पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५५९

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१६३७ . छिटकाना छितिनाथ छिटकाना--क्रि० स० [हिं० छिटकना] चारों और फैलाना। इधर छिण -संक्षा पुं० [सं० क्षण] ० 'क्षणं'। ... .उधर डालना। बिखराना । २. छटकाना । दूर करना। छित'--वि० [सं०] १. विभक्त । २. कृण । दुर्बल [को०] । छिटकी संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दे० 'छींट', 'छींटा'। छित --वि० [सं० सित] श्वेत । धवल । छिटकुनी -संज्ञा स्त्री॰ [अनु०] पतली छड़ी। कमची । छित --संज्ञा स्त्री० [सं० क्षिति ] पृथ्वी । धरती । उ०--मध्यम छिटनी-संज्ञा स्त्री० [सं० शिक्य या हिं० छंटना] बाँस की फट्टियों हित आरात छित, बाल नारि इमि जानि ।-पोद्दार अभि० ..' या पेड़ के डंठलों आदि की बनी हुई छोटी टोकरी। झौवा । ग्रं०, पृ० ५३४ । . डलिया। यौ०--छित्तनायक राजा । उ०--छाडा घरतीडो छितनायक । छिटवा - संद्या पुं० [सं० शिक्य या हिं० छिटना] [स्त्री० अल्पा० सवलां घायक प्रजा सहायक ।--रा०६०, पृ०१३ । - छिटनी] वास की फट्टियों आदि का टोकरा। छितना-संहा पुं० [हिं०] [ी छितनी] छिछला और बड़ा टोकरा। छिटोका-संज्ञा पुं० [हि. छिटकाना] एक बालिश्त लंबी मोटी छितनार --वि० [हिं० छतमार] छितराया हमा। फैला हुप्रा। .. लकड़ी जिसे घुनिए पैर के अंगूठे और उसके पास की गली उ०--चिव्या चारि डाह छितनारा। सुर नर मुनि महि से दबाकर और उसमें फटके की ताँत फंसाकर रूई धुनते हैं । - खोजनहारा।-सं० दरिया, पृ०६६ । छिटी संज्ञा स्त्री० [हिं० छKat] छोटा छींटा। सीकर। सूक्ष्म छितनी--संज्ञा स्त्री० [सं० छन, प्रा० छत] छोटी और छिछली जलकण। ___टोकरी। - छिडकना--कि० स० [हिं० छींटा+करना] १. पानी या किसी छितरना-क्रि० प्र० [हिं०] ३० छितराना'। और द्रव पदार्थ को इस प्रकार फेकना कि उसके महीन छींटे लितरवितर-विEि12 ana फैलकर इधर उधर पड़ें। पानी प्रादि के छीट डालना । भिगान छितराना--किर प्र. [सं० क्षिप्त+करण, प्रा० छितकरण, या तर करने के लिये किसी वस्तु पर जल बिखराना । जैसे, छित्तरण अथवा सं० संस्तरण] खंडों या कणों का गिरकर पानी छिड़कना, रंग छिड़कना, गुलाबजल छिड़कना । उ०- इधर उधर फैलना । बहुत सी वस्तुपों का बिना किसी क्रम पानी छिड़क दो तो यहाँ की धूल वैठ जाय !-(शब्द०)। २. के इधर उधर पड़ना। तितर बितर होना । बिखरना । न्योछावर करना । जैसे, जान छिड़कना (स्त्री)। ३. भुरकना। जैसे,—(क) हाथ से गिरकर सब चने जमीन पर छितरा गए भुरभुराना। .. (ख) सब चीजें इधर उधर छितराई पड़ी हैं, उठाकर ठिकाने छिड़कवाना--क्रि० स० [हिं० छिड़कना] छिड़कने का काम से रख दो। छितराना-क्रि० स० १. खंडों या कणों को गिराकर इधर उधर छिड़काई संक्षा श्री० [हिं० छिड़कना] २. छिड़कने की क्रिया या फैलाना । बहुत सी वस्तुओं को बिना किसी क्रम के इधर भाव । छिड़काव । २. छिड़कने की मजदूरी। उधर डालना। विखराना। छींटना। २. सटी हुई वस्तुओं छिड़काना-क्रि० स० [हिं० छिड़कना का प्रे० रूप ] ३० - को अलग- अलग करना । दूर दूर करना । घनी वस्तुप्रों • छिड़कवाना'। को विरल करना। • छिड़काव---संहा पु० - [हिं० छिड़कना] पानी प्रादि छिड़कने की मुहा०--टांग छितरामा=दोनों टांगों को बगल की घोर दूर किया । छोटों से तर करने का काम । जसे.- यहाँ सड़को दूर रखना । टाँगों को बगल या पार्श्व की ओर फैलाना । पर छिड़काव नहीं होता। 30--सड़क सफाई होत करि जैसे, टांग छितराकर चलना । - छिड़काव । बग्गी वैठि हवा खाते. प्राचं उमराव ।-भारतेंदु छितराव-संशा पू० [हिं० छितराना] छितराने का भाव । विखरने ०, भा०.२, पृ० ६८६ । का भाव। ' छिड़ना--क्रि० प्र० ० छेड ना] प्रारंभ होना। शुरू होगा। छिति@ संहा स्त्री० [सं० क्षिति] १.भूमि । पृथ्वी। उ०.....सरि . · चल पड़ना। जैसे, वात छिड़ना, झगड़ा छिड़ ना, चर्चा मनि मंदिर खरी छिति छलकत छवि जाल । लसत मंजु महंदी छिड़ना, सितार छिड़ना । नखनि चखनि विलोकहु लाल।-स० सप्तक, पृ० ३६०। .छिड़ाना-क्रि० स० [सं० छिद्] १. मुक्त करना। छुड़ाना । छुड़ा २. एक का अंक । उ०-संवत् ग्रह ससि जलधि छिति छठ देना । उ० - दुढ़ बंधन संसार तें गुह्यक दिए छिड़ाइ ।-नंद० तिथि वासर चंद । चैत मास पछ कृष्ण में पूरन पानंदकंद । . ०, पृ० २५४ । २.छुड़ा लेना। छीन लेना। उ०-देखि --बिहारी (शब्द०)। . . सखी हरि को मुख चारु । मनहू छिड़ाइ लियो नंदनंदन, छितिकांत--संशा पुं० [सं० क्षितिकान्त] भूपति । राजा। ___वा ससि को सत सारु ।--सूर०, १० । १७६६। . छितिज--सा पुं० [सं० क्षितिज] दे॰ 'क्षितिज'। उ०-छिप्यो छिडिमाना@---क्रि० प्र० [देश०] छितरा जाना। बिजरना। छपाकर छितिज छोरनिधि..छ गुन छंद छल छीन्हो -श्यामा. .: विकीर्ण होना । उ०-फरतल कांपु कुसुम छिडिप्राउ । विपुलं .. पृ० १२०।- पुलक तनु वसन झपाउ ।--विद्यापति, पृ० ५१३ । .: ... छितिनाथा-संज्ञा पुं० [सं० क्षितिनाथ] भूपति । राजा।