पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१०४

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बल बलदंड बल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) शक्ति । सामर्थ्य । ताकत । ज़ोर । मुहा०-बल खाना-घाटा सहना । हानि सहना । खर्च करना । जैसे,—बिना कुछ बल खाए यहाँ काम न होगा। बल पदना- पर्या०-पराकम । शक्ति । शौर्य। वीर्य । (१) अंतर होना । फर्क रहना । (२) कर्मा वा घाटा होना। मुहा०-बल भरना=बल दिखाना । जोर दिखाना । जोर करना । : (6) अधपके जौ की बाल। बल को लेना-इतराना । घमड करना । बलकंद-संज्ञा पुं० [सं०] मालाकंद। (२) भार उठाने की शक्ति । सँभार । सह । (३) आश्रय । बलकना-क्रि० अ० [ अनु० ] (1) उबलना। उफान खाना । सहारा । जैसे, हाथ के बल, सिर के बल इत्यादि । (४) । खौलना । (२) उमड़ना। उममना। उमंग या आवेश आसरा । भरोसा । बिर्ता । उ०-(क) जो अंतहु अस में होना । जोश में होना। उ०—(क) प्रेम प्रिये दर करतष रहेऊ । मांगु माँगु तुम्ह केहि बल कहेऊ।-सुलसी । बारुणी बलकत बल न सँभार । पग उगमग जित तित (ख) कत सिख देइ हमहि कोउ माई । गालु करब केहि धरति मुकुलित अलक लिलार । -सूर। (ख) राज कर बल पाई।-तुलसी । (५) सेना । फौज । (६) बल काज कुपथ कुमाज भोग रोग को है वेद बुधि विद्या बाय देव । बलराम । (७) एक राक्षस का नाम । (८) वरुण विवस बलकही।-तुलसी । (ग) हँसि सि हेरति नवल नामक वृक्ष । (२) पार्श्व । पहलू। जैसे, दहने बल, तिय मद के मद उमदाति । बलकि बलाक बोलति बचन बायबल। ललकि ललकि लपटाति ।-विहारी। संज्ञा पुं० [सं० बलि-झुरी, मरोड, वा वलय ] (1) ऐंठन । बलकर-वि० [सं०] [स्त्री० बलकरी] बलकारक । बलजनक । मरोद । वह चक्कर या घुमाव जो किसी लचीली या नरम संज्ञा पुं० हड्डी। वस्तु को बटने या खुमाने से बीच बीच में पड़ जाय । पेच। धलकल*1-संशा पुं० दे० "बल्कल"। क्रि० प्र०-पड़ना ।-होना। बलकाना-क्रि० स० [हिं० बलकना] (1) उबालना । खोलना । मुहा०-बल खाना-ऐंठ जाना । पेच खाना । वटने या घुमाने से (२) उभारना । उमगाना । उत्तेजित करना । उ०-जोबन घुमावदार हो जाना । बल देना-(१) ऐंठना । मरोड़ना । ज्वर केहि नहिं बलकावा । ममता केहि कर जसु न (२) बटना। नसावा ।—तुलसी। (२) फेरा । लपेट । जैसे,—कई बल बाँधोगे तब यह न बलकुआ-संज्ञा पुं॰ [देश० ] एक प्रकार का बाँस जो चालीस छूटेगा । (३) लहरदार घुमाव । गोलापन लिए यह टेढ़ापन पचास हाथ लंबा और दस बारह अंगुल मोटा होता है। जो कुछ दूर तक चला गया हो। पेच । इसकी गाँठे लंबी होती हैं जिनपर गोल छल्ला पहा क्रि० प्र०—पमना। रहता है। यह बहुत मज़बूत होता है और पाइट बाँधने के मुहा०--बल खाना-घुमाव के साथ टेढ़ा होना । कुंचित होना।। काम के लिये बहुत अच्छा होता है । इसे भलुआ, बड़ा उ.--कंधे पर सुन्दरता के साथ बनाई गई काल साँपनी बाँय, खिल बरा आदि भी कहते हैं। यह पूर्वीय भारत ऐसी बल खाती हिलती मन मोहनेवाली चोटी थी। में होता है। अयोध्यासिंह। बलगम-संज्ञा पुं० [अ० ] [वि. बलगमी ] श्लेषमा । कफ । (५) टेढ़ापन । कज । खम । जैसे,—इस छड़ी में जो बल बलगर-वि० [हिं० बल+गर ] (१) बलवान । (२) हद । है वह हम निकाल देंगे। मज़वत । मुहा०—बल निकालना टेढ़ापन दूर करना । बलचक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) राज्य । साम्राज्य। (२) (५) सुकड़न । शिकन । गुलझट । राज्यशासन। क्रि० प्र०—पड़ना। बलज-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० बल जा ] (१) अन्न की राशि । (६) लचक । झुकाव । सीधा न रहकर बीच से झुकने (२) शम्य । फसल । (३) नगर का द्वार । (४) द्वार । की मुद्रा। (५) खेत । (६) युद्ध । मुहा०-बल खाना-लचकना । झुकना । उ०—(क) पतली | बलजा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) पृथिवी । (२) एक प्रकार की कमर बल खाति जाति । (गीत) । (ख) बल खात दिग्गज ' जुही । (३) रस्सी । कोल कूरम शेष सिर हालति मही।-विश्राम । | बलदंड-संशा पुं० [सं० ] कसरत करने के लिये लकड़ी का बना (७) कज । कसर । कमी। अंतर। फर्क । जसे,—(क) हुआ एक ढाँचा जिसमें एक काठ के दोनों ओर कमान की पांच रुपये का बल पड़ता है नहीं तो इतने में मैं आपके तरह तिरछी लकड़ियाँ लगी होती हैं। इसे गट ठेउ हाय बेच देता । (ख) इसमें उसमें बहुत बल है। भी कहते हैं। ६००