पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/७६

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सादि खानगी

भुजानों और पैरों में पहना जाता था ।-संदू० मि० ० .. कुरंगिन खाधु ।---जायसी (शब्द०)। (ख) भई व्याधि तृष्णा

.. सँग बाधू । सूझी मुक्ति न सूझ व्याधू ।-जायसी (शब्द०)। खादि-संज्ञा स्त्री० [सं० छिद्र] दोष । ऐव। खाधुक@-संज्ञा पुं० [हिं० खाघु+क (प्रत्य॰)] दे० खाधु। खादित-वि० [सं०] खाया हुआ । भक्षित! . खान-संचा पुं० [हिं० खाना] १. खाने की क्रिया। भोजन । खादिता-वि० [सं० खादित खानेवाला । भक्षण करनेवाला [को उ०-बान तजोंगी यो पान तजोंगी प्रो मान तजोंगी न काहूं खादिम-संशा पुं० [अ० खादिम] १.नौकर । सेवक । उ०-रहते . लजोंगी। -विथाम० (शब्द०)। २. भोजन की सामग्री। थे नव्याच के खादिम । कुकुर०, पृ०१५। २. दरगाह प्रादि ३.भोजन करने का ढंग या प्राचार । । · में रहनेवाला । रक्षक । 'यौ०-खानपान । जैसे,-उनका खानपान ठीक नहीं। खादिमा-संञ्चा मौ० ० खादिमह] नौकरानी । सेविगा खान-संवा मी० [सं० खानि] १ वह स्थान जहां से धातु, पत्थर खादिर'-वि० [सं०] खैर का बना हुपा । खदिर से उत्पन्न । खदिर . प्रादि खोदकर निकाले जायें। खानि । प्राकर । खदान :- संबंधी [को०] 1 .:.. .. महा०-खान खुलना-खाने के खोदने का काम जारी होना। खादिर-संज्ञा पुं० [सं०] [संज्ञा स्त्री० खादिरी] बैर । कत्या । ...२.प्राधारस्थान । उत्पत्तिस्थान । जैसे,-गुणों की खान । खादिरसार-संज्ञा पुं० [सं०] कत्या । खर। - ..३. जहाँ कोई वस्तु बहुत सी हो । खजाना । जैसे,--यहाँ क्या ।

रुपए की खान खुली है।

'खादी-वि० [सं० खादिन] १.खानेवाला । भक्षक। २. शत्रु का

नाश करनेवाला । रक्षक। ३. केटीला।

खान--संग पुं० [तातार या मंगोल काङ- सरदार, तु० खान] १. सरदार । उमराव । उ०-मन के वर तुहिं मैन कहा मत खादी-संक्षा सी० [देश०] १.गजी या इसी प्रकार का और कोई ___ मान । मोहि देखा वहत ले इनने खान खुमान । -रसनिधि मोटा कपड़ा। उ०--सब इक से होत न कहू, होत सवन में (शब्द०)। २. पठानों की उपाधि। फेर । परी घादी वाफती, लोह तवा शमशेर ।-प्रभा० खान--संज्ञा स्त्री० [फा० खाना] कोल्हू का वह छेद जिसमें रुख - वि० (शब्द०)।२.हाघ का काता और बुना हुमा एक प्रकार की गड़ेरियां या तेलहन भरकर पेरते हैं । खाँ । घर । ":"का मोटा वस्त्र खद्दर । खान-संज्ञा पुं० [सं०] बोदने का कार्य । खनन । खोदना । २.

यौल-वादी आश्रम में वह स्थान जहाँ खादी के वस्त्र तयार और

चोट । घाव [को०] 1. . विक्रय किए जाते हौं । खादी केंद्र = वह स्थान जहाँ खादी खानक'-वि० [सं०] खनने या खोदनेवाला [को का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। खावीधारी खादी के खानकर--संथा पुं० १.वान खोदनेवाला व्यक्ति । बेलदार । 'वस्त्र पहननेवा ना । खादी भंडार-खादी की दूकान । खादी ३. मेमार राज । ववई । उ०-दारु कर्मकारक अरु खानक प्राथमा . .. . अरु दैवज्ञ सोहाये ।-रघुराज (शब्द०)। ४. सेंध मारनेवाला खादी--वि० सं० खादी - वोष] १.दोष निकालनेवाला। बोरा चोर (को०)। . . छिद्रान्वेषी । २.जिसमें ऐव हो। दूषित खानकाह-संज्ञा स्त्री० [अ० खानकाह] मुसलमान साधुओं या. - खादुक-वि० [सं०] [वि० खौ० खादुको] १.जिसकी प्रवृत्ति सदा हिंसा धर्मशिक्षकों के रहने का स्थान या मठ । की ओर रहे। हिंसालु । २.धोखेबाजा हानिकर (को०)। खानखाना-संज्ञा पुं० [फा० खान खानान] १. सरदारों का सरदार। - खाद्य-वि० [सं०] खाने योग्य । भोज्य । भक्ष्य । ' बहुत ऊँचे दर्जे का सरदार । २. एक उपाधि जो मुगल राज्यों खाद्य'--संज्ञा पुं० वह जो खाया जाय । भोजन। ' में मुसलमान सरदारों को दी जाती थी। "खाद्यमंत्री या पुं० [सं० खाद्य+मन्त्रिन्] किसी देश या राज्य के खानखानी-संवा स्त्री० [हिं० खानखाना] शाह शाही । साम्राज्य । खाद्य संबंधी विभाग का मंत्री।.. उ०-हाथी घोड़े खाक के खाक खानखानी। कहै मलूक रहि . खांद्यान्न--संवा पुं० [सं०] वह अन्न जो खाने योग्य हो। .. जायगा ओसाफ निसानी-मलूक, पृ०१५ । खानखाह-क्रि० वि० [हिं॰] दे० 'खाहमखाह'। पंतंगडोर तोलंगि लहे न खा -जायसी ०,१० ६५ 1 बानगाह संधा पुं० [फा०] दे० 'खानकाह ।। खाधना@--क्रि० स० [सं० खादन] दे० 'खाना'। 30-सूर खानगी'-वि० [फा०] जिससे बाहरवालों का कुछ संबंध न हों। ... जतन तण री कर, जिण से बाधी मन्नोमी ग्रे, निज का । मापस का । घरेलु । घरू। .. .मा० १, पु० ३.. खानगीर--संज्ञा श्री [फा०] १.केवल कसव करानेवानी और बहुत लापिल-संज्ञा पुं०, वि० [हिं०] सं० 'खाधु। उ० करै खाधि . तुच्छ वेश्या। कसको। २. रखेली। रखैल (को०) ३. गत ... अखाधि सनचारा।-संत दरिया, पु० २२१ ।। से व्यभिचार करनेवाली । व्यभिचारिणी। उ०-लखनऊवाले ... यो०-वाघि पखाधि-- भक्ष्याभक्ष्य । ... . तो गुप्त पुश्चली गृहस्थियों ही को खानगी कहते हैं। परंतु साधु साधू @-संज्ञा पुं० [सं० बाय] .. . ..इधर प्रत्यक्ष निम्न श्रेणी की निकृष्टतम वेश्यांभों को। ...... प्रेमपन, भा०२, पृ. ३५३ ।।

:::बाबू । उ-जोबत पंक्षी "