पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५३३

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'. महा-छठी का दूध निकलना-कन्नि श्रम पड़ना। बहुत छड़ी'-हा की.[हिं० छड] १. सीधी पतली लकड़ी। पतली 4हैरानी होना । भारी संकट पड़ना । छठी का दुध यावं, प्राना= लाठी। २. लहंगे, पाजामे आदि में गोखरू, चुटकी प्रादि की .... सब सुख भूल जाना। बचपन की सारी खिलाई पिलाई सीधी टंकाई 1---(दरजी), ३. झडी जिने लोग मुसलमान 'निकल जाना। घोर परिश्रम पड़ना । बहुत हैरानी होना। पीरों की मजार पर चढ़ाते हैं। सदा । मंडी । जैसे, मदार की . भारी संकट पड़ना। छठी का राजा = पुश्तैनी अमीर। छड़ी। ४. गुड़िया पीटने या चौथी छुड़ाने की पतली लकड़ी। पुराना रईस । । छड़ी-वि०की० [हिं० छाडना] अकेली । एकाकिनी । २. २. भाग्य । नियति । तकदीर । उ०--पढ़िवो परयो न छठी छ परया न छठा छ मुहा०-छड़ी छटाँक या यही सवारी-(१) बिना किसी संगी . . मत ऋगु, जजुर अथर्वन, साम को।-तुलसी ग्रं॰, पृ०५३७ । साथी के । अफेले । एकाकी । (२) बिना कोई बोझ या - महाछने में नहीं पड़ना=(१) भाग्य में न होना । (२) प्रसवाद लिए । तन तनहा । ...... प्रकृति में न होना । प्रकृतिविरुद्ध होना स्वभाव के छड़ोदार-वि० [हिं० छड़ीदार (प्रत्य०) ] १. जो छड़ी लिए प्रतिकूल होना । जैसे,—देना तो उनकी छठी में ही नहीं। हो । छड़ीवाला । २. जिसमें सीधी पतली - लकीरें हों। .." पड़ा। लकीरदार। सीधी लकीरोंवाला |--(कपड़ा)। जैसे, . ३. एक देवी जिनकी पूजा छछी के दिन होती है । छड़ीदार छींट, छड़ीदार गलता । छड़--संशा की [सं० शर] धातु या लकड़ी आदि का संवा पतला छड़ीदार संवा पु० चोवदार । ग्रासाबरदार । द्वारपालक । रक्षक । ... बढ़ा टुकड़ा । धातु या लकड़ी का डंडा । जैसे, लोहे का छड़, - 30-छड़ीदार तव वचन सुनावा । कोउ नहिं साथ राय ... बांस की छड़। के भावा।-कबीर सा०, पृ. ४८३ । ": विशेष-बहुत से स्थानों में यह शब्द भी बोला जाता है। , छड़ीचरदार संज्ञा पुं० [हिं० छो+फा० बरदार! बड़े प्रादमियों की छड़ना-क्रि० स० [हि. छंटना] १. अनाज आदि को प्रोखली सवारी के साथ सोने चांदी की छड़ी लिए हुए चलनेवाला। , में कूटकर साफ.करना । प्रोखली में रखकर अनाज कूटना सेवक । चोवदार। .: जिसमें कर्ने निकल जाय और अनाज साफ हो जाय । छांटना। छाटना। छड़ीला--संथा पुं० [सं० शैलेय दे० 'छरीला'। टीला--into lioलेय " जैसे, चावल छड़ना। २. त्यागना । छौड़ना । छोड़ना।। छरण-संवा पं० [सं० क्षरण] दे० 'क्षण'। छड़वालो- पुं० [हिं०] दे० 'छड़ियाल' । छणदा-संशा बी० [९० क्षरणदा] दे० 'वरदा' । छड़ाई-त्रि० स० [हिं० २० "छुड़ाना' । उ० जासु देस नृप छत'-संका पी० [सं० छत्त, प्रा० छत्त] १. एक घर की दीवारों के . : तीन्ह छड़ाई। समर सेज तजि नयेउ पराई ।-मानस, ' ऊपर का पटिया, चूना, कंकड़ आदि डालकर बनाया हुमा ..... ११.१५ । । फर्श । पाटन । उ०---छिति पर, छान पर, छाजत छतान पर, ..छड़ा' संज्ञा पुं० [हिं० छड़] १..पैर में पहनने का चूड़ी के आकार ललित लतान पर, लाडिली की लट पै।-पाकर (शब्द०)। .... का एक गहना । यह चांदी की पतली छद या ऐंठे हुए तारों विधेप-कच्चे मकान की छत कड़ियों पर पतले बाँस या उनकी .'.: का बनाया जाता है और पांच से लेकर दस बीस तक एक खपचियां बिछाकर उसके ऊपर लसदार मिट्टी की तह बैठाने ....... एक पैर में पहना जाता है । २. मोतियों के लड़ों का गुच्छा। से तैयार होती है। ऐसी छत भीतरी होती है । जिसके ऊपर ... लच्छा । खपरैल ग्रादि का छाजन रहता है। छड़ा' वि० हिं० छाँटना] [वि०पी० छटो] पकेला। एकाकी। .: यो०-छडी सवारी । छमी छटॉफ ।। मुहा०~ छत पटना या परना=दीवार के ऊपर बैठाई हुई कड़ियों ""छड़ाना--कि० स० [हिं०] छीन लेना । अपने वश में कर लेना। पर कंकड़, सुरखी, चूना प्रादि पीटा जाना । छत बनाना । २. घर के ऊपर की खुली हुई पाटन । कपर का खुला हुघा २०--जासु देस नप लीन्हें छड़ ई। समर सेन तजि गयेउ -... पराई।-मानस, १ । १५८ कोठा । जैसे,--गरमी में लोग छत पर सोते हैं। ३. ऊपर । छडालt वि० [हिं० रियाल कुतधारी । भालावाला 1 उ०-मार तानने की चादर । बाँदनी । छतगीर । . . लियो कहत मुहर, उर खोजियो छडाल !-रा०रू.,पृ०२४१३ महा.-छत बाँधना=बादलों का घेरकर छाना । ...छड़ावास-संहा पुं ह छह-वास] जहाज पर की झंडी। ४ छन । 50--जिन घर दैसिंह छत जहो। पवर न को जोड़ फरहरा (लश०)। घर ऐहो ।-रा० रु०, पृ०१५। छड़िया- सं गहि छडी, छड(छडी-र)+इया (प्रत्य॰)] छत -संथा पुं० [सं० क्षत] घाव । जसम । उ०—सुनि सुठि सहमेउ - छडीवाला । दंडधारी डेवढ़ीदार । दरदान । द्वारपाल । राजकुमारू । पार्के छत जसु लाग अंगारू।-मानस १। १६१ 3०-(क) द्वार खड़े प्रभ के छड़िया तह भपति जान न पावत छत-क्रि० वि० [सं० सत् । होते हुए । रहने हुए। पाछत। उ० - ... नेर।- कविता को०, भा० १, पृ० १४६ । (ख) पटिया (क) गनती गनिये ते रहे छतहू अछत समान । अलि अब ये . प्रांगन और की लट छट छड़िया काम ! -तिल जो चिवुक तिथि पोम लौ परे रही तन प्रान !-विहारी र०, दो० २७५ । पर लसत है सो सिंगार रस धाम 1- मुबारक (शब्द०)। (ख) प्रान पिंड को तजि चल मुवा कहै सब कोय। जीव छत शाहयाल-संका पं० [हिं० छड़ी] एक प्रकार का भाला या बरा । जामें मर सूछम लख न सोय।-कबीर (शब्द०) । (ग) राजकुमार