पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/८४

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खिचडी खितवा : जौहरियों की भाषा में एक ही में मिले हुए अनेक प्रकार के विशेष--इनके बारे में कहा गया है कि यें अमृतं पीकर अमर. . जवाहिरात । ४.मकर संक्रांति । इस दिन खिचड़ी दान की। हो गए हैं । जल इन्हीं के अधिकार में है और ये भूले भटकों जाती है। __को राह बताते हैं। यो०-खिचड़ी खिबड़वार । ३. एक समृद्र । कैस्पियन सागर । ४. दीर्घजीवी फरिश्ता [को०] । ५. बेरी का फूल। क्रि० प्र०-प्राना। खिज्रसूरत-वि० [अ० खिंज:+रत] साधु या संत की प्राकृति दह पेशगी धन जो वेश्या आदि को नाच ठीक करने के समय का। साधु संतों बसे रूपवाला [को०] । . दिया जाता है। बवाना ! साई। शिक्ष@...-संशा बी० [हिं०] दे० 'खोज' | 10-मनु म मनावन की खिचड़ी-वि० [सं० फुसर] १.मिला जुना । गड्डमड्ड । २. गड़बड़। कर देतु रुठाइ लाइ। कौतुक लाग्यो प्यो प्रिया खिझ है. जैसे,खिचड़ी बोली या मापा । . रिझवति जाइ-विहारी (शब्द०)। .... ... खिझना-क्रि० अ० [सं० खिद्यते, प्रा० खिज्जइत] बीजना ।२०- खिचना-क्रि०अ० [हिं०] ३० "सिंचना। . मंदर वानों कितो बिझिए न-तज तक आपने शील सुभाइन। विचरो" -संश श्री० [हिं० खिचड़ो] दे० 'खिचड़ी'। - -सुंदर (शब्द०)। खिचरों-संत्रा भी [सं० खेचरी] दे॰ 'चरी मुद्रा' । उ०-छव चक्र " ग्रौ पाँचौ मुद्रा। खिचरी भोचरी कहि अनुकारा।-सं० खिजना-क्रि० स० [सं० खिद्यते, प्रा. खिम्जत] चिढ़ाना। विक दरिया, पृ०६। करना। उ०-मया मोहिं दाळ बहुत बिझायो। सूर.. खिचवाना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'खिचवाना' । खिचाव-संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'खिचाव' । . खिझावना -क्रि० स० [हिं०]"खिझाना' । उ०-निपट हमारे तिजना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'खौंजना'। ___ख्याल परे हरि बन में निहिं विझावत ।—सूर (शब्द॰) । 2011 सीखनेवाला खिझुवर-वि० [हिं० खीझना] शीन अप्रसन्न होनेवाला । खोझने । क्षुध होनेदाला । उ०-दिन भर बाट बिलोकनहारे । गर वाला। चिड़नेवाला। बार खिजंदार सिधारे।-हिंदी प्रेमा०, पृ० २०२। खिझौना-वि० [हिं० खीझ पौना (प्रत्य॰)] विझानेयाला । 10 खिजमत, खिजमति-संचा श्री० [हिं०] दे० 'खिदमत' उ०- . चिढ़ानेवाला। खिड़कना-क्रि० अ० [हिं० खिसकना ] चल देना । चला जाना। साखिएक गट मांजिरा खिजमति कर अनंत । डोला०, खिसक जाना । उ०-क्षोभ भरी तिय को निरखि बिड़की दू० ५३५॥ .. सहचरि सोय।-नंददास (शब्द०)। खिजमतिया-संवा पुं० [हिं० बिजमन +इया ( प्रत्य॰)] खिदमत- खिड़काना-क्रि० स० [हिं० खिसकाना] १. अलग करना । टालना। गार । सेवक । टहलुवा। उ०-पहिरि पोसाक खास . ' ____टरकाना । हटाना । २.बेच डालना। प्रोने पीने करना। विजमतिया सँग सेंग बहुद जुरे ।-सं० दरिया, पृ० १५६। खिडकी-संश सी[सं० खटक्किका, देशी बदकिपा, खडकी]१. खिजर-संचा पुं० [अ० खितर] १.पयर्दशक । मार्गदर्शक ।। किसी मकान या इमारत की दीवार में प्रकाश और वायू पाने रहनुमा । २. एक पैगंबर । वि० दे० 'विच' । ३०-पावे के लिये बना हुधा छोटा दरवाजा। जहाज, रेल माद के हयात जाके किसू ने दिवा तो क्या । मानिंद खिजर जग़ में : डब्बे में बनाया हुआ वातायन । दरीचा । झरोखा। महा०-खिड़की निकालना या फाड़ना-खिड़का बनाना। मकेला जिया तो क्या ।-कविता० को०, भा० क० पु० ४१॥ खिजल@-संपा० संबा (म० बजला लज्जा । मिदगी । 30- २. नगर या किले का चोर दरवाजा । ३. खिड़की के आकार का खुरपीद खिजल होके चिना अन के . अंदर 1-कवीर मं०, खाली स्थान। पृ० ३८६ । यौ०-खिड़कीदार मेंगरखा एक प्रकार का अंगरखा जो प्रागे खिजलाना-कि० [ हि० खोजना] मुझलाना । चिढ़ना । कपर की ओर खुला रहता है। खिड़कीदार पगढ़ी एक प्रकार खिजलाना-क्रि० स० [हिं० खोजना 'बींजना' का प्रेरणायक की पगढ़ी जिसमें कपर की प्रोए कुछ भाग खुला रहता है। '. रूप । दुखी करना । चिढ़ना। . खिड़कीबंद मकानबह मकान जो पूरा का पूरा एक किराप: खिजा-संशा मी० [फा० खिजाँ] १. वह ऋतु जिसमें पेड़ों के पत्ते दार द्वारा लिया गया हो। झड़ जाते है । पतझड की ऋत । २. अवनति का समय । खिड़ना -क्रि० स० [सं० खेल प्रा० खिड | खिलना । खिजाना-फि० सं० [हिं०] दे० 'खिझाना'। २०-देवो भाज हाना। ३०-सबा रामाज जन्मे लीजाधारी। विमिर

भक्ति खिड़ेगो परायन पर नारी।--उहजो०, पृ० ५५

तुमने मुझको बहुत किजाया, पर चेत रखो, फिर मुझसे खित@-संथा की [सं० क्षिति। पृथ्वो। धरती।10--वामाख .. ऐसी बातें करोगी 1-ठेठ०, पृ०१३। ... खिजाव-संका पुं० [अ० खिजाब सफेद बालों को काला करने की

ज्युही मसुरांग पड़ा। खिताबूत मेन किसेन बड़ा।-रा.
भौषध 1 केश कल्प!

०,३० ३३ । . . मुहार-सिबाय करना= बालों में विजाब लगाना। . खितवा-संचा पुं० [अ०खुतबा ] दे० 'गुतबा' । उ०-प्रकार साह जि-संवा पुं० [अ० खिच] १. मार्गदर्शक । २. एक पैगंबर जो जलालदी, खितवा बली खुदाय। --बोकी० ६०भा० २, ... या मावे गाते हैं।