पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/७१

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खांचा “११४७ - खांसी खाँचना -क्रि० स० [कर्षण या सन = खींचना, अथवा खचन- जो तो कर पग नहीं कही ऊखल क्यों बौधौ । नन नासिका वंठाना] [वि० खंया] १. अंकित करना । चिह्न बनाना । मुखन चोरि दधि कौने खाध्यो। -सूर०,१०1४०६५ . . . . खींचना । उ०-प्रापकीय रेख खाँचि देव साखि दै चले। खाँप-संज्ञा स्त्री॰ [हिं०] टुकड़ा । फाँक । . नाधिहैं ते भस्म होहिं जीव जे बुरे भले के शव (शब्द०)। खॉपरण-संज्ञा पुं० [अ० कफन]. दे० 'कफन' उ-मन चलाय . २.खींच या कसकर बनाना । जैसे,-(क) जाली खोचना। खापण मही काढ़े नफो कुचील !---बाँकी० ०, मा० २, - (ख) डलिया खाँचना । ३ जल्दी जल्दी या भद्दी लिखावट लिखना। ४. खचित या युक्त करना । खाँपना-क्रि० स० [सं० क्षेपण, प्रा० सेपन] १. खोंसना । २. - खांचा-संज्ञा पुं० [हिं० खोचना] [स्त्री० खाँची] १. पतली जड़ना । लगाना ३.चारपाई की बुनावट में, एक. नुकीली टहनी ग्रादि का बना बड़ा टोकरा । झाबा । २.बड़ा पिंजड़ा। कील से उसकी बुनन को कस या दवाकर दृढ़ करना । गछना। . खाँचातारण-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० खींचातान' 1 उ०-वड़े भार खा भ91-संज्ञा पुं० [हिं० खंभा] खंमा। स्तंभ । उ०-कीन्ह : जूप वहै कर न खाँचाताण । वाँकी० न०, भा०१, पृ०४१ खाम दुहु जगत की वाई। जायसी ग्रं० (गुप्त), पृ० १३२ . खाँची-संहा स्त्री० [हिं० खांचा का अल्पा०] खचिया । छोटा खा भल-संचा पुं० [हिं० खाम] लिफाफा । उ०--ताहि पाणि खांचा । तें लियो निकारी। यांचन लागी खाँभ उघारी।-रघुराज खाँटी--वि० (?) १. सुच्चा । साफ । विना मिलावट का। २. निरा । विलकुन । पूर्णतया । खा भना-क्रि० स० [हिं० खाम, खाभ +ना (प्रत्य०) ] लिफाफे - खांड-संज्ञा स्त्री० [सं० खण्ड] १. बिना साफ की हई चीनी । कच्ची में बंद करना । उ०-अस पाती लिखि खाँमी देवाना। चंद्र- शक्कर । २, ईख के रस को पकाकर किया गया कुछ ..हासकर दिया अशाना। रघुराज (शब्द॰) । गीला और दानेदार पदार्थ जिम र राती खावा- संज्ञा पुं० [सं० सम्] अधिक चौंडी और गहरी खाँई। है। राव। उ०-कचन के कोट ५ कॅगूरे अति रूरे वने, खांवां जल पूरे खाडना-क्रि० स० [सं० खण्ड = टुकड़ा] १. कुचल कुचलकर . रक्ष शूरे शस्त्र धारे हैं।-रघुराज (शब्द०)। खाना । चबाना । उ-काढ़े अपर डाभ जनु चीरा रहिर खावा -संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की 'छोटा पौधा जिसके फूल चुवं जी खाँडे बीरा --जायसी (शब्द॰) ।२. खंड खंड सफेद होते हैं। करना। उ-प्रमर सुजान मोहकम बहलोल खान, खोटे.छोडे खा वा-संज्ञा पुं० [सं० खात] खेत या जलस्थान के किनारे का डांडे उमराव दिलीसुर के ।- भूषण ०, पृ० २४१३. कुल के चा मिट्टी का घेरा । मेंड। - (दांतो से) काटना । 30-मेरे इनके बीच परी जिनि प्रधर खासना-कि० ५० [सं० कासन,प्रा० खांसना] कफ या मोर . . दसन खाँडोगी --सूर० (राधा०), १५११1., कोई अटकी हुई चीज निकालने या केवल शब्द करने के लिये खाँडर -संञ्चा पुं० [सं० खण्ड = टुकड़ा टुकड़ा । अंश । खंड। वायु को झटके के साय कंठ से बाहर निकालना। खाँडसारी-संशा सी० [हिं०] खाँड की बनी हुई शर्करा। : खाँसी-संवा स्त्री० [सं० काश, कांस] १. गले और श्वास को खांडा'--संज्ञा पुं० [सं० खङ्ग] खङ्ग(अस्त्र)। चौड़ी फलवाली नलियों में फंसे या जमे हुए कफ अयवा अन्य पदार्थ को बाहर तलवार । उ-जाति सूर अरु खः सूरा । अउ बधिवंत ' फेने के लिये झटके के साथ हवा निकालने की क्रिया-1 काश! सवई गुन पूरा --जायसी (शब्द०)। . .. विशेष—यह क्रिया कुछ तों स्वाभाविक और कुछ प्रयत्न करने खाँडा--संघा पुं० [सं० खण्ड] भाग । टुकड़ा (विशेषतः चतर्थाश)। पर होती है जिसमें कुछ शब्द भी होता है। डाक्टरी मत से खाड़ी-संवा स्त्री० [हिं०) स्त्रियो के पहनने का वस्त्र । साड़ी। यह कलेजे और फेफड़े से संबंध रखनेवाला अनेक साधारण .. । उ०--राती खोड़ी देखि कवीरा, देवि हमारा सिंगारौ । सरग रोगों का चिह्न मात्र है। __ लोक थें हम चलि आई, करन कबीर भरतारो ।-कवीर मं० २.वैद्यक के अनुसार पक स्वतत्र रोग। पृ० १८०॥ विशेष-यह रोग श्वास की नलिया में धुना और चूल लगने, खाँडो--संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'पाड़व' । रुखा अन्न खाने, भोज्य पदार्थ के श्वास की नलियों में चले खाँद-संज्ञा पुं० (सं० स्कन्ध) कंधा । उ०-लिए खाँदे पर जाने या स्निग्ध पदार्थ खाकर ऊपर से जल पीने से उत्पन्न मज जान होर दिल । दक्खिनी०, पृ० ११४। । होता है। इसमें उदानवायु की अनुगत होकर प्राणवायु खाँद+--संज्ञा पुं० [हिं०] पैरों से किसी स्थान की जमीन या धास दूपित हो जाती है और वायु के जोर से खौं खों शब्द के साथ . पात को कुचलने का निशाना। .. ... कफ निकलता है। खांसी होने पर गले में सुरसुराहट होती है , खाँदना-क्रि० स० [हिं०खाव से नाम०] दे० 'खूदना'। भोजन गले में कुछ कुछ सकता है। . आवाज विगढ़ जाती हैं । -संथा पुं० [सं० स्कन्ध] फंधा ।' उ--मो घर रा गाडा . .और अग्निमंदता तथा अरुचि हो जाती है। इसके बढ़ जाने से . - तण, ता खांर्य भर भार ।--बाँकी प्र०, भा० १,१०४01 राजयक्ष्मा और उरक्षत यादि भयंकर रोग उत्पन्न होते हैं। ..." घना--किर स० [सं० पादन] खाना । भक्षण करना। उन उत्पत्तिभेद से यह पाच प्रकार की मानी गई है । यथा--- .