पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५४९

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१६२७ धाजना छा-संज्ञा स्त्री० [ मं०] १. पाच्छादन । छिपाना। २. शावक। छागमित्र- पुं० [सं०] एक प्राचीन देश का नाम । छौना । शिशु । ३.पारा । ४. चिह्न [को०)। छागमुख- संशा पुं० [सं०] १. कार्तिकेय का छठा मुख जो बकरे का छाई-संज्ञा स्त्री॰ [सं० क्षार] १. राख । उ० काहे को शिरि सा था । २. कार्तिकेय का एक अनुचर।। - छाई पाई । -प्रारण, पृ० ५३ । २. पाँस । खाद । ३.बायलर छामर:-संजा स्त्री० [सं० छागल] बकरी । उ-छागर एक साधु ने .." में पूरी तरह जलने के बाद निकला हुपा कोयले का छर्रा खाया ब्राह्मन खाया गाई-पुं० दरिया, पृ० ११२। जिसे महीन करके ईटों की जोड़ाई की जाती है। छागरथ-संज्ञा पुं० [सं०] अग्नि । छाक'-संवा श्री० [हिं० छकना] १.तुष्टि । इच्छापूर्ति । जैसे, छागल -संध्या पुं० [म०] १. बकरा। बकरे के खाल की बनी हुई छाक भर बाना, प्यास भर पीना। २.वह भोजन जो काम चीज । ३. एक प्रकार का पत्स्य (को०] । करनेवाले छोपहर को करते हैं। दुपहरिया। उ० (क) छागल-संवा स्त्री०१. चमड़े का डोल या छोटी मशक जिसमें बलदाऊ देखियत दूर ते प्रावत छाक पठाई मेरी मैया। पानी भरा या रखा जाता है। यह प्रायः बकरे के चमड़े का तुलसी (शब्द॰) । (ख) सुनो महाराज प्रात ही एक दिन बनता है। २. मिट्टी का करवा । श्रीकृष्ण बछड़े चरावने बन को चले, जिनके साथ सब छागल:--मंशा स्त्री० [हिं० साफल] एक गहना जिसे स्त्रियांपरों में ग्वाल बाल भी अपने अपने घर से छाक ले ले हो लिए। पहनती हैं । चाँदी की पटरी का गोल कड़ा जिसमें घुघरू लगे 'लल्लू (शब्द॰) । (ग) पाई छाक बुलायो श्याम । -सूर रहते हैं। झांजन । (शब्द०) । ३ नशा । मस्ती। मद । उ० (क) सज्जशा छागवाहन-संवा पुं० [सं०] अग्नि का एक नाम [को०] । "मिलिया सज्जा , तन मन नयन परत । ग्रंणपीआइ पाणग छागिका. छागी संज्ञा स्त्री० [सं०] बकरी [को०) । 'ज्यू नयणे छाक चढ़त ।--ढोला०. दू० ५३४ । छाछ-संज्ञा स्त्री० [सं० छच्छि का] १. वह पनीला दही या दूध जिसका (ख) उर न टरै नींद न पर, हरै न काल बिपाक । श्नि घी या मक्खन निकाल लिया गया हो। मथा हुमा दही। छार्क उछ न फिर खरी विषम छवि छाक !-बिहारी मठा। मही। सारहीन तक। उ०-ताहि अहीर की (शब्द०)। (ग) तजी संक सकुषति न चित बोलति वाक छोहरियाँ छछिया भर छाछ पं नाच नचावै ।-रसखान कुवाक । दिन छनदा छाकी रहति छुटति न छिन छबि छाक । (शब्द०)। २. वह भट्ठा जो घी या मक्खन तपाने पर .. -बिहारी (शब्द)। ४. मैदे के बने हुए बड़े बड़े सुहाल नीचे बैठ जाता है। - जो विवाहों में जाते हैं । माठ। छाछठा-वि० [हिं०] दे० 'छासठ' ।। छाकनाg+--क्रि० अ० [हिं० छक ना] १.खा पीकर तृप्त होना । छाछि:--सी० [हिं०] दे० 'छाछ' । अधाना । प्रफरना । उ०-खटरस भोजन नाना विधि के छाज-संशा पुं० [सं० छाद] १. अनाज फटकने का सींक का करत महल के माहीं। छाके खात ग्वाल मंडल में वैसी तो वरतन । सूप। ... सुख नाहीं । - सूर (शब्द०)। २. शराब आदि पीकर मस्त मुहा०-छाज सी दाढ़ी-बड़ी और चौड़ी दाढ़ी। छाजों मेंह होना । उ०-सुन के निधान पाए हिय के पिधान लिए ठग । बरसना=बहुत पानी वरसना । मूसलधार पानी बरसना । के से लाडू खाए प्रेम मधु छाके हैं।-तुलसी (शब्द०)। २. छाजन । छप्पर । ३. गाड़ी या बग्घी के ग्रागे छज्जे की तरह छोकता-क्रि० अ० [हिं० छकना (=हैरान होना)] चकित होना। निकला हुमा वह भाग जिसपर कोचवान के पर रहते हैं। . भौचक्का रह जाना । हैरान होना । 30-विविध कता के छाजन -संशा पुं० [सं० छादन] अाच्छादन । वस्त्र । कपड़ा। उ०- जिन्हें ताके सुर वृद छाके, वासव धनुष उपमा के तुगता के 4 छाजन भोजन प्रीति सों दीजै साधु वुलाय। जीवत जस हो . . हैं। रघुराज (शब्द०)। जगत में अंत परमपद पाय ।-कबीर (शब्द०)। छाग- संज्ञा पुं० [सं०] [श्री. छागी] १.बकरा । यौ०-भोजन छाजन =खाना कपड़ा। .. विशेष-भावप्रकाश में इसके मांस को बलवर्धक पौर त्रिदोष. छाजन:--संज्ञा बी० १. छप्पर । छान। खपरैल । उ० -तपै लाग नाशक कहा है। भोजराज के युक्तिकल्पतरु में वर्ण के अनुसार जब जेठ अपाढ़ी। भइ भोकह यह छाजन गाढ़ी। -जायसी इनका परीक्षण है तथा बृहत्संहिता के ६५ वें अध्याय में (शब्द०)। २. छाने का काम या ढंग । छवाई। ३.कोढ - इनके शुभाशुभ लक्षण हैं। वि० दे० 'बकरा' ।। की तरह का एक रोग जिसमें उगलियों के जोड़ के पास २. मेष राशि (को०)।३. वह घोड़ा जो चल न सके । छिन्नगमन तलवा चिड़चिड़ाकर फटता है और उसमें घाव हो जाता . अश्व (को०)। ४. बकरी का दूध (को०)। ५. पाहुति । है। यह रोग हाथियों को भी होता है । अपरस । पुरोटाश (को०)। धागण, छान--संहा पुं० [सं०] कंडी या उपनी की प्राग। छाजना--कि० अ० [सं० छादन] [वि० छाजित] १. शोमा देना। छागभोजी-साडा पुं० [मं० छागमोजिन] ३.वह जो बकरे का मांस अच्छा लगना । भला लगना । फबना । उपयुक्त जान पड़ना। खाता हो। २. भेड़िया। . उ--(क) मोही छाज छत्र यो पाटू । सव राजन भुई छागमय-संघा पुं० [सं०] १. वह जो (प्राकृति प्रादि में) बकरे के धरा ललाटू ।-जायसी (पाग्द०) । (ख) जो कछु कहह - ... समान हो, बकरा जैसा । २. कातिकेय का छठा मुख। . तुमहि सब छाजा । - तुलसी (राब्द०)। २. शोभा के सहित