पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५३९

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छपटाना.. 'छपटाना-कि० स० [हिं० छपटना] १.. चिपकाना। चिमटाना। छपरबंदी-पान स्त्री० [हिं० छपरबंद+ई (प्रत्य०)] १. छप्पर २. छाती से लगाना । आलिंगन करना। छाने का काम । छवाई । २. छाने की मजदूरी। छवाई। छपटी'-संशा स्त्री० [हिं० पटना] लकड़ी का टुकड़ा जो छीलने से छपरा- संज्ञा पुं० [हिं० छपर] १. बस फा टोकरा जो पत्तों से . निकले । चली। मढ़ा होता है और जिसमें तमोली पान रखते हैं । २. दे. .. छपटी-वि० पतला । दुबला । कृश । 'छप्पर' । ३. बिहार का एक जिला और नगर जिसको सारन छपड़ी-संक्षा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का भुजंगा पक्षी । । भी कहते हैं। छपद-मंशा पुं० [ सं० पट, प्रा० छ-+-सं० पट ] भ्रमर । भौंरा। छपरिया– संज्ञा सी० [हिं० छप्पर+इया (प्रत्य॰)] छोटा .. उ०-(क) उलटि तहाँ पग धारिये जासों मन मान्यो। छपद छप्पर । दे० 'छपरी' । - कंज तजि वेलि सों लटि प्रेम न जान्यो ।—सूर (शब्द०)। छपरी --संशा स्त्री० [हिं० छप्पर ] झोपड़ी। मढ़ी। उ०- (ख) छपद सुनहि वर बचन हमारे । विनु ब्रजनाथ ताप नैनन चंदन की कुटकी भली, बंबर की अवरोर्ड 1 वैश्नों की छपरी की कौन हरै हरि अंतर कारे ।--तुलसी (शब्द०)। (ग) भली, ना सापत का बड गाँउ। कबीर ग्रं॰, पृ०५२ । . . सिंधुर मदझर सिद्धरा कवेडे वरणराय । तज कावेरी कमल बन छपवाई-संज्ञा सी० [हिं० छापना ] दे० 'छपाई। छपा लीधा छाय । -वाँकी० मं०, भा० ३, पृ० ६६ । छपवाना-क्रि० स० [हि० छपाना] दे० 'छपाना' । छपन'-वि० [हिं० छिपना) १. गुप्त । गायब । लुप्त । (पश्चिम में छपवैया ---संज्ञा पुं०, वि० [हिं० छापना ] १. छापनेवाला। २. - प्रयुक्त) । उ---न जाने कहाँ छपन हो गई ।-श्रद्धाराम छपानेवाला । ३. मुद्रित करानेवाला (प्रकाशक) । उ०--- (शब्द०)। मंगल सदाहीं कर राम 8 प्रसन्न सदा राम रसिकावली या छपन --वि० [सं० षट्पञ्चाशत्, प्रा०छप्पन] दे० 'छप्पन' । उ० . ग्रंथ छपवैया को।-जुगलेश (शब्द०)। -क्रोध काल प्रत्यक्ष ही कियौ सकल को नास। सुंदर कौरव छपहीं--संज्ञा स्त्री० [देश॰] सोने या चांदो का एक गहना जिसे पांडुवा छपन कोटि परभास ।-सुदर ग्रं०, भा० पृ०७०६। स्त्रियां हाथ की उंगलियों में पहनती हैं। यौ०-छपनकोट, छपनकोटि-छप्पन करोड़ । उ०--सागर कोट छपाहु-संज्ञा ली. [सं० क्षपा] १. रात्रि । रात । उ०-छपन छपा जाके कलसार । छपन कोट जाके पनिहार ।-दरिया० के, रवि इव भा के, दंड उतंग उड़ाके । विविध वाता के, बंधे . वानी, पृ०४३ ।. पताके, छुवै जे रवि रथ चाके । - रघुराज (शब्द०)। २. छपनर संज्ञा पुं० [सं० क्षपण] विनाश । नाश । संहार । उ०- हरिद्रा। हलदी। छोनी में न छोड़ यो छप्यौ, छोनिप को छौना छोटी छोनिप छपाई-सेशा छौ । हिं• छापना] १. छापने का काम । मुद्रण । छपन वाँको बिरुद कहतु हौं ।—तुलसी नं०, पृ० १६० ।। अंकन । २. छापने का ढग । ३. छापने की मजदूरी। छपनहार-वि० [हिं० छपन+हार (प्रत्य०)] विध्वंसकर्ता। बिना छपाकर-संहा पु० [सं०क्षपाकर] १. चंद्रमा। चांद । उ०-छिन्यो "शक | उ0-- कीन्हीं छोनी छत्री विनु छोनिप छपनहार । कठिन छपाकर छितिज छीरनिधि छगुन छंद छल छीन्हो ।-श्यामा०, कुठारपानि बीर बानि जानि के 1-~-तुलसी ग्रं०, पृ० १८८ । पृ० १२० । २. कपूर । कपूर । छपना--क्रि० प्र० [हिं० चपना (= दवना)] १. छापा जाना । चिह्न छपाका- पुं० [ अनु० ] १. पानी पर किसी वस्तु के जोर से या दाव पड़ना । २. चिह्नित होना । अंकित होना। ३. मुद्रित पड़ने का शब्द । २. जोर से उछाला या फेका हुमा पानी . होना । जैसे,-- पुस्तक छपना । ४. शीतला का टीका लगना। या तरल वस्तु का छींटा । छपना:-कि० अ० [हिं० छिपना] दे० 'छिपना' । उ०-मार- क्रि० प्र०-मारना । तंड छपि अंधकार छायो दिसान दस ।-हम्मीर, पृ०४३। छपाना'-कि० स० [हिं० छापना काप्रे० रूप] १. छापने का काम छपर-संसा पुं० [हिं०] छप्पर । जैसे, चपरखट, छपरबंद, छपरिया । कराना । २. चिह्नित कराना। अंकित कराना । ३. छापे- - छपरखट-संज्ञा स्त्री० [हिं० छप्पर+खाट] वह पलंग जिसके ऊपर खाने में पुस्तक प्रादि अंकित कराना । मुद्रित कराना । ४. डंडों के सहारे कपड़ा तना हो। मसहरीदार पलंग। शीतला का टीका लगवाना। छपरखाट-संझा सी० [हिं० दे० 'छपरखट'। छपाना-क्रि० स० [हिं० छिपाना ] दे० 'छिपाना' । उ०--जाहि छपरछपर'-- संञ्चा पुं० [अनु॰] दे० 'छप', 'छपछप' । लय गेलहुँ, से चल पायल, ते तरु रहसि छपाइ ।-विद्यापति, छपर छपर-तर । भीगा हुमाया गीला। . पृ०३५७। छपरवंद'-विहि छप्पर+बंद] [मंक्षा छपरवंदी] १. जिनका छपाना-क्रि० प्र० [ अनु. छपछ प या हिं . छोपना.] जोतने के .. घर बना हो । मावाद । बसे हुए। पाही का उलटा । जैसे, लिये खेत को सींचना । - "छपरवंद असामी, छपरवंद बाशिंदा। २. छप्पर छाने का छपानाथ --संज्ञा पु० [सं० क्षपानाथ दे० 'क्ष पानाथ'। ... काम करनेवाला ! छप्पर छानेवाला ।। छपाव -संज्ञा पुं० [हिं० दे० 'छिपाय' 1 छपरबंदा-संवा पु० देश पूना के प्रासपास बसनेवाली एक जाति छप्पन'-वि० [सं० षट पंचाशत् प्रा० छपराग, छप्पन] जो गिनती ... जो अपने को राजपूत कुल से उत्पन्न बतलाती है। में पचास और छह हो। पचास से छह अधिक। ,