पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५२८

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१६०७ छछोरी छलछंद-कपट । घोखेबाजी। चालबाजी । 30-छोभ छल- छंदी'--संथा औ० [हिं० छंद (बंधन)] एक प्राभूषण जिसे स्त्रियाँ छंदन को बाढ़ पाप छंदन को फिकिर के फंदन को फारिहै हाथों में कलाई के पास पहनती हैं। फारिहै । -पद्माकर (शब्द०)। विशेष- यह गोल कगन की तरह होता है जिसपर रवे की जगह १०. चाल । युक्ति । कला। उपाय । उ----फंद की मृगी लौ गोल चिपटो टिकिया बंठाई रहती है। यह कंगन पौर पछेले .. छंद छुटिवे को नेको नाहि, चारों ओर कोरि कोरि भौतिन के बीच में पहना जाता है। सों रोक है।-धनानंद, पृ० २०७। ११.चालबाजी। छंदी-वि० [हिं० छंद+६ (प्रत्य॰)] कपटी। धोरोबाज । छली। २०-(क) योगिहि बहुत छंद पोराहीं । वूद सुपाती जैसे छदेली-संक्षा सौ. [हिं० छद+एली (प्रत्य॰)] १. एक ग्राभूपण। . पाहीं।-जायसी (शब्द०) । (ख) सुनि मद नंदप्पारे तेरे दे० 'छंदी' । २.छल छंद करनेवाली औरत । मुख चंद सम चंद पै न भयो कोटि छंद करि हारयो है- छंदोग-संधा बी. [सं० छन्वस +-ग] १ सामगान करनेवाला .. केशव (शब्द०)। १२. रंग ढंग। प्राकार । चेष्टा 1 30- पुरुष सामा । सामवेदी । २. सस्वर छंद या पद्य पढ़ने गला गिरगिट छंद घरै दुख तेता । खन खन पीत रात खन व्यक्ति (को०) । ३. सामवेद (को०)। . सेता ।-जायसी (शब्द०)। १३. विष । जहर । १६. ढक्कन । छंदोगपरिशिष्ट-संथा पुं० [सं० छन्दोगपरिशिष्ट] सामवेद के यावरण । १७. पत्ती। गोभिल सूत्र का परिशिष्ट भाग जो कात्यायन जी का बनाया छंदर-संथा पुं० [सं० छन्दक] एक माभूपण जो हाथ में चूड़ियों हुमा है। __ के बीच पहना जाता है। छंदोदेव-संज्ञा पुं० [सं० छन्दोदेय] महाभारत के अनुसार मतंग छंद-वि० [सं० छन्द] भाकर्षक । मनोरम । २. ऐकांतिका नामक चांडाल । गोपनीय । अप्रकट । गुप्त । ३. प्रशंसक (को०] । विशेष-इनकी उत्पत्ति नापित पिता पौर माहाणी माता से । छंदक-वि० [सं० छन्दक] १. रक्षक । २. छली। हुई थी। इन्होंने ब्राह्मणत्व लाभ करने के लिये जब बड़ी .. छंदकर - संशा पुं० १ कृष्ण चंद्र का एक नाम । २.बुद्धदेव के सारथी तपस्या की, तब इंद्र ने इन्हें वर दिया कि सुम कामरूप विहंग. का नाम । ३. छल । होगे 1 तुम्हारा नाम छंदोदेव होगा पौर ब्राह्मण, क्षत्रिय मादि छंदज-संडा पुं० [सं० छन्दज] वैदिक देवता । ऐसा देवता निनकी सव वौँ फी स्त्रियाँ तुम्हारी पूजा करेंगी। .. स्तुति वेदों में हो । वसु मादि देवता।' छंदोदोष -मथा पुं० [सं० छन्दोदोष] छंदरचना का एक दोष को०)। छंदन--संघा पुं० [सं० छन्वन] तुष्ट करना । प्रसन्न करना। छंदोबद्ध-वि० [सं० छरदोबस] श्लोकवद्ध । जो पर के रूप में रिझाना (को०] । हो। जैसे, छंदोबद्ध ग्रंप। छंदना- क्रि० अ० [सं० छंद (=बंधम)] पैरों में रस्सी लगाकर छंदोभंग - पुं० [सं० छन्दोनला छंद रचना का एक दोप जो बांधा जाना। मात्रा, वर्ण धादि की गणना या लघु गुरु प्रादि के नियम का . छंदपातन-संशा पुं० [सं० छवपातन] बनावटी साधु । साधु पालन न होने के कारण होता है। वेशधारी ठग । छली । धोखेबाज । छंदोम-चाए० [सं० छन्दोम] १. द्वादशाह याग के अंतर्गत एक छंदप्रबंध-संशा पुं० [हिं० छंद-+-प्रबंध] ३० 'छन्दाप्रबंध। कृत्य का नाम । छंदबंद-संघा पुं० [हिं० छंद +बंद] छल । कपट । घोखा। विशेष-यह द्वादशाह याग के धाठवें, नवें और दसवें दिन तीन छंदवासिनी-वि० बी० [सं० छश्दवासिनी] स्वतंत्र जीविकावाली। . दिन तक होता था पोर प्रतिदिन उन तीन म्तोमों का गान (खी) जो किसी दूसरे पर निर्भर न करती हो।-(को०) होता था जो इसी नाम से विख्यात हैं। इस यज्ञ का फन छंदस्कृत-संज्ञा पुं० [सं० छन्वस्कृत] [ो छदस्ता ] वेद कोई फोई राज्यप्राप्ति मानते हैं। जिसमें गायत्री प्रादि छंद हैं । २. वेदमंत्र। २. वे तीन स्तोम जिनका गान छंदोम में होता था। ... छंदःप्रबंव--संग पुं० [सं० छन्दःप्रय पयरचनाहरसा छम -वि० [सं० क्षम] समयं । जीवित । शक्तियुक्त । ३०-ज्यों छंदःशास्त्र-संक्षा पु० [छन्द शास्त्र] वह शास्त्र जिसमें छंदरचना ___दव लग्गे जंगन रहै ;म कोइ घास । त्यो मेवाड़ मवेलियौ मेट संबंधी नियमों का विवेचन हो। कर्मधामास ।-रा०स०, पृ०१७६। । छंदःस्तुभ-संथा पुं० [सं० 'छन्द:स्तुम] १. वैदिक देवता जिनकी छगुनिया -संथा सी० [हिं०] दे० 'छगुनी'। .. - स्तुति वेदों में की गई है । २. ऋपि जो दिक छंदों द्वारा छगुलिया, छंगुली-संवा सी. [हिं०] • 'छगुनी' ।' ' छार-संक्षा पुं० प्रा० छिछोली] १. धारा । फुहारा । नाव - . - देवताओं की स्तुति करें। ३. सूर्य का सारथी । अरुण।। उ०--सुनि सोर दान छुट्टै छार । जनु भूत भंति भयभीत छंदानुवृत्ति-संचा सी० [सं० छन्दानुवृत्ति] खुशामद । चापलूसी। भार। पृ० रा०, ५ । १८ । २. दे 'छछाल"। प्रसन्न करना । सतुष्ट करना[को०)। छछोरी--संशा स्त्री० [हिं० छांछ +बरी] एक प्रकार का पकवान 1-वि० [सं० छन्दित] सतुष्ट किया हुआ । तोपित । प्रसन्न। . जो छाछ में बनाया जाता है। उ०--भकोरी, मुगछौरी, । का हुमा । [को०)। रिकवछन इंडहर क्षीर, छछोरी जी।-रघुनाथ (शब्द॰) ।