग यूवामा लग्यो।-नट०, पृ०६७२।। कहलाता है । इन भेदों के अनुसार संस्कृत और भाषा के छछोरी-मंधा पी० [हिं० छांछ+वरी] एक पकवान | 80 'छछोरी'। छंदों के मनेक भेद होते हैं। छंडनार -क्रि० स० [हिं० छोड़ना] ३० 'छेड़ना' । .. ४. वह विद्या जिसमें छंदों के लक्षण मादि का विचार हो। यह छंद-संघा पुं० [म० छन्दस] १. वेदों के याक्यों का वह . भेद जो . छह वेद-गों में मानी गई है। इसे पाद भी कहते हैं। ....यदारों की गणना के अनुसार किया गया है। ... अमिलाया । इच्छा । ६. स्पैराचार । स्वच्छाचार । मनमाना ...' विशेष- इसके मुख्य सात भेद हैं - गायत्री, उणिक , अनुष्टुप, .:: व्यवहार । ७. बंधन । गाँठ। ८.जाल । संघात । समह • बृहती, पंक्ति, विष्टप. और जगती। इनमें प्रत्येक के पार्षी, : उ०-बीज के वृद में है तम छंद कलिंदजा बुदलसै दरसानी। देवी, धासुरी, प्राजापत्या, याजुपी, साम्नी, मार्ची पौर ब्राह्मी -(शब्द०)। ६.कपट । छन । मस्कर। 30-की नामक माळ पाठ भेद होते हैं। इनके परस्पर संमिश्रण से ... राजबार प्रस गुरणी न चाही जेहि दुना कर वोन । यही छंद अनेक संकर जाति के छंदों की कल्पना की गई है । इन मुख्य : ग. विद्या छला सो राजा भोज । -जायसी (शब्द०)। • सात छंदों के अतिरिक्त प्रतिजगती, प्राक्वरी, प्रतिशम्बरी, कहा कहति तू बात अयानी । वाके छंद भेंद को जान मीन अष्टि, अत्यष्टि, धुति, पतिधूति कृति, प्रकृति, प्राकृति, विकृति, .... कबहु घों पीवत पानी-सूर (शब्द०)। . .

'संस्कृति, अभिकृति और उत्कृति नाम के छंद भी हैं जो केवल

"यौ०-ईदकपट=दे० 'छलछं'।. उ०-हम देखें. इहि भांति ... युजवेंके यजमों में होते हैं । वैदिक पद्य के छंदों में मात्रा ...गुपाल। छदकपट कछु जानाति नाहिन समी, बज की सब बाल।-सूर०, १०। १७७८।