पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१०८

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बलिदान २४०१ बलूचिस्तान बिनु सिद्ध सिन्दू सत्र । ले करों अदिति की दासि दिति लेना बलैया लेना । प्रेम दिखाना । उ.---पहुँची जाय अनिल अनल मिलि जाहि जल । सुनु सूरज सूरज उगत ही महरि मंदिर में करत कुलाहल भारी । दरसन करि जसु- करौं असुर संहार सब । केशव । मति-सुत को सब लेन लगीं बलिहारी।-सूर । बलिहारी वि० दे० "वलित"। है ! मैं इतना मोहित या प्रसन्न हूँ कि अपने को निछावर बलिदान-संज्ञा पुं० [सं०] (१) देवता के उद्देश्य से नैवेद्यादि करता हू। क्या कहना है ? (सुंदर रूप, शोभा, शील खभाव पूजा की सामग्री चढ़ाना । (२) बकरे आदि पशु देवता आदि को देख प्रायः यह वाक्य बोलते है । किसी की बुराई, के उद्देश्य से मारना। बेढंगेपन या विलक्षणता को देखकर व्यंग्य के रूप में भी इसका क्रि० प्र०—करना ।—होना । प्रयोग बहुत होता है।) बलिनंदन-संज्ञा पुं० [सं०] वाणासुर। बलिहत-वि० [सं०] (1) बलि लानेवाला । भेंट लानेवाला। बलिपशु-संशा पुं० [हिं० बलि+पशु ] वह पशु जो किसी देवता | (२) करप्रद । कर देनेवाला । के उद्देश्य से मारा जाय। उ०-लखइन रानि निकट दुख - संज्ञा पुं० राजा। कैसे । चरह हरित तृन बलिपशु जैसे। तुलसी। बली-वि० [सं० बलिन् ] बलवान् । बलवाला । पराक्रमी । बलिपुष्ट-संज्ञा पुं० [सं०] कौवा । संज्ञा स्त्री० [सं० वलि, वली ] (1) चमड़े पर की झुर्रा । बलिपोदकी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] बड़ी पोय । (२) वह रेखा जो चमड़े के मुड़ने या सुकड़ने से पड़ती है। बलिप्रदान-संशा पुं० [सं० । बलिदान । बलिप्रिय-संशा पु० [सं०] (1) लोध का पेस । (२) कौवा। बलीन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) बिच्छू । (२) एक असुर का नाम । बलिवर्द-संज्ञा पुं० [सं०] (1) साँड़ । (२) बैल । वि० दे. "बली"। बलिभुक, वलिभुज-संज्ञा पुं० [सं०] कौवा। | बलीना-संज्ञा स्त्री० [ यू० फैलना ] एक प्रकार की ह्वेल मछली । बलिभृत-वि० [सं०] (1) करद । कर देनेवाला । (२) अधीन। बलीबैठक-संशा स्त्री० [हिं० बली+बैठक ] एक प्रकार की बैठक बलिभोज, बलिभोजी-संज्ञा पुं० [सं०] कौवा । जिसमें जंघे पर भार देकर उठना बैठना पड़ता है। इससे बलिवैश्वदेव-संशा पुं० [सं०] भूतयज्ञ नामक पाँच महायज्ञों जाँघ शीघ्र भरती है। में चौथा महायज्ञ । इसमें गृहस्थ पाकशाला में पके अनबलीमुख*-संज्ञा पुं० [सं० वलिमुग्ब ] अंदर । उ०-चली से एक एक ग्रास लेकर मंत्रपूर्वक घर के भिन्न भिन्न स्थानों। बलीमुख-सेन पराई । अति भय असित न कोउ समुहाई। में मुसल आदि पर तथा काकादि प्राणियों के लिये भूमि पर -तुलसी। रखता है। बला -वि० [हिं० बालू ] [ स्त्री० बलई ] रेतीला । जिसमें बालू बलिश-संज्ञा पुं० [सं०] बंसी । कटिया। अधिक मिला हो। जैसे, अलुआ खेत, बलुई मिट्टी । बलिष्ठ-वि० [सं० ] अधिक बलबान । संज्ञा पुं० बह मिट्टी या ज़मीन जिसमें बालू का अंश संज्ञा पुं० ऊँट। अधिक हो। बलिष्णु-वि० [सं०] अपमानित । बलूच-संज्ञा पुं० एक जाति जिसके नाम पर देश का नाम पड़ा । बलिहारना-क्रि० स० [हिं० बलि+हारना ] निछावर कर विशेष—यह जाति का बलूचिस्तान में आकर बसी इसका देना । कुर्थान कर देना। चढ़ा देना। उ०—विश्वनिकाई ठीक पता नहीं है । बलूचिस्तान में हुई और बलूची दो विधि ने उसमें की एकत्र बटोर । बलिहारौं त्रिभुवन धन ! जातियाँ निवास करती हैं। इनमें से बहुई जाति अधिक उसपर वारौं काम करोर ।-श्रीधर । उन्नत और सभ्य है और उसका अधिकार भी बलूचों से बलिहारी-संशा स्त्री० [हिं० बलि+हारना ] निछावर । कुरबान । पुराना है। बलूच पीछे आए । बलूचों में ऐसा प्रवाद है प्रेम, भक्ति, श्रद्धा आदि के कारण अपने को उत्सर्ग कर कि उनके पूर्वज अलियो नगर से अरबों को चढ़ाई के साथ देना । उ०—(क) सुख के माथे सिल पर हरि हिरदा आए । अरबों की चढ़ाई बलूचिस्तान पर ईसा की आठवीं सों जाय । बलिहारी वा दुःख की पल पल राम कहाय ।- शताब्दी में हुई थी। बलूच सुम्नी शाखा के मुसलमान हैं। कबीर । (ख) बलिहारी अब क्यों कियो सैन साँवरे संग। बलूचिस्तान-संज्ञा पुं० [फा० } एक राज्य जो हिंदुस्तान के नहि कहुँ गोरे अंग ये भये झाँवरे रंग।-श्रृंगार सत। पश्चिमोत्तर कोण में है। इसके उत्तर में अफगानिस्तान, पूर्व महा०-बलिहारी जाना-निछावर होना । कुरबान जाना । में भारतवर्ष का सिंधु प्रदेश, दक्षिण में अरब का समुद्र और बलैया लना । उ.--दाद उस गुरु देव की मैं बलिहारी पश्चिम में फारस है। जाउँ । आसन अमर अलेख था लै राखे उस ठाउँ। बलिहारी। विशेष-हुई और बलूची इस देश के प्रधान निवासी हैं।