पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५६६

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छीन १६४४

  • “छोमी

छिदरा । २. जो दूर दूर पर हो । जो घना न हो। बिरल। छीप'–वि० [सं० क्षित ] तेज । वेगवान् । उ०-सात.दीप नुप उ०-ताल कई समचइ घूघरी । माँहिली मांडली छीदा दीप छीप गति चहल समर सरि ।-गोपाल (शब्द०) होइ।-बी० रासो, पृ०५। छीप-संघा सी० [सं० शुक्ति, हिं० सीप ] दे॰ 'सीप' 13०- (क) छीन'-वि० [सं० क्षीण] १. दुबला । पतला । कृश । २. शिथिल । सब तरवर चंदन नहीं सव कदली न कपूर । राव छीपन मुकता मंद । मलिन । उ० -पूछ को तजि असुर दौरि के मुख गह्यो नहीं, सब दल नाहिन सूर । -रस र०, पृ० २२३ । (ख) सुरन तव पूछ की ओर लीन्ही । मथत भए छीन, तव बहुरि छीप रूपहि करी परकासा। स्वाति रूप इच्छा नीवासा । विनती करी थी महाराज निज सक्ति दीनी ।-सूर०, ८1८। - फवीर सा०, पृ० ६३ । . . . . . छीन-संज्ञा पुं० [सं० क्षण, हिं० छिन] क्षण । क्षण भर का छीप-संज्ञा सी० [हिं छाप] १. छाप । चिह्न । दाग । ३. वह समय । उ०--पलटू बरस और दिन पहर घड़ी पल छीन । दाग या धब्बा जो छोटी छोटी विदियों के रूप में शरीर पर ज्यों ज्यों सूखे ताल है त्यों त्यों मीन मलीन ।--पलटू०, पड़ जाता है । सेहुयाँ। एक प्रकार फा चर्म रोग। पृ०२५। टीप -संशश पुं० [सं०क्षप, या क्षय ] पात्रमण । नाश । विनाश। छीनचंद्र-संज्ञा पुं॰ [सं० क्षोणचन्द्र ] द्वितीया का चंद्रमा । उ०-छोप कर दल दुज्जणां जीप खड़ो रण जंग|-रा० : छीनता-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'क्षीणता'।। रू०, पृ० २३२ । छीनना--क्रि० स० [म० छिन्न+हिं० ना (प्रत्य॰)] १. छिन्न करना । काटकर अलग करना । उ०--नोर हू ते न्यारी छीप---मंशा स्त्री० [ देश ] वह छड़ी जिसमें डोरी बांधकर मछली कीनौ चका वक्र सीस छीनी देवकी के प्यारे लाल एचि लाए फंसाने की कैटिया लगाई जाती है। डगन । बंसी। २. एक यल में ।-सूर०, ८ । ५। २. किसी दूसरे की वस्तु जबरदस्ती पेड़ का नाम जिसके फल को तरकारी होती है। इसे खीप ले लेना। किसी वस्तु के दूसरे के अधिकार से बलात् अपने और चीप भी कहते हैं। अधिकार में कर लेना । हरण करना । उ० -का कंकल छीपका--वि० [हिं० छाप छपी हुई। छींटदार । 30-धरी तीर . भुजा उड़ाहीं। एक ते एक छीनि लेखाहीं ।-मानस, सब छीपक सारी। सरवर मह पठी सब बारी।--जायसी ६ । ८७. पं० (गुप्त), पृ० १६० । यौ०-छीनाखसोटी । छीना झपटी । छोनाछीनी । छीपना'- क्रि० स० [सं० क्षिप] कटिया में मछली फंसने पर उसे ३. अनुचित रूप से अधिकार करना । उ० बलि जब बहु जज्ञ वं सी के द्वारा खींचकर बाहर फेंकना। किए इंद्र सुनि सकायौ । छल करि लइ छीनि मही, वामन है छीपना-क्रि० स० [सं० स्पर्शन, प्रा० ठिवरण] ३० "छूना' । धायौ।-सूर०, ६। ११८ । ४. सिल, चक्की आदि की ___उ०--रैदास तू काच फली; तुझे न छीप कोइ।-२० छेनी से खुरदुरा करना । कूटना । रेहाना । ५ छेनी से पत्थर बानी, पृ०१। मादि काटना या बराबर करना । ६. दे० 'छना'। छोपा --संघा पुं० [सं० क्षेप] १ तंग मह का मिट्टी का एक बरतन , छीना- क्रि० स० [सं० छुप ( =ना ) या सं० स्पृश, प्रा० छिव जिसमें अहीर दूध दुइकर डालते जाते हैं। २. दे० छोपो' । (=धूना)] छना। स्पर्श करना। उ० (क) ग्वालि वचन उ०-वनिया मोदी सगरे घाये, छीपा सेठ चौधरी ग्राये।- कबीर सा०, १०९५७। सुनि कहति जसोमति भले भूमि पर वादर छीवो। तुलसी (शब्द०)। (a) हरि राधिका मानसरोवर के तट ठाढ़े री छोपिपरा@ -संशा पुं० [हिं०] दे० 'छोपो'। उ-ए भैना, हाथ सो हाथ छिए ।-केशव (शब्द०)। काहर के छोपिनरा बुलाऊ' कहर बैठि रंगाइए ।-पोद्दार अभि० प्र०, पृ० ६१४।। छीना--संथा पुं० [सं० छिन्न] १. घड़े के नीचे का कपाल या गोल भाग जो फोड़कर अलग कर दिया गया हो। २. मिट्टी का छिपी'--संज्ञा पुं० [हिं० छिप [ली० छोपिन] वह व्यक्ति जो वह सांचा जिसपर कुम्हार घड़े कुडे प्रादि की पेंदी या .. कपड़े पर बेलबूटे छापता हो । छौंट छापनेवाला । रंगरेज। कपाल को रखकर थापी से पीटते हैं। छीपी-- संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] १. वह लंची छड़ी जिससे लोग कबूतर छोनाखसोटी --संक्षा श्री० [हिं० छीनना + खसोटना ] दे० 'छीना प्रादि उड़ाते हैं । इसके सिरे पर कपड़ा बंधा रहता है । २.. झपटी' । धातु प्रादि की छोटी तश्तरी। छीनाछीनी- संक्षा खी० [ हिं छीनना की द्विरुक्ति 12वीन वर-समा खा० [देश०, हि० छापना] मोटी छींट। वह कपड़ा । झपटी'। जिसपर बेल बूटे छपे हों। उ०-- हा हा हमारी सौं सांची छीनाझपटी--संसा ग्री० [हिं० छिनना+भषटना] जबरदस्ती या कहो वह को ती छोहरी छीवर वारी--(शब्द०)।... झाड़ झपट के साथ किसी वस्तु को ले लेने की क्रिया। छीमर-संवा स्त्री॰ [देश यो हि छीप ( द) दे० 'छोबर'। .. छान्ह-संघा पुं० [सं० क्षीरण, हि० छीन ] दे० 'क्षीण' 1 30-छिप्यो न--ठीमर वह छामर पहिार सूमर मदन भरर । पचताह छपाकर छितिज छीरनिधि छगुन छद छल छीन्हो । चुरावत चाहि के बेचत बेर सुरेर।-स० सप्तक०, पृ० ३.१ . : श्यामा, १०१२० । " .... . पीसी.बीofiamaal छीमी--संघमा ली० [सं० शिम्बो] १. फली । जैसे--मदर की छोमी। .