पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५७

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खयालात ११३३ खरगोश . भेड़ का ख्याल नहीं किया, मेरा कुछ कसूर नहीं। -भारतेंदु: खरकना -कि० अ० [अनु॰] खर खर शब्द होना । खरखराना। ग्रं भा० १, पृ० ६६६। खड़कना । 30-मारहिवार विनोकत द्वारहि, चौंकि परे खयालात-संश पुं० [अ० खपाल का बहव०] अनेक विचार । ख्याल तिनके खरके हूँ।-मतिराम शब्द०)। या विचारधारा। उ०-ख्यालात अपने निगाहें विरानी, खरकनारे-क्रि० स० [हिं० खर] १. फांस तुमने के कारण दर्द किसी को न मालूम अपना पराया-हंस०, पृ० ४६। होना । फांस चुभने का दर्द होना । ३. सड़कना । सरकाहा । खयाली-वि० [अ० ख्याल] दे० 'ख्याली' । चल देना 1 30-तुलसी करि हरि नाद मिरे भट खग मुहा०-खयाली पुलाव पकाना= दे० 'याली पुलाव पकाना'। खागे, खापुप्रा बारके। -तुलसी (शब्द०)। .. खय्याम-संज्ञा पुं० [अ० खय्याम] फारसी के मधुवादी कवि अर्थात् खरकर--संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य । दिनकर (को०)। मधुप्रेमी, शराब पीनेवाले व्यक्ति । उ-सिर्फ खय्यार्मों की खरकवट--संघा नी० [हिं० खर- तिनफा या प्राढ़ा] दो अंगुल चौड़ी आवश्यकता है साकी हजारों सुराही लिए यहाँ तयार मिलेंगे। एक चिकनी पटरी जो करचे में दो खूटियों पर भटकाकर -किन्नर०,०३७॥ पाड़ी रखी जाती है और जिसपर ताना फैलाकर धुनाई खरंजा-- संथा पुं० [ देश०] १. वह ईट जो बहुत अधिक पकने के होती है । इसका व्यवहार प्रायः गुलबदन प्रादि चुनने के कारण जल गई हो । झावा । २. दे० 'खड़जा'। समय होता है। स्वर-संहा पुं ०] १. गधा। २. खच्चर । ३. वगला । ४ खरका'--संवा हि खर खड़ा विनका 1 कौवा । ५. एक राक्षस जो रावण का भाई था और पंचवटी मुहा--सरफा फरना भोजन के उपरांत दांतों में फंसे हुए में रामचंद्र के हाथ से माया गया था। ६. तण । तिनका। । अन्न प्रादि को तिनके से खोदकर निकालना। . घास। खरकार--संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'खरक। यो०-खर फतवार= दे० 'खरपतवार'। उ०-गा सर जनम अबिरथा मोरा । का मैं खर कतवार बटोरा ।-चित्रा०, १० खरका--संशा पुं० [हिं०] दे॰ 'खटका' । उ०-(क) चीतल चीत १३० 1 खरपतवार-फड़ा करकट। हिरन पाइ खरके भजि जते ।--पृ० रा, ६।१४। (ख) पाहै ७.६० संवत्सरों में से २५वा संवत् । इस वर्ष में बहुत उपद्रव रनधीर भग जाय पात खरका ते-र० रू०, पु०१८४। होते हैं। ८. प्रलबासुर का एक नाम । ६. छप्पय छंद का खरकुटी'-संशा सी० [सं०] १. गदहों या निवासस्थान २. नाई एक भेद । १०. एक चौकोर वेदी जिसपर यज्ञों में यज्ञपात्र रसे का निवास या दूकान ३. नाई का चमोठा जिसमें नाई जाते हैं। ११. कंक । १२. कुरर पक्षी। १३. सूर्य का औजार रखते हैं (को०] । फिस्बत। पावचर । १४. एक प्रकार का तण या घास जो पंजाब, खरकुटा-संक्षा बा[सं० खर-तु+फूटी] खर.और पत्रोधादि संयुक्त प्रांत और मध्य प्रदेश में होती है और जो घोड़ों के से बनी झोपड़ी । उ०-राजगृह के चतुप्पथ पर एक खर कुटी लिये बहुत अच्छी समझी जाती है । १५. कुत्ता । श्वान थी।-० न०, पृ. ३२१ । (अनेकार्थ०), खरकोण-संवा पुं० [सं०] तीतर पक्षी।--(डि०) । खर-वि० [सं०] १. कड़ा । सख्त । २. तेज। तीक्ष्ण 1 ३. घना। खरकोमल-संज्ञा पुं० [सं०] ज्येष्ठ का महीना [को॰] । मोटा । हानिकर । अमांगलिक । जैसे, खर मास । ५. तेज खरक्वारप-संज्ञा पुं० सं०] दे० घारकोण' [को०] । धार का। ६.पाड़ा। तिरछा । खरखरा-वि० [हिं०] दे० खरखुरा' । खर---संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'बराई। खरखशा-संज्ञा पुं॰ [फा० खरखशह] १. झगड़ा। लड़ाई । २. भय मुहां०-खर मारना= दे० 'खराई मारना । ____ श्राशंका । डर । ३. झंझट । बसेड़ा । खर-संज्ञा पुं० [सं० खर= तेज] करारा । कुरकुरा। खरखोट-संज्ञा पुं० [हिं० खरा+खोटा] बुराई। बरवादी। हानि महा०—(घी) खर करना=(घी) गरम करके तपाना । -गाठी बांध्यो दाम सों परचो न फिरि सारसोट ।- खरक'-संधा पुं० [सं० खडक-स्थाणु] १. जंगलों आदि में लकड़ियों तुलसी पं०, ५०५५४ । । के खंभे गाड़कर और उनमें प्राड़ी बल्लियां बांधकर घेरा और खरखोकी -संज्ञा स्त्री० [हिं० खर+खाना] खर, तृण आदि छाया हुमा स्थान जिनमें गौएं रखी जाती हैं। इसे कहीं कहीं खानेवाली अग्नि । उ०-लागि दवार पहार ठही लहकी डादा भी कहते हैं । ७०-बछरा सखी एक भग्यो खरका ते कपिलंफ जथा खरखौको ।--तुलसी (शब्द०)। महू तोहि दौरि पछेरौ कियो।-सेवक (शब्द०) ३२. पशुओं खरग@-संज्ञा पुं॰ [सं० खड्ग] १. दे० 'खड्ग'। २. दे० 'खरक', के धरने का स्थान। ३. चीरे हप पतले बाँसों को याँधकर _ 'खरिक' (अनेकार्थ०)। .... वनाया हुआ किवाड़ जिसे गरीब लोग अपने घरों में लगाते खरगृह-संज्ञा पुं० [सं०] दे. 'खरकुटी [को०] । हैं । टट्टर। खरगेह-संज्ञा पुं० [सं०] १. कुटिया । तंबू । २.दे० 'खरकुटी को। खरकर--संथा स्त्री० [हिं०] दे० 'खटक' या 'खडक'। ... खरगोश- संज्ञा पुं० फा० खरगोश खरफ.। चौगड़ा 1 वि०-३० ।" खरकता संद्धा ई० [देशJलटोरे की जाति का एक पक्षी।। .. 'खरहो।