पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/७८

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सनिहार ना । खपना ! भरना । जैसे-छोटी सी कुप्पी पांच सेर घी खानानशी-वि [फा० खानह नकी j२. एकांतसेवी । विरक्त । २. ': खा गई।। १३, किसी काम को करते हुए उनके किसी अंग घर में ही पड़ा रहनेवाला। विना काम का। बेकार [को०] । - को छोड़ जाना। जैसें,-लिखाने पड़ने में किसी अक्षर को खानापीना-संज्ञा पुं० [हिं० खाना+पीना] खाने पीने का व्यवहार . छोड़ जाना । जैसे-तृम लिखने में कई प्रक्षर खा गए हो। या संबंध । खान पान । १४. (पाधात, प्रभाव आदि) सहना । वरदास्त करना । प्रभाव क्रि० प्र०-छूटना। ।

पड़ने देना । जैसे मार सहना लान खाना, छडी खाना, खानापुरी-संवा स्त्री० [हिं० खाना+पूरना अथवा फा० खादह पुरी]

गाली खाना, चोट खाना,सरदी खाना, धूप खाना, हवा- १. किसी चक्र या सारिणी (फारम या रजिस्टर) के कोठों ".-': खाना, गम खाना, हार नाना प्रादि । ... में यथास्थान संनया या वाक्य प्रादि लिखना निशा भरना। ' मुहा०-मुह को साना-(१) बुराई का ठीक बदला पाना। २. केवल दिखावे के लिये वेमन से काम करना [को०)। खूब नीचा देखना। किए का पूरा , फल. पाना। खानापूरी--संघा मी० [हिं०] दे० 'खानापुरी'। हार जाना। खानाबदोश-वि० [फा० खानह बदोशी] जिसके रहने या ठहरने वाना-संग्रा पुं० [फा० खानह] १. प्रालय । घर । मकान 1 जैसे, . का कोई निश्चित स्थान न हो । जिसका घरवार न हो। ...खाक नाना, दवाखाना, कुडाबाना आदि ।२.किसी चीज के खानाबदोश-संश पुं० एक जनजाति । स्थायी निवास रहित एक , रखने का घर । केस । जैसे-चश्मे का माना, बड़ी का संचरणशील जाति जो कुछ समय के लिये जहाँ कहीं खेमे, ... माना यादि । ३.ग्रालमारी, मेज या संदूक आदि में चीजें सिरकी प्रादि डालकर दिन बिताती है। रखाने के लिये पटरियों या तख्तों के द्वारा किया हुग्रा विभाग। खानाबदोशी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० खानह बदोशी] इधर उधर व्यर्थ

४:सारणी या चक्र का विभाग । कोष्ठक।

घुमने या संचरणधील जीवन बिताने की स्थिति । उ०-- - क्रि० प्र०-बनाना !-पूरना ।-मरना! . ", खानाय दोशी जीवन के बारे में पूछने पर तरुण ने कहा!-- ५. संदूक । पेटी ।-(लश०)। . किन्नर०, पृ० ४१ 1. . खानापावाद-संज्ञा पुं० [फा० खानह भावाद) घर धनधान्य से. खानावरवाद-वि० [फा० खानह वरवाद] दे० खानाखराब। .... : पूर्ण रहे ऐसा प्राशीर्वादात्मक शब्द [को०] । खानावरवादी-संवा बी० [फा० खानह बरबादी] १. आवारापन । खानापावादी--संथा मी० [फा० धानह.भावावी] १. घर के २. बदकिस्मती । भाग्यहीनता [को०)। th ग्राबाद होने या बसने की स्थिति । समृद्धि । २. विवाह खानाशुमारी-संगां बी० [फा० खानह शुमारी] किसी गाँव या परिणय 1 शादी (को०] 1 - नगर आदि के मकानों की गिनती का काम 1 खानाखराव-वि० [फा० सानहराब] [संघा खानाखरांबी] १. खानासाज-वि० [फा० सानह साज] घर का बना हया। राह में चौपट करनेवाला । सत्यानाशी। २. जिसके रहने का ठिकाना सामाग्री। २.जिसके रहने का ठिकाना निर्मित कि० ! . या घर वार न हो। आवारा । खानि -संञ्चा श्री० [सं०] १. खान खदान उ०--सौ जहाँ हीराम खानाखदा--संज्ञा पुं० [फा० खानए खुदा] ईश्वर का निवास । उपा- कोवानि ती aat यो...हो . सुना गृह [को०] । १०३। २. गुफा । कंदरा (को०)। सामाजंगी-संशा श्री० [फा० खानह जंगी] पापस की लड़ाई । खानि-संत्रा बी० [सं० खानि या हिं०खान] १. उत्पत्तिस्थान । .. परस्पर का झगड़ा । . उपजने की जगह 1 उ०-दारिद विदारि की प्रम को तलास खानाजाद-वि[फा० खा नहजादा घर में पैदा या पाला पोसा तो हमारे यहाँ अनागिन दारिद फी खानि हैं। दास ... हुमा । घरमाया (गुलाम)। (शब्द०)। २.वह जिस में या जहाँ कोई वस्तु अधिकता से खानाजाद-संवा पुं० सेवक । गुलाम । दास 150-मन विगरौं हो।खजाना । 3०-हा गुण्खानि जानकी सीता -तुलसी - ये नन बिगारे । ये सच कहो कौन हैं मेरे खानाजाद विचारे । (शब्द०)। ३. मोर। तरफ । उ०-~यमद्वारे में दूत सब ।

-सूर (शब्द०)।

करते पेंचा तानि । उवते कभू न छूटता फिरता चारों खानातलाशी-संघा मौ० [फा० खानह तलाशी] किसी खोई, छिपी खानि।-कवीर (शब्द०)। ४. प्रकार । उयह । दंग। 1 या धनजानी चीज के लिये मकान के अंदर छानबीन करना। -उ०-चार खानि जग जीव..जहाना ।—तुलसी (शब्द०)। विशेप-यह क्रिया प्रायः राज्य या किसी बड़े अधिकारी की खानिक'gf-संषा स्त्री० [हिं० खान] खदान। खान । उ०- अोर से या भाज्ञा से होती है। .... .. सानादामाद-संभा पुं० [फा. खानहू दामाद] पवसुर के घर रहुने- सूझहिं रामचरित मणि मानिक । गुपत प्रगट जह जो जेहि '... " - वाला जामाता घरजवाई [को०] . .... बानिक ।-तुलसी (शब्द०)। .. खानादार-वि० [फा० खानह दार] १.घरवारवाला। गहस्य । २. खानिक-संवा पुं० [सं०] दीवाल का छेद । सेंध को०11 .. घर का मालिक ।। गृहत्वामी। ३. दरवान द्वारपाल [को०] खानिल--संका पुं० [सं०] सेंध मारनेवाला तस्कर को शानादारी-संवा मी० [फा. सानह दारी गृहस्थी। खानेहारत-वि० [हिं० खानादार (प्रत्य॰) मोजन करनेवाला तो हमार