पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५८१

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छोम १६५६ छोह ... । १५८ । (ख) हे हरि छोभित करि दई पयन पयन सर बसन छोरि त छोरि, विप्र श्रीधर कर दीनों।—नंद॰ ग्रं, मारि 1 हरिहि हरिननयनी लगी हेरनहार निहारि । -- पृ०२०४। सत. (शब्द०)। छोरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० छोरा] लड़की । छोकड़ी। 'छोम -[सं० क्षोम (=प्रलसी का बना चिकना कपड़ा)] १. छोलंग-संभ पुं० [सं० छोलङ्ग] नीबू (को०] । चिकना । २. कोमल । उ०-भीम सरिस मन छोम, खरे कर छोल -संशा स्त्री० [हिं० छोलना १छिल जाने का चिह्नया रोम भजहि भट !-गोपाल (शब्द०)। घाव । २. सांप के काटने में उसके दांत लगने का एक भेद छोर -संज्ञा पुं० [हिं० छोड़ना] १. किसी वस्तु का वह किनारा जिसमें केवल चमड़े में खरोच लग जाता है। - जहाँ उसकी लंबाई का अंत होता हो । पायत विस्तार की छोल -संथा खी० [हिं०] १. मावरण । घेरा। उ०-पाठहू पहर सीमा । चौड़ाई का हाशिया। जैसे,-दुपट्ट का छोर, मस्तान माता रहै. ब्रह्म की छोल में साध जीवै ।- तुरसी०, तागे का छोर । उ०-काननि कनफूल उपवीत अनुकूल श०, पृ०६५। ३. क्रीड़ा । खेल। उ०-सीता बरी जनक पशु पियरे दुकूल विलसत आछे छोर हैं। -तुलसी (शब्द०)। साँचव, सुपह किया अपसो । छाता खला उतोले छोला, भ्राता यो०- ओर छोर=आदि अंत । तूझ भरोसै ।-रघु० रू०, पृ० १९१ । ३.तरग । लहर । २. विस्तार की सीमा । हृद । ३. किनारे पर का सूक्ष्म भाग । उ०-इण विध प्राभरणाह मन'मुकता मिली। छक तरुणाई नोक । कोर । कोना । उ०-सिला छोर छुवत अहल्या भई छोल पयोनिध ज्यों छिली । बाँकी ० ०, भा० ३, पृ०४० । दिव्य देह गुन पेषु पारस पंकह पाय के ।-तुलसी (शब्द०)। छोलदारी संज्ञा स्त्री० [हिं० छोरना-+-घरना-छोरधरी। या छोर छुट्टी- संसा भीर [हिं०] दे० 'छोड़ छुट्टी' । सोलजरी (=सेना,] एक प्रकार का छोटा खेमा । छोटा तंबू । छोरटी, छोरड़ी@ -संशा श्री० [हिं० छोरा+टी (प्रत्य॰)]दे० छोलना'-क्रि० स० [हिं० छाल] १. छीलना । सतह का ऊपरी 'छोरी'। हिस्सा काटना । उ० सखि सरद बिमल बिघुबदनि वधूटी। छोरण-संशा पुं० [सं०] छोड़ना । त्यागना [को०। ऐसी ललना सलोनी न भई, न है, न होनी, रत्यो रची विधि छोरदार वि० [हिं० छोर (-किनारा. कोर)+दार (प्रत्य॰)] जी छोलत छवि छूटी - तुलसी ग्रं, पृ० ३३४ । २. छोरयुक्त । संपूर्ण । पूरा । उ०--'उरदांम' सिसुता सहर चढ़ि खुरचना । जैसे,--कलेजा छोलना अर्थात हृदय को अत्यंत लूटि लीन्हों, सरंम धरम, रह्यो एकहू न छोरदार।-पोद्दार व्यथित करना। अभि० प्र०, पृ० ५७३। छोलना---संन पुं० [खो० छोलनी] लोहे का एक औजार जिससे . छोरना कि० स०सं० छोरण (=परित्याग)] १. बंधन मादि सिकलीगर हथियारों का मुरचा खुरचते हैं । अलग करना । उलझन या फैसाव प्रादि दूर करना । २. छोलनी-मंझा जी० [हिं० छोलना] १. छोलने का औजार । २. बंधन से मुक्त करना । उ० –जरासिंधु को जोर उघारयो, ईख छीलने का औजार । ३. चिलम में छेद बनाने का फारिकियो फांको। छोरी बंदि विदा किए राजा, राजा ह्व औजार । ४. हलवाइयों का कड़ाही खुरचने का औजार जो गए को ।-सूर०, ११ ११३ । ३ हरण करना । छोनना। खुरपी के आकार का होता है । खुरचनी । उ.---जोरि अंजलि मिले. छोरि तंदुल लए, इंद्र के विभव ते छोला--सक्षा पुं० [हिं० छोलना] १. वह पुरुष जो ईख को काटता अधिक बाढ़ौ।-सूर०, १।५। और छीलता है। २. चना । वूट । संयो॰ क्रि० देना । लेना। छोवन संज्ञा पुं० [हिं० छेवना] कुम्हारों का वह डोरा जिससे वे छोरा :-संर पुं० [सं० शावक, हि. छावक+रा (प्रत्य॰)] चाक पर चढ़े हुए वरतन को अलग करते हैं। . [ी- छोरी] छोकड़ा । लड़का । बालक । विशेष--- कुम्हार लोग इस डोरे को एक सरकंडे में बांधकर छोरा' संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक नाव को दूसरी नाव के साथ बांधकर पानी में रखे रहते हैं। चाक पर सामान तैयार हो जाने के ले जाने का कार्य । बाद इसी डोरे से उसे काटकर अलग करते और फिर उसी छोराछोरी -संझा लौ० [हिं० छोरना] १. छीनखसोट 1 छोना- पानी में छोड़ देते हैं। छीनी। २. झगड़ा। बखेड़ा । झंझट । उ०-मातम देवराम छोवना-क्रि०अ० [हिं०] सोना। नींद लेना । उ०--दाद नित विहरत यामें नहिं कछ छोराछोरी।-देवस्वामी गाफिल छोवती, मझे रब निहारि । मंझेई पिप पाण जौ (शाब्द०)। मंझेई विचार !--दादू०, पृ० ८७ । छोरावना-हिं० छोड़ना का प्रे० रूप] अलग करानो । गुथी या मिली चीजको अलग अलग कराना । छोडवाना । उ०-- छोवा--संक्षा पुं० [सं० शायक] दे० 'छावा' स...हिवन तव भैरव भूषाल बीर वर । कीन हुकम कालीय ऊँच कर। बहुत जंतु सुख खोवा । यी बिग खाँहि जो मानप छोवा छोरावह गजराज पांनि गहि । बहुरि जरी जंजीर थान . चित्रा०, पृ० ३२० । कहि । -पृ० रा०, ६ । १६३ । छोह --संज्ञा पुं० [हिं० क्षोभ] १. ममता । प्रेम। स्नेह । उ०- छोरि-संक्षा पुं० हि छोर] किनारा। कोर छोर । उ तजब छोभ जनि छोड़िय छोह । करमु कठिन कछु दोसु न तजव छोभ जनि छाँडिय छोड । म