पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५६२

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छिन्नमस्ता छिबड़ी छिन्नमस्ता'-वि० सं०] जिसका माथा फटा हो।' (क) बह लड़ का हमें देखकर छिपने का यत्न करता है । छिन्नमस्ता-संशा लो एक देवी जो महाविद्यालों में छठी हैं । (ख) यहाँ न जाने कितने प्रथरत्न छिपे पड़े हैं । २. प्रावरण विशेष-इनका ध्यान इस प्रकार है...-अपना ही कटा हुअा सिर या नोट में होने के कारण दिखाई न देना। अदृश्य होना । अपने बाए हाथ में लिए, मुह खोले और जीभ निकाले हुए देखने में न माना । जैसे, सूर्य का छिपना । ३. जो प्रकट न अपने ही गले से निकली हुई रक्तधारा को चाटती हुई. हाथ हो । जो स्पष्ट न हो । गुप्त । जैसे,---इसमें उनका कुछ छिपा में खड्ग लिए, मुंडों की माला धारण किए और दिगंबरा । हुमा मतलब तो नहीं है। इनका नाम प्रचंड चंडिका और प्रचंडिका भी है । तंत्रसार में छिपली--संघा खी० [सं० स्थाली ] १० छोटी थाली । रकाबी। इनका पूरा विवरण लिखा है। उ.--चाची ने फूल की उसी चमचमाती छिपली में खाना परोस रखा था 1---रति०, पृ० ५७ ।। छिन्नमूल-वि० [सं०] मूलोच्छेद किया हुआ । जड़ से काटा छिपाछिपी-क्रि० वि० [हिं० छिपना] चुपके से। छिपाकर । गुप्त हमा । [को०)। रीति से । चुपचापं । गुपचुप । छिन्नरुह-संधा पुं० [सं०] तिलक वृक्ष । पुन्नाग । छिपाधिपg- संज्ञा पुं० [मं० क्षपाधिप] रात्रि का स्वामी । चंद्रमा । छिन्नमहा-संषा स्त्री० [सं०] गुडुच । गिलोय । निशापति । उ०--रन नकिय पाइ कमल्ल भुनं : छिति मित्त । छिन्नवेशिका-संशा स्री० [सं०] पाठा । छिपाधिप चित्त धुनं -पृ० रा०, १६। १०१। । छिन्नप्रण-संज्ञा पुं० [सं०] १. किसी शस्त्र से कटा हुअा घाव । छिपाना-क्रि० स० [सं० क्षिप+डालना ] [ संज्ञा छिपाव'] १... २. वह फोड़ा जो किसी ऐसे घाव पर हो जो शस्त्र से । लगा हो। प्रावरण या ओट में करना । ऐसी स्थिति में करना जिसमें छिन्नश्वास-संशा पुं० [सं०] एक रोग जो श्वास का भेद माना किसी को दिखाई न पड़े या पता न चले। ढांकना । आड़ में जाता है। करना । दृष्टि से मोझल करना ।गोपन करना। २. प्रकटन विशेष- इस रोग में रोगी का पेट फूलता है, पसीना आता है करना । सूचित न करना । गुप्त रखना । जैसे, बात छिपाना, और सांस रुकता है तथा शरीर का रंग बदल जाता है। दोष छिपाना। छिन्नसंशय-वि० [सं०] जिसका संदेह दूर हो गया हो । संशय- छिपारुस्तम-संशा पुं० [हिं० छिपना+फा० रुस्तम] १. वह व्यक्ति जो अपने गुण में पूर्ण हो, परंतु प्रख्यात न हो। उ०--परी, रहित (को०] । छिन्नांत्र-संघा पुं० [सं० छिन्नान्न ] कोष्ठभेद नामक एक उदर- तू तो छिपी रुस्तम है। आज तक हमको अपना गाना नहीं सुनाया था। सर०, पृ० २६ । २. ऐसा दुष्ट जिसकी रोग [को०] । छिन्ना- संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. गुडुच। गिलोय । २. पुश्चली ।

दुष्टता लोगों पर प्रकट न हो। गुप्त गुडा । उ---क्यों .

छिनाल । कुलटा । मियाँ, यह कहिए छिपे रुस्तम निकले मियां खलील - विनोद्भवा-संज्ञा स्त्री० [सं०] गुडच्च । गिलोय [को० । फिसाना०, भा०३, पृ० १६६। छिपकली-संज्ञा भी [हिं० चिपकना या देश०] १. पेट जमीन पर छिपाव--संषा सं० [हिं० छिपना ] किसी बात या भेद को छिपाने रखकर पंजों के बल चलनेवाला एक सरीसप या जंतु । का भाव । बातों को एक दूसरे से गुप्त रखने का भाव । विशेष—यह एक वित्त के लगभग लंबा होता है और मकान . परस्पर के व्यवहार में हृदय के भावों का गोपन । दुराध । ' की दीवार मादि पर प्रायः दिखाई पड़ता है। यह जंत गोधा क्रि० प्र०- करना ।-रखना । . या गोह की जाति का है और छोटे छोटे कीड़े पकड़कर छिपावना@--कि० स० [हिं० छिपाया] गोपन करना । गुप्त रखना। खाता है। छिपकली चिकनी से चिकनी खडी सतह पर छिपाना । उ०--तो सों न छिपावति हौं, एरी भट, अपराध सुगमता से दौड़ सकती है। .: : इतनो कीन्हो मैं जो कही हंसि के ।-रघुराज (शब्द०)। पर्या०--पलभी। मुपली। गृहगोधा । विशंवरी । ज्येष्ठा । छिपील----संज्ञा पुं० [ देश ] १. छींट छापनेवाला। छोपी । ६.२. कुडघमत्स्य । गृहगोलिका । माणिक्या । भित्ति का । गृहोलिका ।। दर्जी । सीवक । छिपे छिपे--क्रि० वि० [हिं० छिपाना ] अप्रकट रूप से । गुप्त २. दुबली पतली स्त्री। कृश शरीर की औरत। . . .. । रूप से । विशेष-प्रायः दुबली पतली स्त्री को भी लोग विनोदवश छि --क्रि० वि० [सं० क्षिप्र 1 है. 'क्षित्र'। उ०--सत्त सेर .. छिपकली कह देते हैं। ... .. नप लोह मायव । लोहकार 'दह हिप बुलायव ।--प.. ३. कान का एक गहना । .. रासो, पृ०३। । छिपका+--संज्ञा पुं॰ [ हि० छिपकली ] गृहगोधा । विसतुइया । छिप्र--संज्ञा पुं० [सं० क्षिप्र] एक मर्म स्थान जो पैर के अंगठे मौरः छिपकली। उ--माछर पखारी कांठ छाडि दे हमारो धाम उसके पास की गलियों के बीच में होता है। . . नीर रु बिलाव ठिपकाहू अपनायो है।-राम धर्म०, पृ०६६। छिबड़ा--संशा पं० [ दे० दे० 'छबड़ा'। .. छिपना--मि०प्र० [सं० क्षिप+डालना] १. प्रावरण या प्रोट में छिबड़ी'--संज्ञा स्त्री० [सं० शिविरय] खटोली के प्रकार की एक । होना । ऐसी स्थिति में होना जहाँ से दिखाई न पड़े। जैसे,- डोली जिसपर रेतीले मैदानों में यात्रा करते हैं।