पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/९९

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खुशाव ११७५ सवित खशाव-संद्या पुं० [फा०] धान की निरोनी का एक ढंग, जिसका खुसफेलो -संशा स्त्री० [फा० खुणफेली] पानंद। तफरीह । चलन कश्मीर देश में है । पाराम । 30-तो इतने में भी सुशफनी से काम चल । खुशामद-संज्ञा स्त्री० [फा० खुशामद] वह झठी प्रशंसा जो केवल जायगा ।-गोदान, पृ० २६२। . दूसरे को प्रसन्न करने के लिये की जाय । चाटता । चापलूसी। खुसबोई -संसानी० [फा० स ग] दे० 'शबू' । उ०-है बोई खुशामदी-वि० [फा खुशामद+ई (प्रत्य॰)] १. खुशामद पास में जानि पर सोय । भरम लगै भटका फिर तिस्य वरत __ करनेवाला । चापलूस । चाटुकार। . सभ कोय।-सं० दरिया, पृ. ३४। यो-खुशामदी टट्टू । खुसबोहा-संगा की० [फा० खणबू'। उ०—जाहर जस] .. २. सब प्रकार का काम करनेवाला । ॐच नीच सब प्रकार की खुरावोह जुत, सुदरा कुसम सुमोह । काँटा सू भूगे, पण वर . टहल वा सेवा करनेवाला।-(बुदेलखंड)। __ अपजस उदवोह । -दांकी न . भा० ३, पृ० ४८ खुशामदी टट्ट-संगापुं० [हिं० खुशामदी+टट्ट] वह जिसकी खुसरंग-वि० ( फ शरंग] दे० 'खुशरंग'। २०-हैं दरिया .. जीविका केवल खुशामद से ही चलती हो। भारी खामदी। गुन गुन खुपरंग है मस्त मन मगन दिल ऐन पानी। खुशियाली-संशा सी० [फा० खुशहाली] १. शानंद । खुशी। दरिया, पृ० ७३ । प्रसानता।२. कुशल क्षेम । खैर माफियत । खुसामत -संका भी० [फ' सुशामद) ३० सुशामद' । उ०---- करत मागत तिन की।-प्रेमघन०, भा० १, पृ० ५६ । . . खुशी-संग्रा मी० [फा० खुशी] १.मानंद । प्रसन्नता। खुसाल-वि० [फा० खुशहाल] प्रानं दत । मुदित खुश। क्रि०प्र०—करना ।-मानना । खुसियाल-संथा श्री० [फा० बुशी+हाल खुनी। प्रसन्नता। . महा०-खुशी स्वशी = प्रसन्नता से। यानंद सहित । ३०-दाखी मरज टुरग यां, मब खेल करा मधार । साहब २. ठर्गों की भाषा में, उनका निशान और कुल्हाड़ा जो उनके . मन खुसियाल सूचीय सान हमार रा००, पृ० १११ 1 . गरोह के आगे चलता है। खुसिहारी@- संझा मी० [सं० कोशपार हिं. कुसवारी] - दे. खुश्क-वि० [फा० खुश्क, तुल० सं० शुष्क] १.जो तर'न हो। 'कुसवारी। उ-सिंहारी के फिरिम मह बिन्द दिया . सूखा । शुष्क। है।-पलटू, पृ. ६६ यो०-खुश्कसाली। खुसुर संशा पृ० [फ मुर] श्वसुर । पत्नी का पिठा। उ--- . २.जिसमें रसिकता न हो। सुखे स्वभाव का । ३.बिना किसी नवाब साहिब के वालिदे माजिद के साले का दामाद । और प्रकार की प्राय या सहायता के । केवल । मात्रा जैसे- ₹1-प्रेमघन. मा०२.५०८६। नौकर को खुश्क ४) मिलते हैं। खुसिया--संज्ञा पुं० [अ० सुसियह] अंडकोश ! फीता । विशेष-इस अर्थ में इसका प्रयोग केवल वेतन के लिये होता है। वारदी । बाटकार र सिनावरदाही .. खणसाली-संथा श्री० [फा० प्रकसाली] अनावृष्टि 1---मेंह . वरत अधिक यज्ञामद । चाहे जिस कदर बरसे काल न पड़ेगा और खुएफसीली हो तो दाना खुसी@- वि० [फा० खुश प्रसन्न । खुश । २०-जब तुम खुसी . वो काल कहीं लेने नहीं जाना है।-फिसाना०, भा०३.पृ०६१ । मरिनी . तब मैं सरति मिलायौ।-जग० वानी, पृ० ११. खुश्का-संशा पुं० [फा० खुश्कह.] केवल पानी में उबालकर पकाया " , खुसुरफुसुर-संमा श्री० [मन०] बहुत धीमी पायाज से कही हुई। हुया चावल 1 भाल। बात । चुपके चुपके की बातचीत । कानाफूसी । खुश्की-संशा स्त्री० फा० खुश्की] १ रूखापन। रुखाई । शुष्कता। क्रि० प्र०-करना -लगाना ।—होना । . नीरसता । .. क्रि० प्र०--प्राना- लाना। खुसुरफुसुर-क्रि० वि० बहुत धीमी आवाज से। अस्फुट स्वर से । .. २.स्थल वा भूमि । (बल का विरोधी) जैसे-खशकी के सायं साय । फुसफुस । रास्ते से जाने में दस दिन लगेंगे । ३. वह सूखा घाटा जो खसूमन-संशा स्त्री॰ [प० खस मत] १. पाता। चर । २.सड़ाई। गीले पाटे की लोई या पेड़े पर लगाया जाता है । पलेथन । ४. झगड़ा [फो०] । नकाल । अवर्षण । खुश्कसाली। खुसूस-संशा पुं० [अ० खुसूच] दे० 'खुसियत'। खुटिया--वि० [हिं० खुसट ४ इया] (प्रत्य॰) ] सुसट का अल्पा- खुसूसियत--संध्या ही [. खुमूसियत] १०१. विशेषता । खात वाता थंक । तुच्छ । उ०- डर से उवय करते तारे देखा तिमिर । २. प्रेमभाव । मेल [को०] । . का सिधु प्रथा । वह छोटी सी जान-खुसटिया, चौंक चीला हो खुसूसी-वि० [अ० खसूसी] विशेष । खास (को०- गई तबाह । --प्रवासी०, पृ०६०। खुस्याव- विफा खुशहाल हि खुसियाल] दे० 'शुमाल' उ०-- . खुसफुसाहट --संज्ञा स्त्री० [हिं० खुसफुस+प्राइट(प्रत्य॰)] दे॰ छुटन न पैयत छिनह बसि नेह नगर यह चाल । मारयो फिरि .. 'खुसुर फुसूर' । उ०-बाहर कुछ खुसफुसाहट और पैरों का फिरि मारिए खुनी फिरत. खुस्याल।-विहारो (शब्द॰) । . शब्द सुनाई पड़ा :--झांसो०, पृ०६२। खुहार-संहा मी [हिं०] २० 'शुहो। खुस्यान-वि० [ फायसि नेह नगर यह बालरी (०) 1