पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५३८

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छपटना छन्ना १६१७ बिलकुल छन गया है । ५. विध जाना । अनेक स्थानों पर चोट छन्नमति-वि० [सं०] जिसकी बुद्धि पर परदा पड़ा हो । जड़ । मूर्ख । खाना । जैसे,-उसका सारा शरीर तीरों से छन गया है । ६. छन्ना-संशा पुं० [हिं० छन्ना] दे० 'छनना' । छानबीन होना । निर्णय होना । सच्ची और झूठी बातों का... छप'--संहा सी० [धनु०] १. पानी में किसी वस्तु के एकाबारगी पता चलना । जैसे, मामला छनना । ७. कड़ाह में से पूरी' .. जोर से गिरने का माद। २. पानी के एकावारगो पढ़ने का पकवान आदि तलकर निकलना । जैसे, पूरी छनना । . . . .. शब्द । पानी के छीटों के जोर में पड़ने का शब्द। निमारका छनने की वस्तु । पिसी वस्तु को छानने का यो०-छपछप. छपाछप-(१) भरपर। (२) छप छप्का साधन । जैसे, महीन छनना (कपड़ा)। लगातार आवाज1 (३) छप छप की ध्यान के साथ। छननी-संहाली से० क्षरण] वह छेददार वस्तु जिसमें कोई चीज छप--वि० [हिं० छिपन, छपन] गायब । लुप्त । अदुष्ट । छानी जाय । चलनी । उ०-- भस्मीभूत अस्थियों के अनगिन, यो०--छपलोफ अदृष्ट जगत् । उ०-तब तोहि जानौ पंडिता, स्तर की छमनी में छनकर । एक मनोमोहक उन्मादक मुक्ती याहि देहप्राय । छपलोक की बात कह तब मोर मन झिलमिल निझर रूप ग्रहण कर ।--इत्यलम्, पृ०६८ । पतियाय |-संतवाणी०, भा०१, पृ० १२५ । छनपरभा--संक्षा सी० [सं० क्षरणप्रभा] बिजली। उ०-छनपरमा छपक'g--संक्षा खो० [अनु०] १. तलवार प्रादि के चलने की के छल रही चमकि मार करबार ।-स० सप्तम, पृ० २७२ . प्राधाज । २. छप छप की प्राचाज । दे० 'छप'। छनभंगु-वि० [सं० क्षरणमा] नाशवान् । अनित्य । उ०-राम विरह तनु तजि छन भगू ।--मानस, २ । २१० । छपक-संसा गली [हिं० छिपना छिपने या दुनकने की स्थिति। छपकना-मि० अ० [हिं० छिपना दे० छिपना' । उ०-६यकत छपकत छनभंगुर-वि० [सं० क्षणभङ्गुर] अनित्य । नाशवान् । क्षणस्थायी। १ चीता भाव तीन जने धरि ताव ।--सं० दरिया, पृ० १२६ । उ-तनु मिथ्या छनभंगुर जानी । चेतन जीय सदा घिर' मानौ ।---सुर०, ५।४। छपकना-जि० स० [हिं० छप से अनु०] १. पतली बमची से छनभर- क्रि० वि० [हिं०] थोड़ी देर । लहमा भर। किसी को मारना । पतली लचीली छड़ी से किसी को पीटना।. छनरुचिल-संशा लो० स० क्षरण+रुचि (-कांति, प्रमा)पक्षणप्रभा। २. कटारी या तलवार के प्राघात से किसी वस्तु को काट विजली । उ०.-छनरुचि छटा अकाल की तड़ित चंचला डालना । हिन्न करना । ३. घोड़े जल में छपछप की आवाज होइ ।- अनेकार्थ०, पृ०३८ । फरना । थोडे पानी में हाथ पर चलाना । छनवाना--क्रि० स० [हिं०] दे० 'छनाना। छपकली-संशा हो [हिं०] दे० छिपकली' । उ०-छपकली से, चोर छनाका-संज्ञा पुं० [अनु॰] १. खनाका । ठनाका । झनकार । २. से, भूत से वह बहुत अरती है ।-सुनीता, पृ० ११३। रुपयों के वजने का शब्द । छपका --संवा ० [हिं० चपकना] सिर में पहनने का एक गहना छनाना-क्रि० स० [हिं० छानना] १. किसी दूसरे से छानने का जिसे लखनऊ में मुसलमान स्त्रियां पहनती हैं। . काम करना। २.नशा ग्रादि पिलाना । जैसे, भांग छनाना । छपका- सं हि छपवाना) पतली यामची । Et. ३. कडाह में पकवान तलवाना । छपका-संवा पुं० [हिं० चार+पफा] गुरवाले पनों का एक रोग , छनिक वि० [सं० क्षणिक] दे० 'क्षणिक'। - जिसमें पशुमों के सुर परु जाते है । खरपसार, छनिक'- संज्ञा पुं० [हिं० छन+एक] एक क्षण ।' अल्प काल । छपका - संशा पुं० [अनु०.१. पानी का भरपूर ठीटा। २.एक छनिक- कि०वि०० "छन भर'। प्रकार का जाल जितनै कबूतर फंसाएं जाते हैं । ३. लकड़ी के छन्न'--वि० [सं०] १. ढका हा । पावत । पाच्छादित । २. लुप्त । संहूया में ऊपर का वह पटरा जिसमें कुंडे की जंजीर लगी गायब । रहती है । ४.पानी हाथ पैर मारने की क्रिया या भावी। छन्न...- संक्षा पुं० १. एकांत स्थान । निर्जन स्थान । गुप्त स्थान । ५. दाग । धन्वा । ६. छापा । छन्न-संज्ञा पुं० [अनु॰] १. किसी नपी हुई चीज पर पानी प्रादि पटने से उत्पन्न शब्द । २.वड़कड़ाते हुए तेल या घी में तलने छपछपाना'--क्रि० प्र०पनु०] १. पानी पर कोई वस्तु जोर से की बस्तु पड़ने का शब्द।

पटककर छप छप शब्द उत्सन्न करना। पानी पर हाथ पवि.

महा० - छन्न होना-सूख जाना । उड़ जाना। पटकमा । २ कुछ तर लेना । जैसे,--वैतरते क्या हैं, यों ही ३.धातुओं के पत्तों की परस्पर टक्यार से उत्पन्न शब्द । छनकार। पानी पर छपछताते है । ठनकार । छोटी छोटी ककड़ियाँ। बजरी। छपछपाना--कि० स० [अनु॰] छड़ी या हाथ आदि पटयाचार - छन्न - संझमा पुं० [सं० छन्द) [ स्त्री० छन्नी] छंद नाम का गहना। पानी को इस प्रकार हिलाना जिसमें छप छप शब्द उत्पन्न हो। हाथ का एक प्राभूपण । उ-~-चाहे उसके लिये मां के हाथों छपटना--क्रि० प्र० [म० पिपिट, हि चिपटना] १. चिकना। के छन्न कफना ही क्यों न गिरको रखने पड़े |----जामदान, किसी वस्तु से लगना या सटना। २. प्रालिगित होना। छपटना @-क्रि० प्र० [हिं० झपटना] दे॰ 'झपटना। "