पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५७६

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छेद्यकंठ १६५४ छ वन चिकित्सा का एक ढंग । इसमें प्रांख में नमक का चूर्ण डालते हैं तथा कभी कभी शस्त्रचिकित्सा भी करते हैं । ३. अंगच्छेदन । चीर फाड़ । शल्य क्रिया (को०)। छेधकंठ-संथा पुं० [सं० छेद्यफएठ] कबूतर । परेवा ।। छना' संज्ञा पुं० [सं० छेदन] १. फाड़ा हुमा दूध जिसका पानी निचोड़कर निकाल दिया गया हो । फटे दूध का खोया । पनीर । विशेष—इसके बनाने की रीति यह है कि खौलते हुए दूध में खटाई या फिटकरी डाल देते हैं जिससे वह फट जाता है अर्थात उसके पानी का अंश सफेद भुरभुरे अंश से अलग हो जाता है । फिर फटे हुए दूध को एक कपड़े में रखकर निचोड़ते हैं जिससे पानी निकल जाता है और दूध का सफेद भुरभुरा अंश बच रहता है जो छेना कहलाता है। इस छैने से वंगाल अनेक प्रकार की मिठाइयाँ बनती हैं। दही गरम करके भी एक प्रकार का छेना बनाया जाता है। २. कंडा । उपला । गोइठा । गोहरी । छेना- कि० स०१. कुल्हाड़ी आदि से काटना या घाव करना। छिनगाना।०. छीजना । दे० 'छना'। छनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० छेना ] १. लोहे का वह अौजार जिससे धातु, पत्थर आदि काटे या नकाशे जाते हैं । टाँकी। विशेष--यह पाँच छह अंगुल लंबा लोहे का टुकड़ा होता है जिसके एक प्रोर चौड़ी धार होती है । नक्काशी करते समय इसे नोक के बल रखकर ऊपर ठोंकते हैं। नक्काशी करने की छेनी के सोलह भेद हैं-(१) खेरना । इससे गोल लकीर बनाई जाती है । (२) चेरना । इससे सीधी लकीर बनाई जाती है। (३) पगेरना । इससे लहर बनाई जाती है। (४) गुलसुम । इससे गोल गोल दाने बनाए जाते हैं। (२) फुलना। इससे फूल और पत्तियां बनाई जाती हैं । (६) वलिस्त । इससे बड़ी बडी पत्तियां बनाई जाती हैं । (७) दोन्नई। इससे छोटी पत्तियाँ बनाई जाती हैं । (८) तिलरा । (E) डिंगा । इन दोनों से गोल महराब काटा जाता है। (१०) किर्रा। इसमें वेल और पत्तियां बनाई जाती हैं । (११) मलकरना। इससे दोहरी लकीर बनती है। (१२) सूतदार पगेरना । इससे एक बार में दोहरी लह र बनती है। (१३) गोटरा । इससे गोल नक्काशी बनाई जाती है । (१४) पनदार गोटरा । इससे पान बनाया जाता है। (१५) चौकोना गुलुसुम । (१६) तिकोना गुलसुम । इन दोनों से चौकोनी और तिकोनी नक्काशी बनाई जाती है। २. वह नहरनी जिस से पोस्ते से अफीम पोछकर निकाली जाती है। छेमंड-संज्ञा पुं० [सं० छेमण्ड विना मां बाप का लड़का । अनाथ या - यतीम बच्चा। छम --संक्षा पुं० [सं० क्षेम] दे० 'क्षेम'। उ०---(क) जाय कहब करतूति विनु जाय जोग विनु छेम । तुलसी जाय उपासब बिना राम पद प्रेम । -तुलसी (शब्द०)। (ख) बड़ि प्रतीति गठबंध ते वड़ो जोग ते छम 1 बड़ो सुसेवक साईते बड़ो नाम ते प्रेम ।—तुलसी (शब्द॰) । छेमकरी®-संझा स्त्री० [सं० क्षेमकरी] सफेद चील । १०--(क) छेमकरी कह छेम विसेखी । स्यामा बाम सुतर पर देखी। मानस, १ १३०३ । (ख) लाम लाभ लोका कहत छमकरी कह छेम । चलत विभीपनु सगुन सुनि तुलसी पुलकत प्रम- तुलसी (शब्द०)। छमाधु-संधा स्त्री० [सं० क्षमा, पु० हि छिमा] दे० 'क्षमा' । उ०- छेमा क.पाट का ताला, कुजी सुरत निरत का तीर-गमा. नंद०, पृ० ३२।। छेरना --कि०म० [सं० क्षरण ] अपच के कारण बार बार पाखाना फिरना। छरी-संज्ञा स्त्री० [सं० हेलिका] बकरी । प्रजा । छेल -संप पुं० [हिं०] दे० 'छैल'। उ०-तरतम तजेकर दूरे छल इछहि छोड़ह मोर चौर ।-विद्यापति, पृ० २० । छेलक-संशा पुं० [सं०] बकरा (को० । छल चिकनियाg-संपा पुं० [हिं०] दे० 'छैल चिकनिया' । उ०-- तव चाचा हरिवंस जी ने कही जो यहाँ कहूं वह छेल चिकनिया अायो होइगो-दो सौ वावन०, भा० १, पृ० ५७ । छली-संज्ञा स्त्री० [सं० छलिका ] दे० 'छेरी'। उ०--वह अपभ गाय महिपीन तुंग । छली छयल्ल गड़ रग्न पुग। पृ० १०, १७:३३ । छेव--संथा पुं० [40 छेद, प्रा० छेव] १. काटने, छीलने आदि के लिये किया हमा प्रायात । वार । चोट । उ०--तदै मेव है कही वीर ठाढ़ी रहु ठाढ़ो। अब नहिं जीवत जाइलोह करिहौं रन गाढ़ो। सुनत राव हरुद्ध जुद्ध में तेगहि झारी। तही मेव गहि छेव तुरंगम ते गहि डारी । भू पर यो परी ह तीन असि बड़ गूजर के अंग पर। लियो सीस काटि साथी सहित राव एंड सोयो समर ---सूदन (शब्द॰) । क्रि० प्र०-चलाना ।-मारना ।-लगना ।-लगाना । २. वह चिह्न जो काटने छीलने आदि से पड़े। जखम । पाव । जैसे,—उसने इस पेड़ में कुल्हाड़ी से कई छेब लगाए हैं। उ० अरिन के उर मोहिं कीन्ह्यो इमि छेव है। भूपण (शब्द०) कि०प्र०-लगना ।--लगाना ।--पढ़ना । मुहा०-छल छेव= कपट व्यवहार । फुटिलता का दाँव पंच। छल छिद्र । उ०--जानत नहीं कहाँ ते सीखे चोरी के छल छेव ।-सूर (शब्द०)। ३. आनेवाली प्रापत्ति । होनहार । दुःख। ४. किसी दुष्कर्म या कर ग्रह प्रादि के प्रभाव से होनेवाला अनिष्ट । क्रि० प्र०--उतरना ।-छूटना ।- टलना ।--मिटना। छेव-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'देव' । छेव-संथा पुं० [ देशी छेन] अंत । समाप्ति । पर्यत । छोर । छेवन-संज्ञा पुं० [हिं० छेवना, काटना,] वह सागा जिससे कुम्हार चाक पर के बरतन को काटकर अलग करते हैं ।