पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५८०

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छोड़वाना १६५६ छोभित मुहा०-(किसी को) छोड़ या छोड़कर(किसी के) बादर, त्यों ऊटि बल भट, सीस फूटि डारें छोप सों 1-गोपाल. अतिरिक्त । सिवाय । जैसे,- तुम्हें छोड़ और कौन हमारा (अब्द०) । ५. छिपाव । बचाव । सहायक है। यौ--छोप छाप(१) दोप प्रादि का छिपाव । (२) बचाव । १७. किसी कार्य को या उसके किसी अंग को भूल से न करना। ___रक्षा । (३) देख रेख । कोई काम करते समय उससे संबंध रखनेवाली किसी बात या छोपना-क्रि० स० [हिं० छुपाना या हि० छोप+ना (प्रत्य॰)] वस्तु पर ध्यान न देना । भूल या विस्मृति से किसी वस्तु को १. किसी गीली या गाढी वस्तु को दूसरी वस्तु पर इस प्रकार कहीं से न लेना, नरखना या न प्रयुक्त करना । जैसे,-लिखने रखकर फैलाना कि उसकी मोटी तह चढ़ जाय । गाढ़ा लेप में अक्षर छोड़ना इकट्ठा करने में कोई वस्तु छोड़ना, रेल पर करना । जैसे,--नीम की पत्ती पीसकर फोड़े पर छोप दो। छाता छोड़ना । १८. ऊपर से गिराना या डालना । जैसे, - संयो॰ क्रि०-घेना। (क) हाथ पर थोड़ा पानी तो छोड़ दो। (ख) इसपर थोड़ी २. गीली मिट्टी या पानी में सनी हुई और किसी वस्तु के लोंदे राख छोड़ दो। को किसी दूसरी वस्तु पर इस प्रकार फैलाकर रखना कि छोड़वाना-क्रि० स० [हि० छोड ना का ० रूप] छोड़ने का काम वह उससे चिपक जाय । गिलावा लगाना । थोपना । जैसे- करान दीवार में जहाँ जहाँ गड्ढे हैं, वहां मिट्टी छोप दो। छोड़वाना-क्रि० स० [हिं० छुडाना का ० रूप] छुड़ाने का यौ--छोपना छापना=गड्ढे यादि म दकर मरम्मत करना। काम कराना। फटे या गिरे पड़े को दुरुस्त करना। छोड़ाना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'छुड़ाना'। संयो॰ क्रि०-देना। छोत, छोति -महा स्त्री० [हिं० छूत] दे॰ 'छूत' । उ०—(क) ३. किसी वस्तु पर इस प्रकार पड़ना कि वह बिलकुल ढक जाय । पाप पुन्य नहिं तागे छोत ।-कबीर श०, पृ० १११ । (ख) किसी पर इस प्रकार चढ़ बैठना कि वह इधर उधर अंग न जाकी छोति जगत की लागै तापरि तू ही धरै । अमर पाप हिला सके। धर दबाना । ग्रसना । जैसे,--और बकरी को ले करे गुसाई माखो हूँ न मर ।-दादू०, पृ० ६०७ । छोपकर बैठा रहा। छोती-वि० [हिं०] छूतवाला । अपवित्र । उ०-गिने पान छोती संयो० कि०-लेना। इस हेत तासी । राम० धर्म०, पृ० १८१ ४. पाच्छादित करना। ढकना । ॐकना । ५. किसी बात को छोना't-संक्षा पुं० [हिं०] दे० 'छौना' । उ०-मानो नाग छोना छिपाना । परदा डालना । ६.किसी को वार या प्राघात से उड़े होड मंडी । -ह. रासो, पृ० १३१ । बचाना । पाक्रमण प्रादि से रक्षा करना। ७ कोई वस्तु छोना @ क्रि० स० [सं० क्षप, प्रा० छोह] काटना । फेंकना। किसी के मत्थे थोपना या बाध्य करके उसे दे देना। छोड़ना । 30-धरमी मन मनिया, इक ताग में परोई । प्रापन छोपा-संथा पुं० [हि छोपना] पाल के चारों कोनों पर बँधी हुई करि जान लेह, कर्म फंद छोई।--संतवानी०, पृ० १२६। रस्सिया जिनसे उसे ऊपर चढ़ाते हैं। छोनि -संक्षा ली क्षिोरिण] दे० 'छोनी' । छोपाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० छोपन ! [ १. छोपने का भाव । २. छोपने छोनिपल-संक्षा पुं० [सं० क्षोणिप] राजा । उ०-रहे असुर छल की क्रिया । ३. छोपने को मजदुरी।। छोनिप बेखा । तिन्ह प्रभु प्रगट काल सम देखा ।—मानस, छोभ-मंशा पुं० [संक्षोभ] [वि.छोभित] १. चित्त की विचलता १। २४१ । जो दुःख, क्रोध. मोह, के स्णा मादि मनोवेगों के कारण होती छोनी - संथा बी० [सं० क्षोणी] पृथ्वी । भूमि । उ०-सोक है। जी की खलबनी। उ०-तात तीनि अति प्रबल ये काम कनकलोचन मति छोनी । हरी विमल गुन गन जग जोनी । क्रोध अरु लोभ । मुनि विज्ञान धाम मन करहिं निमिष महु मानस, २ । २६६ । छोभ ।—मानस,३। ३२। २. नदी, तालाब आदि का छोप--संज्ञा पुं० [सं० क्षय, हि० खेप] १. किसी गाड़ी या गीली भर कर उमड़ना। वस्तु की मोटी तह जो किसी वस्तु पर चढ़ाई जाय। छोभना-कि०म० [हिं० छोभ+ना (प्रत्य॰)] चित्त का मोटा लेप। विचलित होना । करुणा, दुःख, शंका, मोह, लोभ प्रादि के क्रि० प्र०-चढ़ाना। कारण चित्त का चंचल होना । जी में खलबली होना । क्षुब्ध २. गाढ़ी या गीली वस्तु को मोटी तह चढ़ाने का कार्य । ३.गीली होना। उ०—(क) जासु बिलोकि अलौकिक सोभा । सहज मिट्टी या पानी में सनी हुई और किसी वस्तु का लौंदा जो पुनीत मोर मनु सोभा । -मानस, १।३१। (ख) नीके दीवार अथवा और किसी वस्तु पर गड्ढे भूदने या सतह निरखि नयन भरि सोभा। पितु पन सुमिरि बहुरि मनु वरावर करने आदि के लिये रखा और फैलाया जाय । छोभा ।-मान स, १।२५८ । क्रि० प्र०-चढ़ाना ।-रखना। छोभित हु-वि० [सं० क्षोभित] क्षोभित । चंचल । विचलित । यो०-छोप छाप मरम्मत । उ०-(क) छोमित सिंधु से सिर कंपित पवन भयो गति पंग । ४.पापात । वार। प्रहार । उ०-जहां जात जूटि तहाँ टूटि पर इंद्र हस्यो हर हिय विलखान्यो, जानि बच्चन को भंग :-सूर०,