पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५५

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खबरनवीस खेमना खवरनवीस-वि० [फा० वरनवीस] सूचना या समाचार ले जाने

  • या लिखानेवाला । उ०-समाचार देने और पादेश लेने के

लिये अधान जासूस सरदार और साबरनवीस हाजिर हो गएं।-- मृग०, पृ०७५ । खबरनवीसी-संज्ञा स्त्री० [फाःसाबरनवीसी] दे० 'अखबारनवीसी'। उ०-किसने मारी हाय हाय । खबरनवीसी हाय हाय ।- भारतेदु न, भा० २, पृ०६७८ । खवरसा- वि० [फा०] संदेशवाहक । पत्रवाहक । सूचक [को०] । खबरि -संवा खो० म० खबर ] दे॰ खबर'। उ०-भूप द्वार . तिन खबरि जनाई । दसरथ नृप सुनि लीन वोलाई ।---तुलसी खबरिया--संज्ञा स्रो० [अ० खबर+हि० इया (प्रत्य०)] दै० खबर' । उ०--पूछत चली खबरिया, मितवा तीर। - हरपित प्रतिहि तिरियवा, पहिरत चीर ।-रहीम (शब्द॰) । खबरी-सञ्ज्ञा पुं० [फा० खबर+ई] दूत । संदेशवाहक ।-(डि०) खबाष्प-सज्ञा पुं॰ [सं०] ओस । अवश्याय [को०] | खंबीस--संज्ञा पुं० [अ० खबीस] [भाव-खबासत; खवीसी]१. . वह जो दुष्ट और भयंकर हो । भूत प्रत प्रादि (को॰) । खबोस–वि० १.अपवित्र । नापाक । गदा । २. दुष्ट । फरेबी [को०] खंबीसन-संघा सी० [अ० खबीस] दुष्ट या फरेबी औरत । उ०- .. कुछ दिन हुए एक खवीसन आई थी, क्या जाने कौन साहब . उसके मालिक थे।-भारते दु , भा० १, पृ० ३५७ । खबीसा-संशा सी० [अ० खचीसी दुष्टता। बदमाशा। फरेब । उ०-खुदी खबीसी छाँड सवी शद साधु खरत भी है। ... कवीर सा०, पृ० ८८७ १२.खवास ओरत।। खब्त-संज्ञा पुं० [अ० खन्त] [वि. खमी पागलपन । सनक । झक्क । मुहा०—खत सवार होना- सनक चढ़ना। पागलपन रहना। या-खन्तुल हवास-खनी । विकृत बुद्धिवाला। पागल। खब्ती-वि०म० ख़त्ती) जिसे खन्त हा। सनकी । सोदाई। पागल । खब्बर, खब्बल- संज्ञा पुं॰ [देश॰] दूध.. नाम की धास । खब्बा-व० [पं०२.दाहिने का उलटा। वायाँ। २.बाएं हाथ स काम करनवाला! .. खब्बाज-वि० [अ० लबान । रोटी पकानेवाला । नानबाई की। खभड़ -वि० [अ० साब्बास या हि० खामिड वुड्ढा और दुबल। दुबला पतला । उ०-वह गाय ता बिलकुल खन्नई हो गई ' ... खभड़ना -क्रि० स० [हिं० दे० 'खभरना' ". .:. खभरना क्रि० स० [हिं० भरना ] १. मिश्रित करना । मिलाना।

जैसे-गेहूं के आटे मे जी का पाटा खमरना। २.उथल

... पृथल मचाना । उ-प्रोदि दिन के ढाल ढकेला। भलों लरघा बलकरत वु देला । खभरि सेत हूँ पर बिचलांनो। सनन के उर साल सखाया-लाल (शब्द०)। खभरुमा-वि० [हिं० खभरना) पु पचली स्त्री से उत्पन्न (बालक) । छिनाल का (लड़का)। खभार- संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे० 'खंभार' २०-जो जाझी ताक सरन, ___ताको ताहि खभार ।दरिया० बानी, पृ०२१। खभ्रम-संज्ञा पुं० [सं०] ग्रह । नक्षत्र [को०)। खभ्रांति--संज्ञा स्त्री० [सं० खभ्रान्ति श्येन या चील को जाति का पक्षी को। खम'-संज्ञा पुं० [फा० खम] १. टेढ़ापन । टेढ़ाई। कज । झुकाव । मुहा०- खाम खाना%D(१) मुड़ना। अकना। दबना । 30- सूदन समर साहि सैन तृन तून गनी हनी देह गोलिन न खाई खेत खम है।--सूदन (शब्द०)। (२) हारना । पराजित होना।नीचा देखना । उ० -पहर रात भर मार मचाई। मुरक्यो तुरक उहाँ खम खाई।-लाल (शब्द०)। खम ठोफना=(१) लड़ने के लिये ताल ठोंकना । उ०-पाए तह जहें खाल छलकारी । फेट बांधि खामोकि सागरीलल्लू (शब्द॰) । (२) दुहता दिखलाना। सम ठोंककर =(१) ताल ठोंककर । (२) दृढ़ता या निश्चयपूर्वक । जोर देकर । जैसे- 'मैं म ठोंककर यह बात कह सकता हूँ। खम बजाना या मारना = दे० 'खम ठोंकना। यो०-समदम । रामदार । २ गाने के वीच बीच में वह विश्राम जो लय में लोच या लचक लाने के लिये किया जाता है। क्रि० प्र०-लेना। खम --वि० [सं० क्षम, प्रा खम] १. समर्थ शयितमान् । झुका हुँप्रा । ३. व 1 टेढ़ा। खमकना -क्रि० अ० [अंनु०] खाम खम शब्द करना । उ०-: खमनात वीर करि करि सुचोख । लमकंत तुरंगम पाइ पोपे । सुजान०, पृ० ३८। खमकरा-संघा पुं० [देश॰] मकड़ा नाम की घास जो पशुओं के लिये बहुत पुष्टिकारक समझी जाती है । वि० दे० 'मकड़ा। खमणि-संधा पुं० [सं०] सूर्य । रवि (को०] । खमणी@t-वि० [सं०क्षम प्रा०' सांम+णी(प्रत्य॰)] क्षमावती। क्षमाशीला । उ०—नमणी खामणी बहुगुणी, सुकोमली जु सुकच्छ । गोरी गंगा नीर ज्यूमन गरबी तन अच्छ।-ढोला०% खमदम-संज्ञा पुं० फा० खम +दम] पुरुषार्थ । साहसं। खमदार--वि• [फा० खमदार] १. झुका हुमा । टेढ़ा । उ०-वही दिलदार खुच पाता है जो होवे बाका । खूब लगती नहीं बहु दिलदार खुश्चमाता इजा हावाका - . तेग जो खमदार नहीं।- कविता कौ०, भा०४, पृ० २० । १. पेंचदार । घुमावदार । घुघराला । उ०-वह जुल्फ मेरे महरु खमदार कहाँ है ।-कंवीर मं०, ३०३२४॥ खमध्य-संशा पु० [सं०] आकाश का मध्य भाग । सिर के ऊपरं को केंद्रविदु (को०)। खमना--किस० [सं० क्षम्, प्रा० खस सहन करना बिमा