पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/१७२

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मैखर माता दिवस धन रोय के हार परी चित भल ।-जायसी (शब्द॰) । (ख) व भी हो। उ.--मनो मसूमी मनभावन सो हसि सखी पाँच तत्व का बना पांजरा तामे मुनिया रहती । उडि मुनियाँ दामिनि को दूध रही रगा कि झमा सी।-देव (पा-द०)। डारी पर बैठे झखन लागे सारी दुनिया !-फबीर (शब्द०)। यौ०-मानित मामात् । भामामत ५० झंझावात' । मंखरा-सजा पुं० [देशी मखर ] शुष्क वृक्ष । उ०-थल भूरा बन २. तेज आंधी। अघः । ३ बी पी दो की वर्षा 1 ४ भाभ। झखरा नहीं सु चपउ जाइ। गुणे सुगंधी मारवी, महफी सहु ५ खोई हुई वस्तु । हिराई हुई चीज (को॰) । वराह ।-ढोला०, दु. ४६८ । ऊंझा--वि०प्रवडतीसाज! मंखाट-वि० [हिं० झखाड] दे॰ 'झखाड'। झझानिल-मचा मुं० [सं० ममानित ] १ : वायु । प्राधी। भखाड़-सज्ञा पुं० [हिं० 'झाड़' का मनु.] १ घनी पौर कांटेदार २. वह बांधी जिसके साथ वर्षा भी हो। माही का पौधा ।२ ऐसे कांटेदार पौधों या झाडियो का धना मंझार-वधा पु. [ सम्मान प्रापकी बह लपट जिसमें से फर समुह जिसके कारण भुमि या कोई स्थान ढफ जाय । उ०- अव्यक्त पद के साथ ना और चिनगारियाँ निकलें । उ.- ऊंचे झाड, कंटीले भखाडो ने वन मग छाया। -क्यासि, (क) मा शगिनि भार भनार, बुधार हार, उचटि प्रगार पृ० ७२ । ३. वह धृक्ष जिसके पत्ते झड गए हो। ४ व्यर्थ की भझार छायो ।-सूर०, १01 ५६६ | (R) लाल तिहार पौर रद्दी, विशेषत. काठ की चीजो का समूह । विरह की लागी प्रागन अपार। सरौँ वरखें नोहूँ' मिट न गरी- सझा श्री० [सं० कन्दरा या देश०] १ गुफा । कदरा। 30---- झार झझार ! -भारदेदु प्र., मा०२, पृ. ४६५ : मिले सिंघ गिर झगरी, सो एकलो सदीव । रच टोली मंझावात-60 पुं० [० झन्झावात ] १. प्रचड वायु। माघी। फिरता रहै, जठ तह बन जीव । --बाकी ०, पृ. २७ । २. वह मधिी जि.साय पानी भी बरसे। २ धनी झाडी। मझो-सपा स्त्री० [२०] १. स्टी कोलो। २. दलालीमा धन । मजार@t-सक्षा पुं० [हिं० जंजाल ] जजाल । मायाजाल । दुख । झभी। (सालो की बोली)। उ.-इनके चरन सरन जे पाए मिटे सकल झजार । छोत ममेरना-क्रि० स० [हिं० भकझोरना ] ६० झोडना' । स्वामो गिरिधरन श्री विठ्ठल सकल वेद को सार । -~-छीत०, . छात, झमोटी, मझोटी-सहा जोडि ] ए राग । दे० 'झिझोटी'। पृ०१४। उ-तीसरे ने कहा पाह कोटी है। -यीनिवास ग्र०, मंझकारल-ससा पुं० [सं० झवार ] झकार । झन् झन् फी मधुर पृ०२०४॥ ध्वनि । उ०-निगम चारि उतपति भयो चतुरानन मुख वैन । झझोरना-क्रि० स० [हिं० कामोरना] १. 'नोडना। 30- उचरेउ शब्द मनाइदा झझकार मद ऐन। -सत. दरिया, विषम वाय जिम लता मोरि मारुत ककोरे। (के) चित्र पु० ४०1 लिखी पुत्तरी जोरि जारत निहारे। -पृ. रा०, २१३४८ । मंकी-सक्षा पुं० [ झन् झन् से अनु० ] दे॰ 'झोझ' उ-काज मंटो-सौ . [ देशी] छोटे पौर उठे हुए बाल । मोटा। वीणा मुरली पटह चग मृदग उपग। झालरि अझ बजाई के। झट-सपा पुं० [सं० जट, या देशी ] १ छोटे चालको के नहन गावहि तिनके सग।-(शब्द०)। पहले के केश।२ करील । मझ -वि० [ देश ] खाली । रीता । शुष्क । रहित । झडा-सा •[सं० जयन्ता या देश०] १. तिकोने या चौकोर कपडे का मझट---सचा त्री० [मनु०] १ व्यर्थ का झगडा । टटा । बखेडा ।२ टुकहा जिसका एक सिरा लकयो मादि के डडे में लगा रहता है प्रपच । परेशानी। कठिनाई। मौर जिसका व्यवहार चिल प्रट करने, सकेत करने, उत्सव क्रि०प्र०-उठाना ।-में पड़ना। -मे फंसना । प्रादि सूचित करने अथवा इसी प्रकार के अन्य कामो के लिये मंझटिया, झझटिहा-वि० [हिं० झझठ ] दे० 'झझटी' । होता है। प्लाफा । निशान । फरहर की। मुहा०-डे तले की दोस्ती = बहुत ही साधारण या राह चलते झंझटो-वि० [हिं० झझट] १. झझट करनेवाला । २ झझट से की जान पहचान । झडे पर पढ़ना % वदनाम होना । भरा हमा (काम)। अपने सिर बहुत बदनामी लेगा। झडे पर चढ़ाना=बहुत मन- समसा पु० [सं० मञ्झन] माभूषण की झकार । झन झन की बदनाम करना। मधुर ध्वनि (को० । २ ज्वार, बाजरे भादि पौधो के ऊपर का नर फूल । जीरा । झझनाना'-क्रि० स० [सं० झन्झन ] झन झन का पान्द करना। झंडा कप्तान-पदा पुं० [हि. झा+० कैप्टेन ] १ उस जहाज झकार करना । झकारना। का प्रधान जिसपर प्रनीहात्मय ध्वजा रहती है (नौसैनिक)। मंझनाना'-क्रि० प्र० १ झकार होना । १२ कोई बात इस ढग से २. वह व्यक्ति जिसपर संम्पा के प्रतीकात्मक ध्वज की कहना जिसमें सीझ मोर झल्लाहट भरी हो । मल्लाना । जिम्मेदारी हो। मंझारसका पुं० [सं० झञ्झर ] दे॰ 'झज्झर'। महा जहाज -सया पु. [ हि. झडा+० जहाज़ ] बेडे का प्रधान ममर-सम्मा सी० [हि भैझरी] दे॰ 'झंझरौं'। जहाज जिसपर वेडे का नाम रहता है। मंगा-सशा श्री. [सं० झम्झा] १. वह तेज प्राधी जिसके साप मना दिवस--स [हिं० भना+सं० दिवस ] वह दिन जर