पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५४

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खवरदिहंदा । खपुप्रा खपुा दरवाजे के नी जाती है जो कमी हैं। -भूषण (शब्द०) १४.ठंग करना । दिक करना। ५. खफीफ वि० [अ० खफीफ) १.अल्प। घोड़ा। कम । २. हलका वेचना । विक्रय करना। ६. मार डालना। खत्म करना। ३. तुच्छ । क्षुद्र । ४.लज्जित । शरमिंदा । ५.एक छंद या । उ०-सिरसवाह लघु मीर, वीर तुम वेग खपावह।-५० वह्न किन रासो० पृ० ५६ खफीफा-वि० सी० [अ० खफ़ीफह] एक दीवानी न्यायालय जिसमें खपुया-वि० [हिं० सपना नष्ट होना] टरपोक । भगोड़ा। लेने देने के छोटे बाद या केस सुने जाते हैं । २. इसकी अपील कायर । 10-तुलसी करि केहरि नाद भिरे भट खाग खपे नहीं होती। २. बदचलन या तुच्छ स्त्री। . खफ्फा . खयुपा करके । नख दंतनं सों भुजदंड विहंडत, मुड -संचा पुं० [देश॰] कुश्ती का एक पेंच । ख विशेप-इस दौर में विपक्षी की गरदन पर बाएँ हाथ से थपकी सों मुंढ परे झरके -तुलसी (शब्द०)। देकर तुरंत अपने दाहिने हाथ में उसे इस प्रकार फीस लेते खपूना-संघा पुं० [हिं० सापची] लकड़ी की वह खपची जो किसी हैं, जिसमें अपनी कलाई उसके गले पर रहे; और तव अपने . दरवाजे के नीचे उसकी चल को छेद में दृढ़ बैठाने के लिये . बाएं हाथ से उसका दाहिना पहचा पकड़कर थोड़ा ऊपर उठाते

लगाई या ठोंकी जाती है।

या भटका देते हैं जिससे विपक्षी गिर पड़ता है। खपुर-संत्रा पुं० [सं०] १.गंधर्व मंडल जो कभी कभी आकाश में खवर-संचा स्त्री० [अ० साबर] [ बहुव० असावार] १. समाचार । . उदय होता है और जिसका उदय होने से अनेक शुभाशुभ . वृत्तांत । हाल । फल माने जाते हैं । २.पुराणानुसार एक मगर जो प्राकाश क्रि० प्र०-याना :-जाना !-पहुँचना। -पाना।-भेना। में है और जिसे पुलोमा और कालका नाम की दैत्य कन्याओं .मिलना।-लाना।-सुनना। के प्रार्थना करने पर ब्रह्मा ने बनाया था । ३.राजा हरिश्चंद्र मुहा०-शाबर उड़ना=चर्चा फैनना । अफवाह होना । खराबर फैलना= . की पुरी जो आकाश में स्थिर मानी जाती है ४.सुपारी शाबर उड़ना । खबर लेना-(१) समाचार जानना । वृत्तांत .. का पेड़ ५. भद्रमोथा । भद्रमुस्तक । ६. वाघनख । वघनख । समझना । (२) दीन दशा पर ध्यान देना सहायता करना खपुष्प-संशा पुं० [सं०] १. धाकाशकुसुम । उ०-कोउ साहिव खपुष्प या सहानुभूति दिवालाना । जैसे,—प्राप तो कभी हमारी सावर सम नाम धरयो मनमानो।-प्रेमघन०, भा०२, पृ० ४१५! . ही नहीं लेते। (३)दंडित करना । सजा देना । जैसे,-पाज २.असंभव वात । अनहोनी घटना। . उनको खुब सवर ली गई। खपूना-संशा पुं० [सं०क्षप्, हिं० खप] खड़ा । खंग। उ०-पाप २. सूचना । ज्ञान । जानकारी । जैसे—(क) हमें क्या साबर कि , अकेले द्वार पर अपूर्वा वांधि के अलीखान बैठ्यो ।-दो सौ माप पाए हुए हैं । (ख) उन्हें इन बातों की क्या खाबर है। वावन, भा०२, पृ० ३०४।। क्रि०प्र०-रखाना 1-होना ।। खप्ता-संज्ञा पुं० [अ० सन्त] दे० 'खन्न' । उ०-दुनिया के स्वप्न ३.भेजा हुआ समाचार | संदेसा। - और खप्त बताकर उड़ा देते हैं। वो दुनिया, पृ०१६ । क्रि० प्र०-पाना ।-जाना।-मेजना ।-मिलना आदि । खप्पड़-संचा पुं० [सं० संपर] दे० 'खप्पर'। ४. चेत । सुधि । संशा । जैसे,-उन्हें अपने तन को भी नवर खप्पर-संशा पुं० [सं० लापर] १.तसले के आकार का मिट्टी का पात्र । नहीं रहती। २.काली देवी का वह पात्र जिसमें वह पधिरपान करती है। क्रि० प्र०-रहना --होना । महा-हाप्पर भरना-खप्पर में मदिरा आदि भरकर देवी पर पता। खोज। - चढ़ाना। क्रि०प्र०--मिलना।--लगना। ३.भिक्षापात्र । ४. खोपड़ी। ६. मुहम्मद साहब का प्रवचन । हृदोस (को०)। खफकात--संवा पुं० [घ. खफुकान] १. हृदय की धड़कन का साग खबरगीर वि०---[फा० खबरगीर] १. खबर लेनेवाला । देवा रेखा - हत्कंप । २.२. वहशत 1 पागलपन [को०] । .. करनेवाला । २. रक्षक पालक । खफकानी-वि०म० खफकानी] १.हृद्रोगी। हृदयरोगवाला। खबरगीर--संशा पुं० जानकारी लेनेवाला व्यक्ति । गुल्चर। २.घबढ़ानेवाला । बहशी [को०] । खबरगीरी-संत्री० [फा० साबरगीरी] १. देवारण । देखमाल । . खफगो-संच त्री० [फा० हाफगो] १.अप्रन्नता 1 नाराजगी । चौकती । २. सहानुभूति और सहायता । ३. पालन पोषण उ०-सब जग से वोलो हो हमसें इतनी खफगी ? हाय! उ०-कुंकुम, पृ० ६० । २. क्रोध । कोप । कि०प्र० करना।--रखना। खफा-वि० [सफो) १. प्रप्रसन्न । नाराज नाश । उ०-ए खवरदार-वि० [फा० खरदार) [संशा खबरदारी] होशियार - सनम तू ही मेरी शक्ल से रहता है हसा है मजल भी तो सजग । चैतन्य । सावधान । उ०-गफलत न जरा भी हो . . खफा 1--श्यामा०, पृ० १०२ । २. ऋद्ध । रुष्ट । खवरदार साबरदार !-भारतेंदु ग्र०, भा०१, पु०५२२ । सपी काफी छिपाया । गुप्त । 30-फरामोश कर खवरदारी- संथा स्त्री॰ [फा० खबरदारी] सावधानी होशियारी। मापस चौक में बफी जिक्र भो ही के जानी 'तुमें 1- खवरदिदा-वि० [फा० बर+विवह बचना या सावर दस्सिनी, पृ. २०८ ॥ देनवाला । सुचक [को०। (को०)।