पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१७०

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ज्वरी २०१६ ज्वाल ज्व -सहा पुं० [हिं० जुर्रा ] दे॰ 'जुरी' । उ०-ज्वरी बाज ५-६ हाथ ऊँचा जाता है । डठल मे सात सात पाठ पाठ अगुल बोसे कुही बहरी लगर लोने, टोने जरफटी त्यों प्राधान पर गाँठ होती है जिनसे हाथ डेद हाय लवे तलवार के प्राकार सानवारे हैं ।-रघुराज ( शब्द०)। के पत्ते दोनो ओर निकलते हैं। इसके सिरे पर फल के जीरे ज्वलंत--वि० [सं० ज्वलन्त ] १ जलता हुमा । प्रकाशमान । दीप्त। पौर सफेद दानो के गुच्छे लगते हैं। ये दाने छोटे छोटे होते देदीप्यमान् । २. प्रकाशित । अत्यत स्पष्ट । जैसे, ज्वलत दृष्टात, हैं भोर गेहूँ की तरह खाने के काम मे पाते है। ज्वार कई ज्वलत प्रमाण । प्रकार की होती है जिनके पौधो में कोई विशेष भेद नही दिखाई पड़ता। ज्वार की फसल दो प्रकार की होती है, एक ज्वल-सज्ञा पुं० [सं०] १ ज्वाला 1 अग्नि । २ दीप्ति । प्रकाश । रवी, दूसरी खरीफ । मक्का भी इसी का एक भेद है। इसी से ज्वलका-सदा स्त्री० [स०] अग्निशिखा । धाग की लपट । लौर। कही कही मक्का भी ज्वार ही कहलता है। ज्वार को जोन्हरी, वक्षन-सज्ञा पुं० [सं०] १ जलने का कार्य या भाव। जलन । जुडी धादि भी कहते हैं। इसके इठल और पौधे को चारे दाह । उ०-(क) अधर रसन पर लाली मिसी मलूम । के काम में लाते हैं और चरी कहते हैं। इस अप्न के उत्पत्ति- मदन ज्वलन पर सोहति, मानह घूम ।-(शब्द०)। (ख) स्थान के सवध मे मतभेद है। कोई कोई इसे अरब मादि सुदसा ज्वानन सनेहवा कारन तोर। अजन सोइ उर प्रगटत पश्चिमी देषो से भाया हुप्रा मानते हैं और 'ज्वार' शब्द को लगि हग कोर 1-रहीम (शब्द०)। २. मरिन । प्राग । भरबी 'दूरा' से बना हुमा मानते हैं, पर यह मत ठीक नहीं ३ लपट । ज्वाला । ४ चित्रक वृक्ष । चौता । जान पडता । ज्वार की खेती भारत मे बहुत प्राचीन काल से ज्वलन-वि० १. प्रकाश करनेवास्ता । प्रकाशयुक्त । २ दाहक [को॰] । होती आई है। पर यह चारे के लिये बोई जाती थी, मन्न ज्वलनांत-सज्ञा पुं॰ [ स० ज्वलनान्त ] बौद्ध ग्रथों के अनुसार दस के लिये नहीं। हजार देवपुत्रो का नायक जिसने चौद्ध मठ में प्रवेश करते ही २ समुद्र के जल की तरग का चढ़ाव। लहर की उठान । भाटा वोधिज्ञान प्राप्त कर लिया था। का उलटा । ज्वलित-वि० [सं०] १ जला हुमा। दाघ । २ उज्वल । दीप्ति- विशेष-दे० 'ज्वारभाटा'। युक्त । चमकता या झजकता हुमा । ज्वारभाटा-मज्ञा पुं० [हिं० ज्वार+भाटा) समुद्र के जल का चढ़ाव लिनी-सक्षा स्त्री० [सं०] मूर्वा लता । मुरी। मरोडफली। उतार । लहर का बढना मोर घटना । लिनी सीमा-सचा क्षी० [सं०] दो गांवों के बीच की सीमा जो विशेष-समुद्र का जल प्रतिदिन दो बार चढता और दो बार ऊंचे पेड लगाकर बनाई गई हो। उतरता है। इस चढाव उतार का कारण चद्रमा और सूर्य विशेष--मनु ने लिखा है कि पीपल, वड, साल, ताड तथा ढाक का पाकर्षण है। चद्रमा के प्राकर्षण मे दूरत्व से वर्ग के के वृक्ष गाँव की सीमा पर लगाए । हिसाब से कमी होती है। पुथ्वी जल के उस भाग के अरगु ज्वाइनिज-सज्ञा स्त्री० [हिं० अजवाइन ] एक प्रकार का पौधा जो चन्द्रमा से निकट होगा, उस भाग के अणुयो फी अपेक्षा जिसके बीज भौषध मोर मसाले के काम मे पाते हैं। जो दूर होगा, अधिक पाकषित होगे। चद्रमा की अपेक्षा भजवाइन । उ०--विसूचित तन नहिं सके समारि । पीपल मल पृथ्वी से सूर्य की दूरी बहुत अधिक है, पर उसका पिंड चद्रमा ज्वाइनि सारि ।-प्राण०, पृ० १५० । से बहुत ही बड़ा है। प्रत सूर्य की ज्यार उत्पन्न करनेवाली यौ०--ज्वाइनिहारि-भजवाइन का सत्त । शक्ति चद्रमा से बहुत कम नहीं है के लगभग है। सूर्य की ज्वानी-वि० [फा० जवान ] दे० 'जवान' । यह शक्ति कभी कभी चद्रमा की शक्ति के प्रतिकूल होती है, पर प्रमावस्या और पूर्णिमा के दिन दोनो की शक्तियाँ ज्वानी-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा० जवानी ] दे० 'जवानी'। परस्पर मनुकूल कार्य करती है, अर्थात् जिस भश में एक ज्वाा -सक्षा पुं० [अ० जवाब ] दे॰ 'जवाब'। उ०—को रक्खै या ज्वार उत्पन्न करेगी, उसी अश मे दूसरीजी ज्वार उत्पन्न भुमि पर, रविष करे को ज्वाब । -ह. रासो, पु. ४८ । करेगी। इसी प्रकार जिस प्रश में एक भाटा उत्पन्न ज्वार-सहा स्त्री० [सं० यवनाल, यवाकार या जूर्ण ] १. एक प्रकार करेगी दूमरी भी उसी मे भाटा उत्पन्न करेगी। यही की घास जिसकी बाल के दाने मोटे मनाजों में गिने जाते हैं। कारण है कि प्रमावस्या भौर पूणिमा को और दिनो की विशेष-यह भनाज संसार के बहुत से भागो में होता है। अपेक्षा चार मधिक ऊंची उठनी है। सप्तमी मोर अपमी से भारत, चीन, परब, मफीका, अमेरिका मादि में इसकी दिन चद्रमा और सूर्य को माफर्षण शक्तियाँ प्रतिचल रूप से खेती होती है। ज्वार सूखे स्थानो मे अधिक होती है, सीड कार्य करती हैं, अतः इन दोनों तिथियो को ज्वार सबसे कम लिए हुए स्थानों में उतनी नही हो सकती। भारत मे राज- उठती है। पूताना, पजाव भादि में इसका व्यवहार बहुत अधिक होता ज्वारी@t-Hधा पुं० [हिं०] दे० 'जुपारी' । है। बगाल, मद्रास, बरमा मादि में ज्वार बहुत कम बोई ज्वाल'-सज्ञा पुं० सं०] १. पग्निशिखा । लो। लफ्ट । पाँच । जाती है। यदि बोई भी जाती है तो दाने प्रच्छे नहीं पडवे । उ.--चिंता ज्वाल शरीर बन दावा लगि लगि जाय।- इसका पौधा नरकट की तरह एक हठल के रूप में सीधा गिरिधर (पाब्द०) १२ मशाल (को०)।