पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

निता छिन्नमस्तका छिनता---संवा पुं० [सं० क्षीण+ता (प्रत्य॰) हाणता । दुर्बलता। छवि केसे कई कोउ कवि तन के छिलर मानौं भए हैं काम .. .कमजोरी । उ०---छिनतां तन में बहुत लावै। कंबहीं सुख रहित ।-नंद० ग्रं॰, पृ० ३७७ । ।

नाहीं दुख पावै ।-सं० दरिया, पृ०४१।

छिनौछवि --संथा सी० [हिं०] दे० 'छिनछवि। ..

छिनदा--संका औ• [सं० क्षरणदा] दे० 'क्षणदा' ।

छिन्न'--वि० [सं०] १. जो कटकर अलग हो गया हो । जो काट- छिनना:-कि० अ० [हि छीनना ] छीन लिया जाना । हरण कर पृथक् कर दिया गया हो । खंडित ।। .... होना। । यो०-छिन्नकर्ण-कनकटा (पशु) । छिन्नकेश=जिसके बाल संयो० कि०-जाना। . काटे गए हों । मुडित । छिनम-कटा हुप्रा वृक्ष। छिन्न. छिना-क्रि० स० [सं० छिन्न या हिं० छैनी] १. पत्थर का छेनी नासछिन्ननासिक-नासिकाविहीन । नकटा। छिन्नभिन्न । . या टांकी के आघात से कटना। २. सिल, चक्की आदि का छिन्नमस्त, छिन्नमस्तक=जिसका सिर कट गया हो । कटे- - छेनी के प्रावात से खुग्दरी या गड्ढेदार होना । फुटना ।। सिरवाला। - छिनभंग -वि० [सं० क्षणभङ्ग] नश्वर । क्षणभंगुर। उ०--- २. थका हुमा । क्लांत (को०)। ३. दूर किया हुमा! नष्टभ्रष्ट -.. तप तीरथ तरुनी रमनं विद्या बहुत प्रसंग। कहाँ कहाँ मुनि (को०)। ४. ह्रासोन्मुख । क्षीण (को०)। . रुचि करें पायगे तन हि नभंग ।-व्रज० ग्रं०, पृ० ११४ छिन्न-संज्ञा पुं० १. एक प्रकार का मंत्र । १. वैद्यक के अनुसार एक छिन्नभिन्न-वि० [सं० छिन्नभिन्न दे० 'छिन्न भिन्न' । उ०-. . प्रकार का फोड़ा। - तिन अग्ग परिंग पहुमान वीर । छिनभिन्न होयं धारा विशेष-इसका क्षत सीधी या टेढ़ी लकीर के रूप में होता है .. सरीर ।--पृ० रा०, १ ! ६६४ ।। और इसमें मनुष्य का अंग गलने लगता है। . छिनरा-वि० पुं० [वेशी छिराणाल, हिं० छिनार वि.क्षी छिनरी, छिन्नक- वि० [सं०] अंशतः कंटा । जिसका कुछ ग्रंश कटा हो [को०] । .. छिनार, छि नाल] परस्त्रीगामी (पुरुष)। लंपट । वृषल । छिन्न ग्रंथिका--संका मौ० [सं० छिन्नग्रन्थिका] एक प्रकार का कंद । छिनवाना-कि० स० [हिं० 'छीनना का प्रे० रूप 1 छीनने का त्रिपरिणका (फो०] ।

काम कराना।

छिन्नद्वैव-वि० [सं०] जिसकी द्विविधा मिट गई हो। जिसे असमंजस छिनवाना-क्रि० स० [सं० छिन्न] १. पत्थर की छेनी से कटवाना। न हो [को०)। . . २. सिल, चक्की.मादि को छेनी से खुरदरी कराना । कुटाना। छिन्नधान्य (संन्य)-संक्षा पुं० [सं०] वह सेना जिसके पास धान्य न छिनहरी@--[सं० छिन्नगृह, प्रा० छिनहर, या सं० छिद्र+हि.+ पहुंच सकता हो। . हर (प्रत्य॰)] छिन्न भिन्न । टूटा फूटा। जीर्ण शीर्ण । विशेष कोटिल्य ने लिखा है कि छिन्नधान्य तथा छिन्नपुरुषवीवध .. उ0-छिनहर घर अरु झिरहर टाटी । घन गरजत कप मेरा (जिसकी मनुष्य तथा पदार्थ संबंधी सहायता रुक गई हो)

छाती ।-कबीर ग्रं॰, पृ० १८१।

सैन्य में छिन्नधान्य उत्तम है; क्योंकि वह दूसरे स्थान से धान्य . छिनाना-क्रि० स० [हिं० छीनना का प्रे० रूप] छीनने का काम लाकर या स्थावर तथा जंगम (तरकारी तथा मांस) पाहार - कराना। कर लड़ाई लड़ सकता है । सहायता न मिलने के कारण छिन्न- . छिनाना+-क्रि० स० छीनना। हरण करना । उ०-कामधेनु पुरुषवीवध यह नहीं कर सकता । - जमदग्नि की लै गयो नुपति छिनाय । सूर (शब्द०)। छिन्ननास्य-वि० [सं०] (पशु) जिसकी नाथ टूट गई हो (को०] । . छिनाना-क्रि० स० [सं० छिन्न १. टाकी या छेनी से पत्थर छिन्नपक्ष--वि० [सं०] (पक्षी) जिसके ईने टूट या कट गए हों। आदि कटानां । २. टांकी या छेनी से सिल. चक्की प्रादि को छिन्नपत्री-संवा श्री० [सं०] पाठा । पाढ़ा । ..., खुरदुरी कराना। छिन्नपुरुषवीवध (सैन्य)- संवा पुं० [सं०] कौटिल्य के अनुसार वह छिनार-वि० सी० [हिं० छिनाल] दे० 'छिनाल । सेना जिसकी मनुष्य तथा पदार्थ संबंधी सहायता रुक गई हो। छिनाल'-वि० स्त्री० [सं छिन्ना-|-मारी; देशी छिराणालिमा, छिन्नपुष्प-संज्ञा पुं० [सं०] तिलक वृक्ष । छिरणाली पू० हि छिनारि] व्यभिचारिणी। कुलटा । छिन्नबंधन-वि० [सं० छिननन्द ] जिसके बंधन कट गए हों। परपुरुषगामिनी । उ०-भरे यह छिनाल बड़ी छतीसी है।-- बंधनमुक्त [को । .. भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ३१। छिन्नभक्त--वि० [सं०] १. जिसके भोजन में बाधा या पड़े । २. छिनाल संघ सौ. व्यमिचारिणी स्त्री। कुलटा स्वी। भूखों मरनेवाला । जिसे खाने का ठिकाना न हो को। छिनालपन, छिनालपना-संशा ० [हिं० छिनाल+पन] व्यभिचार । छिन्नभिन्न-वि० [सं०] १. कटाकुटा । खंडित । टूटा फूटा । " छिनाला। नष्ट भ्रष्ट । ३. जिसका क्रम खंडित हो गया हो । प्रस्त- छिनाला-संकाofहि छिनाल स्त्री पुरुष का अनुचित सहवास। 'यस्त । तितर बितर । उ०-संकेत पिया मैंने अखिम जिस व्यभिचार। - मोर कुंडली छिन्न भिन्नं ।-नामिका, पृ० १२५ । । • छिनु-संघा पुं० [हिं० छिन ] दे० 'छन' । उ०--छिन छिनु बाद छिन्नमस्तका-वि०, संवा पी० [सं०] दे० 'छिन्नमस्ता।