पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/८३

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१९५९ खासी खिचड़ी'. खासी-संज्ञा स्त्री॰ [१०] खास राजा के बाँधने की तलवार, ढाल खिचवा-वि० [हिं० खींचना] खींचनेवाला। या बंदूक । विशेष-इस शब्द का प्रयोग प्रायः नाव की गून अथवा मुराद . खास्तई -संज्ञा पुं० [फा० खास्तई] कबूतर का एक विशिष्ट रंग [को०] की बड़ी खींचनेवालों के लिये होता है। खास्सा-संज्ञा पुं० [अ० खास्सह] स्वभाव । प्रादन । बानि । प्रकृति । खिचवाना-फ्रि० स० [हिं० 'खींचना' का रूप खींचने की खाह-अध्य० [फा० ए वाह] दे० 'वाह' । . प्रेरणा देना : खींचने का काम किसी अन्य से कराना। खाहनखाह, खाहमखाह--क्रि० वि० [फा० एवाह-म-हवाह] ३० खिंचाई-संक्षा बी० [हिं० खींचना] १. खीचने की क्रिण । २. ___ 'स्वाहमस्वाह। खींचने का भाव । ३. खीचने की मजदूरी। खाहा--वि० [फा० स्वाहाँ] ३० 'वाहो' । खिचाना-क्रि० स० [हिं०] • खिचवाना'। खाहिश-संक्षा सी० [फा० ख्वाहिश] दे० 'एवाहिश! .. .: खिचाव-मंशा पुं० [हिं० खिखना] १ 'खीनना' का भाव । तनाव । खाहिशमंद----वि० [फा० स्वाहिशमंद] दे० 'वाहिशमंद। २.नाराजगी। खाहीनखाही--कि० वि० [फा० स्वाहमख्वाह] दे० 'स्वाहमन्त्राह'। खिचावट, खिचाहट-संशा स्रो० [हिं० खिचना] १. खींचने का खिकिर-संज्ञा पुं० [सं० सिङ्किर ] लोमड़ी [कोन भाव । २. खींचने की क्रिया। खिखिर-संक्षा पुं० [सं० खिङ्किर ] १. लोपड़ी । २. खटिया का खिचिया -वि० [हिं०] दे० "खिचया' । खिंडाना-क्रि० स० [सं० क्षिप्त ] इधर उधर फैलाना। पावा । ३. एक प्रकार का गंघद्रव्य [को०] । घिसेरना । विखराना छितराना। खि ग-संज्ञा पुं॰ [ फा लिंग] वह सफेद रंग का घोड़ा जिसके मुंह सिंथाल संशा स्त्री० [सं० 'कन्या ] दे० 'कथा' । उ०--नां तिमु पर का पट्टा और चारों सुम गुलावीपन लिए सफेद हों।। . खिंया ना ठिसु बस्तरु । नानक जोगी होया पस्थिर ।-प्राण, नुकरा । उ०- हरे हरदिया हंस खिंग गरी फुलवारी!- पृ० १०६ सुजान, पृ०८॥ खिवनाएं-क्रि०प्र० [ देश० ] दे० 'खियना'। उ-खिव पार खिंगरो--संज्ञा स्त्रीण देश०] मैदे की बनी हुई बहुत पतली और छोटी पखं, झड़ धार खगे। ललकार उचार अपार लगे। -रा० . खस्ता पूरी या मठरी। ६०, पृ० ३५. खिंचना-कि० अ० [सं० फर्षण J१ किसी वस्तु फा इस प्रकार खिखिद-संज्ञा पुं० [सं०किष्किन्ध ] १. दक्षिण देश के एक पहाड एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना कि वह गति के समय का नाम, जहाँ वनवास के समय में कुछ दिन रामचंद्र जी ने अपने आधार से लगी रहे । घसिटना । जैसे, यह लकड़ी कुछ निवास किया था। यह पहाट मंसूर राज्य के उत्तरी माग में उधर खिंच गई है। २. किसी कोश, थैले प्रादि में से किसी . है। किष्किंध पर्वत । २, बीहड़ भूमि । वस्तु का वाहर निकलना । जैसे,-दोनों तरफ से तलवारें विखिinी खिखि–संह बी• [सं०] लोमड़ी [को०] । . म01लो. खिव गई। ३. किसी वस्तु के एक या दोनों छोरों का एक खिचडवार--संश[हिं० खिचड़ी+वार] मकर संक्रांति । इस या दोनों ओर बढ़ना । सनना। ४. किसी प्रोर बढना या दिन खिचड़ी दान की जाती है। जाना । आकर्षित होना । प्रवृत्त होना। . खिचड़ी-संवा स्त्री० [सं० कृसर] १. एक में मिलाया या मिलाकर मुहा०-चित्त खिचना = मन मोहित होना। . पकाया हुम्ना दाल और चावल । '५. सोखा जाना । खपना । चुसना । जैसे,—सोखता रखते ही कि.प्र.--उतारमा !-चढ़ाना 1-अलना ।-भूनना ।-- उसमें सारी स्याही खिच पाई। ६. भमके आदि से अर्क या पकाना। - शराब प्रादि तयार होना । ७. किसी वस्तु के गुण या सत्व महा०-पक ना पकना = गुप्त भाव से कोई सलाह होना। का निकल जाना । जैसे,—उसकी सारी शक्ति खिंच गई। ढाई चावल की खिचड़ी अलग पकना= सत्र की संमति के मुहा०--पोड़ा या दर्द खिचना%D (प्रौपध यादि से ) दर्द दूर विरुद्ध कोई कार्य होना । बहुमत के विपरीत कोई काम होना। होना । जैसे,—उस लेप के लगाते ही सारा वर्द खिच गया। ढाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना सब की संमति के ८. कलम आदि से वनकर तैयार होना । चित्रित होना । जैसे,- . तसवीर खिचना । ६. रुक रहना । रुकता । विरुद्ध कोई कार्य करना । बहुमत के विरुद्ध कोई काम करना । 'महा-हाय खिचना-देना आदि बंद होना जैसे, अगर उधर खिचड़ी खाते पहुंचा उतारना = अत्यंत फोमल होना । बहुत से हाथ खिचे, तो तुम भी वंर कर देना। . . . नाजुक होना । खिचड़ी छुनाना : नववधू से पहले पहल भोजन १०. माल की चलान होना । माल खपना । जैसे, इस देश का बनवाना। , . सारा कच्चा माल विलायत को खिचा जाता है। ११. २. विवाह की एक रसम जिसे 'भात' भी कहते हैं। .... अनुराग कम होना । उदासीन होना । १२. भाव तेज होना। मुहा०-खिचड़ी खिलाना= वर और बरातियों को (कन्या पस महंगा होना । जैसे,-वर्षा न होने के कारण दिन पर दिन . वालों का ) कच्ची रसोई खिलाना। भाव खिंचता जाता है। ...३. एक ही में मिले हुए दो या अधिक प्रकार के पदार्थ । जैसे,- संयो०-कि० चुकना-जाना 1--पड़ना। : सफेद और काले बाल, या रुपए सौर अशरफिया; अथवा ।