पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/७९

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खानीदक खानेवाला । उ०- अरे हारे पलटुं जानेखानेहार और नहिं दृढ़ या पुष्ट न हो। ३. जिसे तजुरवा न हो। अनुभवहीन । स्वाद उसी का।--पल०, पृ०७५ ! ४.बुरा । उ०-खुदा को समझना बड़ा काम है जिते का खानोदक-संचा पुं० [सं०] नारियन का वृक्ष (को०)। उसका के ग्राने खाम है ।--दक्खिनी०, पृ० २६१ । । खाप-संहा पुं० [हिं० सपना या खपाना] चोट ! वार प्राघात। खाम खथान--संज्ञा पुं० [फा० खामसयाल] व्यर्थ के विचार। खापगा-संज्ञा श्री० [सं०] आकाशगंगा [को०)। .' गलत विचार 130--खाम खयाल करि दूरि दिवाना।- खापट---संका टी० [हिं० खपटा] एक प्रकार की भूमि जिसमें लोहे पावीर श०, पृ० ३० का अंश अधिक होता है। खामखयाली-संया शौ० [फा० सामन यालो] गलत धारणा विशेष----इस भूमि की मिट्टी बहुत कड़ी और भारी होती है और व्यर्थ विचार। उ०-देखती कला विधि के विधान में भी पानी बरसने पर बहुत लमदार हो जाती है । ऐसी भूमि केवल त्रुटियाँ, कल्पना सत्य ही खाम. .खवाली होती हैं।--नील बरसात में ही जोती जा सकती है और इसमें छान के प्रति: पृ०६०। . . रिकन और कोई चीज नहीं उपज सकती। इसकी मिट्टी से, सामखाह, खामखाही-कि० वि० [फा० ख्वाह-म-ख्वाह दे० जिसे कपास और काविस भी कहते हैं, कुम्हार लोग बरतन . स्वामख्वाह'1 . बनाते हैं। खामग -वि० [सं० स्फम्भन या फा० खाम (राज.) रण. खापड़@---संज्ञा पुं० [सं० खर्पर, प्रा० खप्पर, खप्पड़, हिं०.खपड़ा] . . (प्रत्य॰)] खाम करनेवाला । रोकनेवाला । उ०---रीत खप्पर । भिक्षापात्रा खरड़ा। अनीत फैलियो रावण खमियो नहीं अभायां खामण।--रा० । खापरी--संज्ञा स्त्री० [हिं० खापट] १.दे० 'खापट'। २. ऊभड़. ० १०.३६४। । खाभड़ भूमि । ऊची नीची जमीन। खामना-क्रि० स० [सं० स्कम्भनमूदना, रोकना, प्रा० खंभन] खाफड़ा-संज्ञा पुं० [हिं०] खप्पर या थाली में माने लायक.खाना । १.गीली मिट्टी या प्राटे आदि से किसी पात्र का मुह बंद भोजन । उ०--फरीदा घोर निमाणिया रे महलो माल न करना । ३. चिट्ठी को लिफाफे मे बंद करना। लाय । खाफड़ सेती राखले रे ओर फ़कीरा खुलाय ।--राम, खामा--संधा पुं० [फा० खामह ] कलम । लेखनी । - --पूछा ले। धर्म०, पृ० ३४। हात में मुल्ला खामा । हकीकत क्या लिखू सो वो नामा :--- खाबg+--संज्ञा पुं० [फा० स्वाब] स्वप्न । उ०प्यारी के पायन . दक्खिनी, प० २५० । की उपमा द्विज को सब जानि परि जिमि खाब की। पंकज- खामिंद-संज्ञा पुं॰ [फा० खाविंद] स्वामी । मालिक । उ०- पात की बात कहाँ जिन कोमलता लई जीठि गुलाब की।- खामिद कब गोहरावं चाकर रहैं हजूर:- द्विज (शब्द०)। . . . खामियाजा---संज्ञा पुं० [फा० ख म्याजह.] नतीजा। परिणाम! . खाव+-संज्ञा पुं० [वि० खाना] भोजन । खाना। . . उ-इसका खामियाजा आप न उठाएँ तो कोन उठाए।- खाबड़ खूबड़--वि० [अनु॰] जो सम न हो। कैचा नीचा। .... मान०, पृ० ३१५ । विशेष--यह विशेषण प्रायः 'भूमि के लिये ही आता है। खामी-संघा सी० [फा० खामी] २. कचाई। कच्चापन । २... खाभा-संथा पुं० [हिं० खाभना] मिट्टी का वह बरतन जिससे तेली नातजरबेकारी। ३.कमी। अपूर्णता। . कोल्हू के नीचे के वरतन में से तेल निकालते हैं। ....... खामोश-वि० [फा० खामोश) चुप । मौन । .. खाम- संज्ञा पुं० [हिं० खामना] १. चिट्ठी का लिफाफा । उ०- खामोशी संज्ञा खौ० [फा० खामोशी] मीन चुप्पी।। . वाचत न कोक अब वैसई रहत खाम, युवती सफल जानि खायकां-वि० [सं०.क्षय खोटा। निकम्मा.। उ०-खबखूनी है। गई गति याकी हैं।--द्विजदेव (शब्द॰) । २. संधि । तो घण खायक । दुनिया दुज देवा दुखदायक ।-रा० २०, . जोड़ । टांका। :: . ... .. ..

पु०.१७८। .

क्रि० प्र०-लगाना। ...:. . . . खाया संमा ०.[फा० खायह ] अंडकोप । . .... । विशेष - कहीं कहीं यह शब्द स्त्रीलिंग भी बोला या लिखा यौ०-खायाबरदार: चापलूस। खुशामदी। खायावरदारी: . जाता है। ...... ... .... .. अनावश्यक चापलू सी। बहुत खुशामद । . . ... खाम-संज्ञा पुं० [हिं० प्रभा[१.खंभा । स्तंभ । 30-लेस सार-संचा पुं० [सं० क्षार, प्रा० खार] १. दे० 'बार'।.सज्जी। . भव के दे अवै .तू भजन को दृढ़ खाम ।-वन००, पृ० ३. लोना । लोनी। कल्लर। रेह। 4°°°क्रि०प्र०-लगना । .... १६०1. जहाज का मस्तूल (लश).. . .: महा०-खार लगताछरछराना। . . ..... खाम -वि० [सं०क्षान] घटने या बीण. होनेवाला। उ०-- ४.घुल । भस्म । राख । ५. एक प्रकार की झाड़ी जिससे खार नाम रूप अरु लीला घामा रहत नित्य ये पड़त न खामा ।- ... निकलता है। . . .. .. . विधाम (शब्द०/-." . . . .. ...विशेष-यह पंजाब में नमक के पहाड के पासपास तया पच्छिमी नाम --- वि० [फा० खाम] १..जो की न हो। कच्चा । सो प्रांतों में होती है।