पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/६२

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सब्दांकुरक खरीदार: - क्रि० प्र०-याना ।-लाना ।—होना। मोही मेलि, के विम्ल विवेक विराग -तुलसी : मुहा०-सरावी में पड़ना=विपत्ति या दुर्दशा में पंचना। पृ० १२४ । ........ . . . .., ३.गंदगी। गलीज (कहारों की बोली) . . . .:. खरियान-संचा पुं० [सं० खल+स्थान, हिं०. खलियान, खलिहान] विशेष-जब अगला कहार कहीं विष्ठा श्रादि पड़ा-देखता है.. . दे० 'खलियान'। उ०-देखति ही वृज की लुगाइन भयो घाँ तव पिछले . कहार को सचेत करने के लिये इस शब्द " का कहाँ खेत को कहे ते खरियान की समझती ।- ठाकुर, 'प्रयोग करता है। पृ० १५. . . .. ...:, . . . . ... बराब्दांकुरक-संज्ञा पुं॰ [सं० खराब्दाङकरक लहसुनिया नाम का खरियाना-क्रि० स० [हिं० : खरिया - झोली] - १. झोली में रत्न । वैदूर्यमणि ।.. .. . डालना । थैली में भरना । २. हस्तगत करना । ति सेना । ३. खरारि-संज्ञा पुं०.]२०] १. रामचंद्र । २. विष्णु भगवान । ३..., झोली में से गिराना । . .. कृष्णचंद्र । ४. वलराम (धेनुका असुर को मारने के कारण)। खरिहटा-संज्ञा स्त्री० [हिं० खर इहुट (प्रत्य॰)] वह पतली लकड़ी '. ४. एक छंद का नाम जो ३२ मात्राओं का होता है। .. या तिनका जिसमें एक डोरा बंधा रहता है और जिसकी खरायेंध-संज्ञा स्त्री० [हि० खार(क्षार)+गंध] १. मूत्र को दुगंध। सहायता कुम्हार बने हुए वर्तन यादि को चाक की मिट्टी खरारी-संज्ञा पुं० [सं० खरारि] दे० 'खरारि । 30-ते द्विज मोहि . से काटकर अलग करता है। ___.. प्रिय जथा खरारी-मानस, १.१०६ । खरिहाना संज्ञा पुं० [हिं० खलिहान ] दे० 'खलिहान' । उलांग खरालक--संज्ञा पुं० [सं०] १. नापित। हज्जाम 1 २. नाई का सामान तीर मोरी खेती वारी जमुनं तीर खरिहानां ।—कबीर न०, रखने का थैला । किसयत ।३... शिरोपधान । तकिया। ४. . . .पृ० ६३। . . लोहे का वाण (को०)। ... . ..... खरो'-संक्षा नी० [सं०] 'गदही। गदंगी। उ०-फह खगेसप्रेस खरालिक-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'खरालक' (को०). - कवन अभागी। खरी सेव सुरधेनह त्यागी।-मानस ७१११०॥ खराश-संज्ञा स्त्री० [फा०] १. वह हलका घाव जो छिलन प्रादि के खरी-संशा बी० [देश॰] एक प्रकार की ईख । ' - कारण हो जाता है। खरोंच । छिलन । ३.. ख जली (को०)। खरी-संज्ञा स्त्री० [सं० खली दे० 'खली'। ..खराश्वा-संशा खौसं०] लोचमस्तक । कृष्ण जीरक (को०] ।...: खरो-संझा बी० [सं० खण्डिका, हिं० खडिया, सरिया दे० 'खड़िया'। खराहवा-संज्ञा स्त्री० [सं०] अजमोदा । अजवाइन (को०] 1 . उ०-करम खरी कर, मोह थल, अंक चराचर जाल । हनत 'खरिक-संग्रा पुं० [देश॰] १. वह ऊख जो खरीफ की फसल के बाद गुनत गुनि गुनि हनत जगत ज्योतिपी काल |-तुलसी न०: चोई जाय । २. एक प्रकार का मेवा । छुहारा । खरहरी। पृ० १२३ । .. उ-खरिक, दाख अरु गरी चिरारी। पिंट बदाम, लेह खरोक -संघा पुं० [हिं०] दे० 'खरका'। बनवारी। सूर०, १०।३६६।। खरीखोटी-संवा खी० [हि°) स्पष्ट और कद्री लगानेवाली बात।' खरिकर-संक्षा पुं० [हिं०] दे० 'खरक', 'बरका' उ०-खरिफ खराजघ-संघा पुं० [स० खराजद्ध] शिव का एक नाम को खिलावन गाँइनि ठाड़े। इत नंदलाल ललित लरिका उत खरोता-संचा पुं० [अ० खरीतह [बी अल्पा० खरीती 1१. थाली । गोप महावत ठाड़े । छोत०, पृ०३।। खीसा। २. जैव । ३. वह बड़ा लिफाफा 'जिसमें किसी बढे खरिका --संज्ञा स्त्री० [सं०] कस्तूरी का चूर्ण (को०)। . अधिकारी प्रादि की योर समातहत के नाम ज्ञापन प्रादि - खरिका @-संवा पुं० [हिं०1 दे० 'खरच' । उगया तो चारन भज जाय । दाजया की वह थली जिसमें वे सूई डोरा रखने गो. ग्वारन के संग हाज खरिका में खेलत मों तरिका ४. सुई दोरा रखने की थैली [को०) । डरायोरी ।-दीन० न०, पृ० ६. २. दे० 'खरका । खरीतिया-संच पुं० [अ० मुरीवह मुसलमानी राजत्वकाल का एक खरिच/-संज्ञा पुं० [फा० खर्च डे. 'खर्च . प्रकार का कर । इस अकबर ने उठा दिया था।' ' - खरिया-संवा बी० [हिं० खर घास + ईया (प्रत्य॰)] १. पतली खरोद---संज्ञा स्त्री॰ [फा० खरीद] १. मोल लने की। रस्सी से बनी हुई जाली जो घास, भूसा यादि बांधने के काम यो०-परीद फरोख्त क्रय विक्रय । । पाती है । पौसी। उ०—कृशगात ललात जो रोटिन को २.माल लिया हुया पदार्थ खरीदी हुई चीज । जैसे, यह दुशाला . घर वात घरे खुरपा खरिया। -तुलसी (शब्द०)। २. रेखा बरिया। -तुलसी (शब्द। २. पचास रुपए की मुरीद है।। . झोलीथैली। " खरोदना-क्रि० स सरादन] माल लेना।' ऋयं करना। खरिया-संशा स्त्री० [हिं० खार= राख] कंडे की राख । खरीदा'- ... सरीवहन १. कुमारी कन्या । २. खज्जा- खरिया-संझा श्री[देश॰] १. वह लकड़ी जिसकी सहायता से , नांद में चील कसकर भरते या ददाते हैं । २. एक जंगली जाति। - खरिया-संवा सरी [सं० खण्डिका ६० 'सहिया' । उ०-खरिया, बरी, कपूर सब, उचित न पिय ठिय त्याग 1 है परिया