पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५४०

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छप्पनर छन्वौसा छप्पन -संशा पुं०१. पचास और छह की संख्या । २. इस संख्या चबा-संथाली [सं० छापि] २• 'छवि' 17०-जर इस बम ध्व का सूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-५६ । की उरूसी दिग्राय । ती जोहर हो ज्यों दिप मने जल्यागाय । मुहा०-छप्पन टके का खर्च अधिक खर्च । उ० पूछो, रोटी दयिखनी, पृ० १३८ । दाल में ऐसा कौन सा छप्पन टके का पर्व है।-रंगभूमि, छबकाल-गग पु. देशा०] एक प्रकार का काध्यदीप । टिंगल काम भा०२, पृ०७०२ । में जय हिंगल भापा से मिन्न और भी भाषाएँ प्रयुक्त हो, तब यौ०-छप्पन भोग-(१) छप्पन प्रकार के व्यंजन । (२) वहाँ छ बकाल दोष होना है। उ०-यस चमतरी रूप, अंघ मंदिरों में होनेवाला एक उत्सव जिसमें छप्पन प्रकार के सो नाम उचार । फहै यले छवकाल, यिग्ध मापा यिसतारें। भोज्य पदार्थ भगवान् को प्रण किए जाते हैं। उ०-व्यंजन -रघ० रू०, पृ०१४। चार प्रकार के छप्पन भोग विलास । रामा एकरण भाव में छबड़ा--संगा पुं० [देश॰] [को० अल्पा० ध्यदी] १. टंकरा । दला। जाणं हरि के दास ।-राम० धर्म०, पृ. २४ । झाया । छितना। २. यांचा। छप्पय-संवा पुं० [सं० षट्पद, प्रा. छप्पय] एक मात्रिक छंद जिसमें वतखती-संशा सी० [हिं० छथि+प० समतोम शरीर की छह चरण होते हैं। सुदर बनावट । सुदरता । सन घज । विशेष-इस छंद में पहले रोला के चार पद, फिर उल्लाला के वरती-मंचा रसी० [हिल] दे० 'छ यताती'। दो पद होते हैं। लघ गस के क्रम से इस छंद के ७१ भेद नवरा-- दिगा छबटालिया। पिटारी । उ०-जैसे फाड़ होते हैं। जैसे - अजय विजय बलकर्ण बीर बतास बिहकर । सर्पको घबरे पफरि घर घी मु।यजल ग्रं॰, पृ०७३। मकंट हरि हर ब्रह्म इद्र चंदन जु शुभंकर । श्वान सिंह छवि-मंशा की. [ छवि भीमा। मांति । 'वि'। उ०- शार्दूल कच्छ कोकिल खर कुंजर। मदन मत्स्य ताटंक शेप सो को पाथि जो छवि कहि सके ता छन जमुना नीर फो। - सारंग पयोधर । शुभकमल कंद वारण शलभ, भवन अजंगम भारतेंदु ग्रं०, भा० १, पृ० ५४४ । सर सरस । गरिण समर सु सारस मेश पहि, मकर अली यौ---यिकर जोभा मा पुज। प्रत्यंत मुदर । 10-पियत सिद्धिहि सरस । भए सुदर नंदनंद। मुसफत जात मंद छथिनंद । --नंद ग्रं, छप्पर-संथा पुं० [हिं० छोपना] १. वास या लकडी मी फट्टियों और पृ०२३८ । छविगत 'छविहंद' । ३० रोपत पासू फूस आदि की बनी हुई छाजन जो मकान के ऊपर छाई रफत बरे, इंद्रायति छघिरास 1-इंद्रा०, पृ०५६। जाती है। छाजन । छान । छविलवा--'• [हिं०] २० पच्चीसा' ।--30---पोरा मन बाधि क्रि०प्र०-छाना।-डालना ।-पढ़ना ।-रखना । लो, तोरे गुन छल छघिलया रसिक रसिलया। घनानंद, यो०--छप्परबंद। गृ०४११। महा०-छप्पर पर रखना= दूर रखना। अलग रखना। रहने एवीला---वि० [हिं० छवि+ ईसा (प्रत्य०) गा सै० छविमत, प्रा. देना । छोड़ देना । चर्चा न करना। जिफन करना । जैसे,- छथिल्त[वि० श्री. ध्वीलो ] शोभायुस्त। मुहावना । तुम अपनी घड़ी छप्पर पर रखो, सायो हमारा रुपया दो। सुदर सजधज का। का। 30--(क) छला छबीले छप्पर पर फूस न होना=प्रत्यंत निधन होना। कंगोल लाल को, नवन नेह सहि नारि। सूबति चाहृति, साद. होना। अकिंचन होना। छप्पर फाड़कर देना- धनायास उर, पहिरति धरति तारि।-बिहारी २०, दो० १२३ । देना । विना परिश्रम प्रदान करना। बैठे बैठाए अकस्मात् (ब) अनु रे छचीली तोहि छवि सागो । नन गुलाल फैत संग देना । घर बैठे पहुंचाना । जैसे,- जब देना होता है तो ईश्वर जागी,-जायसी पं०, पृ० १४३।। छप्पर फाड़कर देता है। छप्पर रखना (१) एहसान बुदकिया-संघा स्त्री० हिं०] १. 'यु'दा'। रखना। बोझ रखना । निहोरा लगाना। उपन्त करना। छदा--संथा पुं० [हिं० छह+चुचफी ] गुवरले की तरह. का . (२) दोषारोपण करना । दोप लगाना । कलंक लगाना । एफ पीड़ा। २. छोटा ताल या गड्ढा जिसमें बरसाती पानी इसट्टा रहता विशेप - इसकी पीठ पर छह काली दकियां होती हैं । यह है। डाबर । पोखर । तलैया । यड़ा विला होता है । कहते हैं, इस काटा नहीं जीता। छप्परवंद'.-संवा पुं० [हिं० छप्पर फा० चद] १. छप्पर छाने- छब्बी--संहा . [हिं० छवि) दलालों को धोली में पैसा। वाला । २. पूना के प्रासपास बसनेवाली एका जाति जो अपने छब्बीस'--वि० [सं० पविश, प्रा. छपीसा जी गिनती में बोस को राजपूत कुल से उत्पन्न बतलाती है। और छह हो। छप्परबंद-वि० जिसने घर बना लिया हो। जो बरा गया हो। एबोस-संघा'०१. बीस से छह मधिक की संयपा। २. इस संध्या बसा हुमा । ग्राबाद । जैसे,-छप्परबंद असामी। ___ का सूचक पक जो इस प्रकार लिखा जाता है-२६ । छप्परबंध-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'छप्परवंद'। 30--चितेरा विधेरा छब्बीसवां-वि० [हिं० छम्पीस+याँ (प्रत्य०)] जो क्रम में पचीस - बारी लखेरा ठठेरा राज, पट्या छप्परबंध नाई भारभुनिया। अक और वस्तुमों के उपरांत हो। जिसका स्थान छन्त्रीस - मध०.१०४। पर हो।