पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१०६

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२३९९ बलाय मंत्र या विद्या का नाम जिससे युद्ध के समय योद्धा को | वि० [सं०] बलवान् । भूख और प्यास नहीं लगती। (४) नाट्यशास्त्र के अनुसार बलात्-क्रि० वि० [सं०] (१) बलपूर्वक । जबरदस्ती से । बल नाटकों में छोटी बहिन का संगेधन । (५) दक्ष से। (२) हठात् । हठ से। प्रजापति की एक कन्या का नाम । (६) पृथिवी। (७) बलात्कार-संज्ञा पुं० [सं०] (1) किसीकी इच्छा के विरुद्ध लक्ष्मी । (4) जैनियों के ग्रंथानुसार एक देवी जो वर्तमान बलपूर्वक कोई काम करना । ज़बरदस्ती कोई काम करना । अवसपिणी में सत्रहवें भहत के उपदेशों का प्रचार करती (२) अत्याचार । अन्याय । (३) किसी स्त्री के साथ उसकी है। (९) दे. "वला"। इच्छा के विरुद्ध संभोग करना। संज्ञा स्त्री० [अ० ] (1) आपत्ति । विपत्ति। आफ़त । | बलात्काराभिगम-संज्ञा पुं० [सं० ] बलात् किसी स्त्री के सतीत्व ग़ज़ब । (२) दुःख । कष्ट । (३) भूत । प्रेत । भूत प्रेत | का नाश करना। जिनाविषजन। की बाधा । (४) रोग । व्याधि । जैसे,—इस बच्चे की सब बलात्कारित-वि० [सं०] जिससे बलात्कार से कुछ कराया बला तू लेजा। जाय । जिसपर बलात्कार करके कोई काम कराया जाय। मुहा०-बला का गजब का। घोर । अत्यंत । बहुत बढ़ा | बलात्कृत-वि० [सं०] जिसके साथ बलात्कार किया गया हो। चढ़ा । जैसे,-बला का बोलनेवाला है। (किसी की) बलात्मिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] हाथीपनाम का पौधा । बला ऐसा करे या करती है-ऐसा नहीं करता है या करेगा। बलाध्यक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] सेनापति । जैसे,—(क) मेरी बला जाय अर्थात् मैं नहीं जाऊँगा (ख) बलापंचक-संज्ञा पुं० [सं० ] सला, अतिबला, नागबला, महा- उसकी बला दूकान पर बैठे अर्थात् वह दुकान पर नहीं बला और राजबला नाम की पाँच ओषधियों के समुदाय बैठता या बैठेगा। (ग) एक बार वह वहाँ हो आया का नाम । विशेष-दे० "बला"। फिर उसकी बला जाती है अर्थात् फिर वह नहीं गया। | बलामोटा-संशा स्त्री० [सं०] नागदमनी नाम की ओषधि । बला पीछे लगना=(१) तंग करनेवाले आदमी का बलाय-संज्ञा पुं० [सं० ] बरुना नामक वृक्ष । अन्ना । बलास । साथ में होना । (२) बखेड़ा साथ होना। किसी ऐसी बात संज्ञा पुं० [अ० बला ] (1) आपत्ति। विपति। बला । से संबंध या लगाव हो जाना जिससे तंग होना पड़े। झंझट उ.-लालन, तेरे मुख रही वारी । बाल गोपाल लगो या आफ़त का सामना होना । बला पीछे लगाना=(१) इन नैननि रोगु बलाय तुम्हारी ।—सूर । (२) दुःख । कष्ट । बखेडा साथ करना । तंग करनेवाला आदमी साथ में करना । उ..-(क) हरि को मीत पछीत इमि गायो विरह षलाय । (२) झंझट में डालना । बखेड़े में फँसाना । बला से कुछ परत कान तजि मान तिय मिली कान्ह सों जाय।-पना- परवा नहीं। कुछ चिंता नहीं । कर । (ख) तर झुरती उपर गरी कजल जल छिरकाय । बलाइ*-संज्ञा स्त्री० दे० "बलाय"। पिय पाती विनही लिखी बाँची विरह बलाय।-बिहारी। खलाक-संज्ञा पुं० [सं०] (३) बक । बगला । (२) एक राजा (३) भूत प्रेत की बाधा । (४) दु:खदायक रग जो पीछा का नाम जो भागवत के अनुसार पुरु का पुत्र और जहनु न छोड़े। व्याधि । उ०–अलि इन लोचन को कहूँ उपजी का पौत्र था। (३) जातुकर्ण मुनि के एक शिष्य का नाम । बनी बलाय। नीर भरे नित प्रति हैं तऊन प्यास बुझाय। (४) एक राक्षस का नाम । (५) शाकपूणि ऋषि के एक -बिहारी । (५) पीछा न छोड़नेवाला शत्रु । अत्यंस दुःख- शिष्य का नाम । दायी मनुष्य । बहुत तंग करनेवाला आदमी । उ.- बलाका-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) षगली। (२) कामुकी स्त्री। (३) बापुरो बिभीषन पुकारि बार बार कही बानर बड़ी बलाय बगलों की पंक्ति । (५) गति के अनुसार नृत्य का एक भेद। बने घर घालिह ।-तुलसी। बलाकाश्व-संज्ञा पुं० [सं०] (1) हरिवंश के अनुसार एक राजा मुहा०-बलाय ऐसा करे या करती है ऐसा नहीं करता है या का नाम जो अजक का पुत्र था। (२) जहनु के वंश करेगा। दे. "ला"। उ०—(क) तौ अनेक अवगुन भरी का एक राजा। चाहै याहि दलाय । जौ पति संपति ह बिना अनुपति राखे बलाकी-संशर पुं० [सं० वलाकिन् ] धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । जाय।-विहारी। (ख) जग मृगनैनी के सदा बेनी परसत बलान-संज्ञा पुं० [सं० ] (१) सेनापति । (२) सेना का अगला पाय । ताहि देखि मन तीरथनि विकटनि जाय बलाय । भाग। -~-बिहारी । (ग) उठि चली जो न मान काहू की बलाय वि०-बलशाली । बली। जाने मान सों जो पहिचान ताके आइयतु है। केशव । बलाठ-संज्ञा पुं० [सं०बलाट } मूंग। बलाय लेना-( अर्थात् किसाका रोग दुःख अपने ऊपर लेना) पलान्य-संज्ञा पुं० [सं०] माप । उहद । उपद। मंगल कामना करते हुए प्यार करना ।