पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५४३

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छल' छराना- १६२१ ' पदिकनि के छरा । सुदर गजमोतिन के हरा ।-नंद० प्र०, छरेरा-वि० [हिं० छरहरा][वि० सी० छरेरी] दे० 'छरहरा' । उ०-- .. पृ० २३५ । २. लर । लड़ी। उ० --गुजहरा के छरा उर में वदन छरेरा है या दुहरा । --फिसाना०, भा० ३, पृ० ५२ । पेट पितंबर की छवि न्यारी ।--(शब्द०)। ३. रस्सी। छरोर, छरोरा--संज्ञा पुं० [सं०क्षुर, पू० हिं० छिलोर, छिछोरवा, - . . . ४. नारा । इजारवंद । नीवी। उ०---(क) कहै पद्माकर छिलोरा (=छिलना)] शरीर में काँटे या और किसी नुकीली नवीन प्रधनीबी खुली अधखुले छहरि छरा के छोर छलक । - वस्तु के चुभकर कुछ दूर तक खिंच जाने के कारण पड़ी पद्माकर (शब्द०)। (स) तह प्रीतम ढीठ भए रस के बस हाथ हुई लकीर । खरोच । उ०-पहों छरोर जो पात को फटिह चलावत जोरी करें। गिरि जच्छनधन के वस्त्र कछु खिचि, पटके हूँ तो ही न डरहौं।-(शब्द०)। ... छोर छरान की डोरी परें।--लक्ष्मण सिंह (शब्द०)। छदै---संचा पुं० [सं०] उलटी । के। वमन [को०] । छराना--क्रि० स० [हिं० छलना ] छलना । डराना । मुग्ध छर्दन--संह पुं० [सं०] वमन । के करना। करना । भुलाना । प्राविष्ट करना । उ०--टूटि तार अंगार छदि --संज्ञा सी० सं०] १. वमन । के। उलटी । २. एक रोग

वगा। कामभूत जनु मोहिंछरावं-नंद० ग्रं०, पृ०१३४॥

जिसमें रोगी के मुह से पानी छूटता है और उसे मचली पाती रिंदा--वि० [अ० जरीदह, हि० छरीदा] दे० 'छरीदा'। है और वमन होता है। छरिया---मंया पुं० [हि० छड़ी+इया (प्रत्य॰) छड़िया । छड़ीवरदार । विशेष---वैद्यक में इस रोग के दो भेद माने गए हैं -एक साधारण . बोबदार। - छरिला - संचा पुं० [हिं० छरीला) दे० 'छरीला'। , जो कड़ ई, नमकीन, पतली या तेल की चीजें अधिक खाने तथा छ -मंचा श्री० [हिं० छड़] दे० 'छड़ी'। अधिक और अकाल भोजन करने से हो जाता है । अन्य रोगों छरी--वि० [हिं० छाँहना] दे० 'छड़ो"। के समान इसके भी चार भेद हैं-वातज, पित्तज, श्लेष्मज और छरी--वि० [सं० छजिन > छली] दे० 'छली' । त्रिदोषज । दूसरा पागंतुक जो अत्यंत श्रम, भय, उदग, अजीर्ण छरोदा-वि० [अ० जरीदह ] १. अकेला । तने तनहा । बिना किसी आदि के कारण उत्पन्न होता है। वैद्यक में यह पांच प्रकार

'संगी साथी का । २. बिना कोई वोझ या असबाब लिए।

का माना गया है-वीभत्स, दोहृदज, प्रामज, असात्म्यज और कृमिज । इस रोग से कास, श्वास, ज्वर आदि भी हो जाने हैं। विशेष-यात्रा के संबंध में इस शब्द का प्रयोग अधिक होता है। छरीदार --वि०, संज्ञा पुं० [हिं० छड़ीदार] दे० 'छड़ीदार' । उ०-- पाँ० --प्रच्छर्दिका । छर्द । वमन । वमि। छदिका। वांति । (क) छरीदार वैराग विनोदी मिटकि बाहिरै कीन्हें । -सूर०, उद्गार । छर्दन । उत्कासिका। ११४० । (ख) इक इस पोंरि ठाढ़ जब भयऊ । छरीदार तब छदि-संज्ञा श्री॰ [सं० छदिस] १. घर । २. पाच्छादनयुक्त स्थान। पूछन लयऊ 1- कबीर सा०, पृ० २५७ । ___ सुरक्षित स्थान (को०) । ३. तेज । ४. उद्गार । वमन । छरोला-संज्ञा पुं० [सं० शैलेय] काई की तरह का एक पौधा जिसमें . छदिका--संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वमन । २. विष्णकांता । केसर या फूल नहीं लगते । पथरफूल । बुढना । ... विशेष—यह पौधा वास्तव में खुमी के समान परांगभक्षी छदिकारिपु-संज्ञा स्त्री० [सं०] छोटी इलायची। छदिन'--वि० [सं०] वमन रोधक । मिचली का नाशक । ' (पारासाइट) पौधा है जो भिन्न भिन्न प्रकार की काइयों पर छदिघ्न -संज्ञा पं० [सं०] महानिब । वकायन । जमकर उन्हीं के साथ मिलकर अपनी वृद्धि करता है । यह छर्रा--संज्ञा पुं० [हिं० छरना, झरना, या अनु० छरछर ] [ धौ० सोडवाली जमीन यथा कड़ी से कड़ी चट्टानों पर उमड़े हुए छरौं ] १. छोटी कंकड़ी। कंकड़ आदि का छोटा टुकड़ा । २. चकत्तों या बाल के लच्छों के रूप में फैलता है और कुछ लोहे या सीसे के छोटे छोटे टुकड़ों का समूह जो बंदूक में भूरापन लिए होता है। यह पौधा अधिक से अधिक गर्मी भरकर चलाया जाता है। ३. वेग में फेंके हुए पानी के छोटे या सी सह सकता है। यहाँ तक कि जहां और कोई छोटे छोटों या कणों का समूह । वनस्पति नहीं हो सकती, वहाँ भी यह पाया जाता है । छलंका-संज्ञा स्त्री० [हिं० छलांग] दे० 'छलांग'। उ०-चंचलता वे - सूखने पर इसमें से एक प्रकार की मीठी सुगंध आती है चखन सी झपन माहिं हरी न । ऐसे कौन हरीन हैं जासु जिसके कारण यह मसालों में पड़ता है। मौषध में भी छलंक हरीन ।-स० सप्तक, पृ० २६६ । - इसका प्रयोग होता है। वैद्यक में यह चरपरा, कड़ प्रा, कफ और वात फा नाशक और तृष्णा या दाह को दूर करनेवाला छलग -संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'छलांग । - माना जाता है तथा खाज, कोढ, पथरी यादि रोगों में दिया छल'--संज्ञा पुं० [सं०] १. वास्तविक रूप को छिपाने का कार्य जिससे जाता है । इसे पथरफूल और बुढ़ना भी कहते हैं । हिमालय कोई वस्तु या कोई वात और की और देख पड़े। वह व्यवहार - पर यह चट्टानों, पेड़ों आदि पर बहुत दिखाई देता है। जो दूसरे को धोखा देने या बहलाने के लिये किया जाता है । - पर्या-शैलेय । शैलाय । वृद्ध । शिलापुष्प । गिरिपुष्पक । २. व्याज । मिस । बहाना । ३. धूर्तता। वंचना । ठगपन । शिलासन । शैलज । 'शिलेय । कालानुसार्य । गृह । पलित । यौ०-छलकपट । छलछन । छल छिद्र । छलछात। छलछेव । जीणं । शिलादद्रु । छलवल । छलविद्या=छल छिद्र । (क) सपा