पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५६०

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छितिपाल १६३६ छिनवि छितिपाल -सा पुं० [सं० क्षितिपाल] दे० 'छितिनाथ' । उ यो०-छल छिद्र । छिदानुजीवी, छिद्रानुसंधानी, छिद्रानुसारी- छडि छितिपाल जो परीछित्त भए कृपालु । तुलसी ग्रं०, दे० 'छिद्रान्वेपी। पृ. २४५ । ५. फलित ज्योतिष के अनुसार लग्न से पाठवां घर । ६. नौ की छितिराना-क्रि० अ० [हिं०] दे० 'छितराना'। उ०--मानुष संख्या । राजनीति में शन का भेद्य या दुर्वल पक्ष । कमी। .. मरि धरती मों जाई । माटी होय हाड़ छितिराई।--इंद्रा० कमजोरी (को०)। ८. प्राकाश (को०)। पृ० १६१। छिद्रकणं-वि० [म०] छिदे या बिधे कानवाला। जिसके कान छितिरह--संज्ञा पुं० [सं० क्षितिरुह] पेड़ । वृक्ष । छिदे हों [को०] । छित्तीसरा--संज्ञा पुं० [सं० क्षितीश राजा । छिद्रता-संज्ञा स्त्री० [हिं० छिद्र+ता प्रत्य०] क्लंक। दोष । छित्ति'--संज्ञा स्त्री० [सं०] काटना। छेदन करना । विभाजित हीनता । 10.-समुंद खार गंगा गदल, जल गुनवंता सीत । . करना । खंड खंड करना [को०] । रवी तेज ससि छिद्रता, दरिया संतारीत ।--दरिया० बानी, छित्ति -संथाली [सं० क्षिति, प्रा० छित्त] दे० क्षिति' । पृ० ३६। ७०-- तेग भारि पंमार जैत जग हथ्थ बत्त किय । मंग हैल छिद्रदर्शी-वि० [म. छिद्रदशिन] [वि. स्त्री छिद्रवशिनी] सुगल्ह तात अविवेक छित्ति दिय ।-पृ० रा०, १२ । ३८ । पराया दोप देखनेवाला । नुयस निकालनेवाला। खुनर छित्वर--वि० [सं.] १. छेदक । २. धृतं । ३. वरी। निकालनेवाला। छिद@----संजा पुं० [सं० छिद्र] दे० 'छेद' । उ०--पंच सरन छिद छिद्रदी-संक्षा पुं० एक योगभ्रष्ट ब्राह्मण का नाम जो हरिवंश के डारि किए मनमथ को बेझा ।-नंद० ग्रं०, पृ० २१०॥ अनुसार वाभ्रव्य का पुत्र था। छिद्रपिप्पली-संज्ञा स्त्री० [सं०] ३० छिद्रवैदेही' को। छिदक-संसा पुं० [सं०] १. इंद्र का प्रायुध । बज । २. हीरा । छिद्रवैदेही-मंडा मोर[सं०] गजपिप्पली । गजपीपल । - 1 (को । छिद्रांतर-संशा ० [सं० छिन्न+अन्तर] बॅत। सरकंडा । छिदना'--क्रि० अ० [हिं० छेदना] १. छैद से युक्त होना । सूराखदार होना । भिदना । बिधना । जैसे.--इस पतली सुई नरकुल [को०)। छिद्रांश- मया पुं० [सं०] सरकंडा । नरकुल किो०)। से यह कागज नहीं हिदेभा । २. क्षतपूर्ण होना । घायलहोना। छिद्रात्मा-वि० [#० छिद्रात्मन] १. खलस्वभाव । कुटिल । खल । जखमी होना । जैसे,--सारा शरीर तीरों से छिद गया था। २ अपनी त्रुटि कहनेवाला । दूसरों से अपना दोष व्यक्त करने- छिदना--नि. स. १. थाम लेना। सहारे के लिये पकड़ लेना। वाला (को०)। २ छेदना । छेद करना । उ०--लटनि ते चुवति जु जलकन छिद्रान्वेषण-संज्ञा पुं० [सं०] [वि. छिद्रान्वेषी] दोष हूँढना । जोती। जनु ससि छिदि छिदि डारत मोती।-नंद० ग्रंक नुक्स निकालना । खुचर करना । उ०- इस छिद्रान्वेषण रत पृ० २६८। जग में सभी छिद्र लखते हैं, प्रियतम ।-अपलफ, पृ० ६६ । छिदना--संक्षा पुं० [सं० छन्द(नियंत्रण)] वरच्छा । फलदान । छिद्रान्वेषी-वि० [८० छिद्रान्वेषिन.] [वि० सी० छिद्रान्वेषिणो] . मंगनी। छिद्र ढूढ़नेवाला। पराया दोष दूढनेवाला। घर छिदरा'-वि० [सं० छिद्र] [वि० सी० छिदरी] १. छितराया निकालनेवाला। हुमा । जो घना न हो। हिरल । उ०-इस तेरी छिदरी छिद्राफल-संक्षा पुं० [सं०] माजूफल । छाया में दो वै हुए मन देखे हैं।-दीप ज०, पृ०१४६ छिद्रित - वि० [सं०] १. छेदा हुआ। वेधा हुा । २. जिसमें दोष २. झंझरीदार । छेददार । ३. फटा हुा । जर्जर । लगा हो। दूपित । ऐवी। छिदरा-वि० सं० क्षुद्र] प्रोछा ।। छिद्रोदर--संज्ञा पुं० [सं०] क्षतोदर नामक पेट का रोग। छिदवाना--क्रि० स० [हिं०] १० 'छेदाना। छिन --संश्वा पुं० [सं० क्षरण] दे० 'क्षरण' । उ० सखि, छिन धूप छिदा-संभाली [सं०] छेदने या काटने की क्रिया [को०)। प्रौर छिन छाया । यह सब चौमासे की माया ।-साकेत, पृ० । २७६। छिदाना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'छेदाना' । छिनक -कि० वि० [सं० क्षण+एक] एक क्षण। दम भर। छिदि-संज्ञा स्त्री० [सं०] १ कुल्हाड़ी। २.वज । ३. उच्छेदन । थोड़ी देर । उ०—तुन समूह को छिनक में जारत तनिक काटना [को०] 1 अंगार ।-(शब्द०)। छिदिर-- संज्ञा पुं० [सं०] १.कुल्हाड़ा । कुठार । २. तलवार।... छिनकना-कि० सं० [हिं० हिडनका नाम का मल जोर से सांस - असि । ३.अनल । अग्नि । पांवक । ४. रस्सा । डोरी को बाहर करके निकालना । जैसे,—नाम छिनकना। छिद्र-संशा पुं० [सं०] [वि. छिद्रित] : १. छेद । सूराख । २. छिनकना-क्रि० स० [हिं० चमकना] १. भड़ककर भागना । गड्ढा । विवर। बिल । ३. अवकाश । 'जगह । ४.दोष । चमकना । दे० 'छनकना' । २. रंजक चाट जाना (बंदूक)। . त्रुटि । जैसे, छिद्रान्वेषण। . .. शिनवि--संक्षा की- [सं० क्षण+छवि बिजली।