पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/९४

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खुरक रांगा जुम-संज्ञा पुं० [फा० जुम, तुल० म० कुम्म] १. घडा । मटका । २. 'पर किसी किसी बुमी के कोशागा गोन भी होते हैं । खुमी के । मदिरा का मटका 1ि0-निशिदिन ये खुम पर ख म ढलते। दो मुख्य भेद हैं-एक वह जो दूसरे जीवित पौधों के रस से । जी के सब अरमान निकलते।-दीप०, पृ० ५६। पलती हैं। और दूसरी वह जो सड़े गले या मृत शरीर से यौ-खुमकदा मंदिरालय । शराबखाना । खुमकश पूरी आहारसंग्रह करती हैं । पहले प्रकार की खुमी गेरुई आदि . मटकी पी जानेवाला । जुमखानाः शराबखाना । के रूप में अनाज के पौधों में देखी जाती है । दूसरे प्रकार की ३. मुगियों का दरवा । ४. भट्ठी । खुमी भूफोड़, कठफूल, कुकुरमुत्ता आदि हैं। खुमी के अधिकांश मुहा०-खम बढ़ाना- घोने के समय कपड़े को भट्ठी पर चढ़ाना । पौधे अंगुल डेढ़ अंगुल से लेकर पाठ पाठ, दस दस अंगुल तक खुमताला-संवा ० [फा० म+हिं० ताल ] मदिरा का पात्र । के दिखाई पड़ते हैं। ये छूने में कोमल और छाते के प्राकार.' शराब का वर्तन । उ०-वुला शाह मजलिस में सफोर • के होते हैं। उत्तरी की बनावट पतंदार होती है। ख मी के । दोनों भाई खुमताल खबतूर कू।--दक्खिनी०, पृ० २२० । कई भेद गूदेदार और खाने लायक होते हैं । जैसे, भूफोड़, स्खुमरा--संज्ञा पुं० [अ० कुन्बुर % अली ( इमाम ) का एक्रगुलाम ] डिंगरी (पंजाब) यादि । कई दुर्गंधयुक्त और विषैले होते हैं। [भाव परी] १. एक प्रकार के भीख मांगनेवाले मुसल जैसे, कुकुरमुत्ता, कठफूल आदि । वैद्यक में खुमी विपली . मान फकीर जो प्रायः पश्चिम में होते हैं। २. एक मुसलमान और धर्मशास्त्र में अभक्ष्य मानी गई है। खाने योग्य खुमी | जाति। (भूफोड़)खूब गुदेदार और सफेद होती है। उसके डंठल में खुमरिहा--वि० [अ० खुमार] जो खुमार में हो। जिसपर नशे की - गोल गोल छल्ले से पड़े रहते हैं, और उसमें किसी प्रकार की " खुमारी हो । जिसकी खुमारी दूर न हुई हो । उ० -जहँ मद गंध नहीं होती। खुमी बरसात में बहुत उपजती है। वहाँ कहाँ संभारा । के सो खु मरिहा के मंतवारा ।-जायसी पर्या-छत्राक । कवक । शिलींध्र । उच्छिलीघ्र। कुकुरमुत्ता। | ..(गुप्त), पृ० ३३७ । गगनधुल । रामछाता । खुमान-वि० [सं० प्रायुष्मान बड़ी पायवाला । दीर्घजीवी1- खुमी-संवा स्त्री० [हिं० खुभना] १. वह सोने की कील जिसे (प्राचीर्वाद) लोग दांतों में जड़वाते है । धातु का बना हुआ वह पोला | खुमानी-संबा पुं० [फा० खवानी ] दे० 'खबानी' । उ०-मखरोट. . छल्ला जा दायों के दाँत पर चढ़ाया जाता है। उ०---ति . खुमावी आदि भी प्रायः सभी पहाड़ों में सुगमता से उपजते गयंद कुच कुंभ किवाणी मनहु घट झहना । मोतिम हार | हैं।--भारत नि०, पृ०१६०। " जलाजल मानो खुमी दत झलकावै। सूर (पाब्द०)। | खुमार-संवा पुं० [अ० खुमार ] दे० 'ख मारी। खुम्हारि@--संभा । हि० खुमार | दे० 'खुमार'। | खुमारी-संश्चा सौ. [अ० खुमार 1१. मद । नशा । उ०-जब खुरट-सचा पुं० [हिं०1 ६० 'खुरड' । जान्यो ब्रजदेव सुरारी। उतर गई तय गर्व खुमारी।-सूर' खरंड-संशा था. [सं० झुर (-खरोचना)+मण्ड अथवा देश.] । (थब्द०) २. वह दशा जो नशा उतरने के समय होती है घाव के ऊपर सूखकर जमा हुमा मवाद । सूखे घाव के ऊपर । और जिसमें कुछ हल्की थकावट मालूम होती है। उ०- ध्रुव प्रहलाद विभीषण माते, माती शिव की नारी । सगुण खुर--संवा पुं॰ [सं०] १. सींगवाले चौपायों के पंर की कड़ी टाप ब्रह्म माते वृदावन, मजहुँ न छुटि ख मारी।-कबीर जो बोच से फटी होती है । गाय, भैस आदि सींगवाले चौपायों

(शब्द०) ३. वह दशा हो रात भर जागने से होती है। के पैर का निचला छोर, जो खड़े होव पर पृथ्वी पर पड़ता

| इसमे भी शरीर शिथिल रहता है। है।सुम । टाप। . क्रि०प्र०-उतरना ।-चढ़ना। यौ०--खुरस-चिपटी टेढ़ी नाकवाला । खुरम्यास =(१)वर । सुमी'-संशा औ• [भ० कुमा [ पत्र-पुष्प-रहित क्षुद्र उद्भिद की का रखना । (२) खर रखने स वना निशान । खुरत्राण- । एक जाति जिसके अंतर्गत भूफोक, दिगरी, कुकुरमुत्ता, गगनघूल • नाल । बुरपदवी - घोड़े के पैर का निशान । खुष:क्षुरप्र : आदि हैं। वाण खुरवंदा= घोड़े बैल मादि के खुरों में नाल जड़ना। | विशेष-इस जाति के पौधों में हरे कोशाण नहीं होते, जिनके २. चारपाई या चौको क पाए का निवा छोर जो पृथ्वी से लगा ___ रहता है। ३. नख नाम गब द्रव्य । ४. छुरा । उस्तरा(को०)... .. द्वारा और पौधे मिट्ठी भादि निरवयव द्रव्यों को अपने शरीर के घातु रूप में परिवर्तित कर सकते हैं। इसी से खुमी जाति के खुरक-सबा की [ हि० खुटक] साच। बठका । अंदेशा . सुमान रहे खुरक जीवहु काल सा भाव । चत्रु अहे जोह पौधे, सफेद या मटमैले होते हैं और अपना आहार दूसरे पौधों करिया काहसा बूड़ी नाव-जायसी (शब्द०)। या तंगों के जीवित या मृत घरीच से प्राप्त करते है। बरसात खरकर--संच पुं० [सं०] १. विउ का पेड़ । २. एक प्रकार का नृत्य। में भींगो, सड़ी लकड़ियों पर एक प्रकार की गोल और छोटो.. खुमी निकलती है, जि: 'कठफूल' कहते हैं। यह प्रायः विषली खुरकरागा-संचन पुं० [सं०खुर+हिरांना ] हिनखरी रांगा होती है। कृमी के परीरकोच की बनावट पोर पोवों की सी .. जो नर्म, सफेद और जल्दी गल जानेवाला होता है। इस रो। नहीं होती। इसके सोचाप सुख की बरख बने बंबे होते हैं। । भाबन उत्तम होता है। . . ....