पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/५९

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'खरपा खरशाचा. है और इसमें से हरापन लिए हए पीले रंग का एक प्रकार खरभरी-संशा श्री० [हिं० खम्भर+६] दे. 'खलबली' का गोंद निकता है । इसे धोगर भी कहते हैं। खरमंजरी-संचा श्री० [सं० खरमजरो] अपामार्ग। चिचड़ा। खरपा-संज्ञा पुं० [सं० खर्व] चौबगला। खरमंडल-संका पुं० [फा० खा+सं० मण्डल] गोलमाल । विघ्न । खरपात-संशा पुं० [सं०क्षर +हिं० पात घास पात । घास फूस । गुलगपाड़ा । होरा । उ० - जब कोई सुव्य रम्या की बात चली, खरपात्र--संज्ञा पुं० [सं०] लोहे का बरतन (को०] । कि ख मंडल मचा । -प्रेमघन०. भा०२, पृ० २८७1. खरपाल—संज्ञा पुं० [सं०] काठ का बना हुआ बरतन। कठोता। खरमस्त-वि० [फा० परमस्तह.] दे० 'सुरमस्ता' . . खरप्रिय-संज्ञा पुं० [सं०] कपोत ! कबूतर को । खरमस्ता-वि० [फ सरमस्तह] १. दुष्ट । शरारती।२ कामुक खरव-संज्ञा पुं० [सं० खर्व] १. सौ अरख । संख्या का बारहवां स्थान ३.मनाला (को०। २. बारहवें स्थान की संख्या।। खरमस्ती--संज्ञा स्त्री० [फा० खरमस्ती] १. दुष्टता । पानीपन । खरबिरई-संक्षा श्री० [हिं० खर+धिरई-बूटी) घास पात या जड़ी शारत । २ कामुकता (को०) ३. मस्ती (को०)। . बूटी की दवा जो प्राय: देहाती लोग करते हैं। क्रि० प्र०—करना ।--मूझना । खरबुजा-संज्ञा पुं० [फा० खरबुजह ] दे० 'खरबूजा'। खरमास--संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'खरवास ... खरखूजा-संज्ञा पुं० [हिं० खरबूजा] दे० 'खरबूजा.. . खरमिटाव-संशा पुं० [हिं० खर+मिटा] जलपान । कलेवा। खरवूजा--संज्ञा पुं० [फा० खरवुजह] १. ककड़ी की जाति की एक उ०-हम खरमिटान की हैराला चवाय के। भेकल वेल । २ इस बेन का फल । .. घरल बा दूध में सजा तोरे बदे ।-बदमाया। विशेष--इसके फल गोल, बड़े मठे और सुगंधित होते हैं। खरमिटौनी-संवा सी० [हिं० खरमिटाय] दे० 'समिट व। इसके बीच प्रायः नदियों के किनारे पूस माघ में गढ्डे खोदकर वो दिए जाते हैं, और घास फस से ढक दिए जातेजिनले खरमुख'-संघा पुं० [सं०] १. एक राक्षस का नाम जिसे केकय देश में भरत जी ने भागधा । २ तुरंगमुख । किन्नर (को०)। शीन ही बहुत बड़ी बड़ी वेलें निकलकर चारों ओर खूब फैलती खरमुख :--वि० गधे की तरह मुखाकृतिबाला । बदशक्ल । कुरूप हैं । चैत ये ग्रापाढ़ तक इसमें फल लगते हैं। इसकी सरदा, सफेदा, चित्तला आदि अनेक जातियां हैं। इसके वीज ठंडाई के को। साथ पीसकर पिए जाते हैं और कई तरह से चीनी आदि में र खरमुहरा-संथा पुं० [फा० खरमौहरह ]ोटा घोंघा जो ताभदौ पागकर खाए जाते हैं । चीजों से एक प्रकार का तेल भी निकल में होता है। कौड़ी। कादिका । उ०-- एख' मुहा खर्च करना नहीं चाहना --प्रेमधन. भा०२, १० १५६ । । सकता है जो खाने और साबुन बनाने के काम में पा सकता है। खरयान--संशा पुं० [सं०] सवारी या गाड़ी जिसमें दहे जुते हों [को०] । महा०-खरबूजे को देख कर खरबूजे का रंग पकड़ना=किसी एक व्यक्ति की देखादेखी या संग से दूसरे का भी वैसा ही हो जाना। खररश्मि-संज्ञा पुं० [सं०] तिम्रश्मि । सूर्य [को० . खरबूजी---वि० [हिं० खरबूजा खरबूजे की तरह रंगवाला। खररोमा-संधश पुं० [सं० खररोमन् ] एक प्रकार का सर्प कि ख रवोजना-संज्ञा पुं० [हिं० खार+बोशना] रंगरेजों का बह खरल-सबा पुं० [सं० खन] पत्थर का मटधड़ा जिसपर रंग का माट रखकर रंग टपकाते हैं । फूडी जिसमें दस्ते से गेपधियों की जाती हैं। खल । खरबोरिया-संक्षा स्त्री० [हिं० खरमराना] खलबली । हलचल । मुहा०-- साल करना =ोपछि प्रादि को खरल में डालकर उ०--फुल न देई की वरात में खरवोरिया मचिगी।-पोदार महीन पीसना । महीन कटना। . अभिय, पृ० १००७।। खरी-संज्ञा सौ. [हिं०] ० 'साली'। खरव्या--वि० [हिं० खरा] चरित्रहीन । बदचलन। खरलोमा--संज्ञा पुं० सं० दे० 'खरगेमा' को०1. विशेष---इस शब्द का प्रयोग प्रायः स्त्रियों के लिये ही होता है। खरवट-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] काठ के दो टुकड़ों से बना हमा एक . खरभर--संज्ञा पुं० [अनु०] १. खरभर का शब्द । २.हौरा और तिकोना औजार जिनमें रेती जानेवाली वस्तु को फंसाकर उसे गुल गपाड़ा । रोला। उ०--खरगर सुनत भए उठि ठाढ़े। रेतते हैं। सिधिलित अंग भंग सुखं गाढ़े। हम्मीर०, पृ०१०।३. खरवास- संशा पुं० [हिं० खर+मास] पूस और चंत का महीना हलचल । गड़बड़ । उ०--होनिहार. का करतार को रखवार जब सूर्य धन और मीन का होता है। इन महीनों में मांगलिक जग खरभर परा । दुई माथ केहि रतिनाथ जेहि कहें कोपि कार्य करना वचित है। कर धनुसर धरा ।—तुलसी (शब्द०)। खरवार-संज्ञा पुं० [सं० खर+चार] रवि भौम प्रादि अशुम दिन । खरभरना-क्रि०अ० [हिं० खरभर ] दे० 'खरभराना। खरशब्द-संक्षा पुं० [सं०] १ कुरर नाम का एक पक्षी । २.गर्दभ खरभराना-क्रि० अ० [हिं० खरभर] १. खरभर शब्द करना । का स्वर [को०] 1 . . . २.शोर करना । रोला करना। ३. गड़बड़ या हलवल खरशाक --संझा सं० [सं०] भारंगी नाम का पौधा [को०)। . मचाना । चंचल होना। व्याकुल होना । ... खरशाला-संज्ञा पुं० सं०] गदहों वे रहने का स्थान [को०] |