पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/७

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प्रयोग किया गया है, किंतु हिंदी की और हमारी सीमा है। यद्यपि क्षेत्र में कार्य करनेवाली यह सभा अपने ढंग की पली संस्था है। हम अयं और व्युत्पत्ति का एतिहासिक क्रमविकास भी प्रस्तुत करना हिंदी भागा और साहित्य की जैसी सेवा नागरीप्रचारिणी सभा ने ... चाहते थे, तथापि साधन की कमी तयाँ हिंदी ग्रंथों के कालक्रम को की है वैसी सेवा अन्य किसी संस्थान ने नहीं की। भिन्न भिन्न विषयों प्रामाणिक निर्धारण के अभाव में वैसा कर सकना संभव नहीं हुआ। पर जो पुस्तकें इस संस्थान ने प्रकाशित की हैं वे अपने ढंग के अनूठे फिर भी यह कहने में हमें संकोच नहीं कि अद्यतन प्रकाशित कोशों ग्रंथ हैं और उनसे हमारी भापा और साहित्य का मान अत्यधिक में शब्दसागर की गरिमा आधुनिक भारतीय भाषाओं के कोशों में बढ़ा है। सभा ने समय की गति को देखकर तात्कालिक उपादेयता अतुलनीय है, और इस क्षेत्र में काम करनेवाले प्रायः सभी क्षेत्रीय के वे सब कार्य हाथ में लिए हैं जिनकी इस समय नितांत आवश्यकता भाषाओं के विद्वान् इससे आधार ग्रहण करते रहेंगे। इस अवसर पर है। इस प्रकार यह निस्सांकोच कहा जा सकता है कि मापा और हम हिंदी जगत् को यह भी नम्रतापूर्वक सूचित करना चाहते हैं कि साहित्य के क्षेत्र में यह सभा अप्रतिम हैं। सभा ने शव्दसागर के लिये एक स्थायी विभाग का संकल्प किया है शब्दसागर के द्वितीय खंड का उद्घाटनोत्सव नागरीप्रचारिणी जो वरावर इसके प्रवर्धन और संशोधन को लिये कोशशिल्प संबंधी सभाभवन में माननीय न्यायमूर्ति हरिश्चंद्रपति त्रिपाठी द्वारा १७ पोप, अद्यतन विधि से यलशील रहेगा। संवत् २०२३ को विशिष्ट विद्वानों की उपस्थिति में संपन्न हुआ। इस शब्दसागर के इस संशोधित प्रबंधित रूप में शब्दों की संख्या खंड में 'उ' वर्ण से 'क्वैलिया' तक के शब्द है जिनकी संख्या मुहावरे, मूल शब्दसागर की अपेक्षा दुगुनी से भी अधिक हो गई है । नए शब्द योगिक एवं पर्याय को मिलाकर २०००० के लगभग है। हिंदी साहित्य के प्रादिकाल, संत एवं सूफी साहित्य (पूर्व मध्यकाल), प्रस्तुत तृतीय खंड में 'शंतन्य' से 'छ्वाना' तक के शब्दों का आधुनिक कान, काव्य, नाटक, आलोचना, उपन्यास आदि के ग्रंथ, सांचयन है। नए नए शब्द, उदाहरण, योगिक शब्द और मुहावरे इतिहास, राजनीति, अर्थशाच, समाजशास्त्र, वाणिज्य आदि और तथा पर्यायवाची शब्दों से संबलित इस भाग की शब्दसंख्या लगभग अभिनंदन एवं पुरस्कृत ग्रंथ, विज्ञान के सामान्य प्रचलित शब्द पीर २१००० है। अपने मूल रूप में यह अंश कुल ४२६ पृष्ठों में था जो राजस्थानी तथा डिंगल, दक्खिनी हिंदी और प्रचलित उर्दू शैली आदि अपने विस्तार के साथ इस परिवधित संशोधित संस्करण में ५६८ से संकलित किए गए हैं। परिशिष्टि खंड में प्राविधिक एवं वैज्ञानिक पृष्ठों में आ पाया है। तया तकनीकी शब्दों की व्यवस्था की गई है। संपादकमंडल के प्रत्येक सदस्य ने यथासामयं निष्ठापूर्वक इसके हिंदी शब्दसागर का यह संशोधित परिवधित संस्करण कुल निर्माण में योग दिया है। श्री कृष्णदेवप्रसाद गौड़ नियमित रूप से दस खंडों में पूरा होगा। इसका पहला खंड पौष, संवत् २०२२ वि० नित्य सभा में पधार कर इसकी प्रगति को विशेपं गंभीरतापूर्वक गति में छपकर तैयार हो गया था। इसके उद्घाटन का समारोह भारत देते रहे हैं और पं० करुणापति त्रिपाठी ने इसके संपादन और संयोजन गणतंत्र के प्रधान मंत्री स्वर्गीय माननीय श्री लालबहादुर शास्त्री में प्रगाढ़ निष्ठा के साथ घर पर, यहाँ तक कि याना पर रहने पर भी, द्वारा प्रयाग में ३ पोप, सं० २०२२ वि० (१५ दिसंबर, १९६५) को पूरा कार्य किया है। यदि ऐसा न होता तो यह कार्य संपन्न होना भव्य रूप से सजे हुए पंडाल में काशी, प्रयाग एवं अन्यान्य स्थानों के संभव न था । हम अपनी सीमा जानते हैं । संभव है, हम सबके प्रयत्न वरिष्ठ पीर सुप्रसिद्ध साहित्यसेवियों, पत्नकारों तथा गण्यमान्य नागरिकों में बुटियां हों, पर सदा हमारा परिनिष्ठित यत्न यह रहेगा कि हम की उपस्थिति में संपन्न हुआ। समारोह में उपस्थित महानुभावों में इसको पीर अधिक पूर्ण करते रहें क्योंकि ग्रंथ का कार्य अस्थायी नहीं - विशेष उल्लेख्य माननीय श्री पं० कमलापति जी त्रिपाठी, हिंदी सनातन है। । विश्वकोश के प्रधान संपादक श्री डा. रामप्रसाद जी त्रिपाठी, पद्मभूषण ___ अंत में शब्दसागर के मूल संपादक तथा सभा के संस्थापक स्व. कविवर श्री पं० सुमित्रानंदन जी पंत, थीमती महादेवी जी वर्मा पादि है। इस संशोधित संबंधित संस्करण की सफल पूति गे डा० श्यामसुदरदास जी को अपना प्रणाम निवेदित करते हुए, यह उपलक्ष्य में इसके समस्त संपादकों को एक एक फाउंटेनपेन, ताम्रपक्ष संकल्प हम पुनः दुहराते हैं कि जब तक हिंदी रहेगी तब तक सभा मौर ग्रंथ की एक एक प्रति माननीय श्री शास्त्री जी के करकमलों रहेगी और उसका यह शब्दसागर अपने गौरव से कभी न गिरेगा । इस द्वारा भेंट की गई। उन्होंने अपने संक्षिप्त सारगमित भापण में इस क्षेत्र में यह नित नूतन प्रेरणादायक रहकर हिंदी का मानवर्धन करता, समा की विभिन्न प्रवृत्तियों की चर्चा की और कहा : सार्वजनिक । रहेगा और उसका प्रत्येक नया संस्करण और भी अधिक प्रभौज्वल होता रहेगा। ना०प्र० सभा, काशी: । सुधाकर पांडेय विजया दशमी, २०२४ वि०। प्रधान मंत्री