पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/११४

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हिकाना २४०७ बहना न रहना । रस या मद में चूर होना । जोश या आवेश में होना । उ.-जब ते ऋतुराज समाज रच्यो तब तें अवली अलि की बहकी । सरसाय के सोर रसाल की हारन कोकिल कूकै फिर बहकी।-रसिया । मुहा०-बहक कर बोलना--(१) मद में चूर होकर बोलना । (२) जोश में आकर बढ़ बढ़ कर बोलना । अभिमान आदि से भरकर परिणाम या औचित्य आदि का विचार न करना। जैसे,—आज बहुत बहक कर बोल रहे हो, उस दिन कुछ। करते धरते नहीं बना । बहकी बहकी बातें करना=(१) मदोन्मत्त की सी बातें करना । (२) बहुत बढ़ा चदी बातें करना। हिकाना-क्रि० स० [हिं० बहकना ] (1) ठीक रास्ते से दूसरी ओर ले जाना या फेरना । रास्ता भुलवाना। भटकाना । संयोक्रि०-देना। (२) ठीक लक्ष्य या स्थान से दूसरी ओर कर देना । लक्ष्यभ्रष्ट करना । जैसे, लिखने में हाथ बहका देना । (३) भुलावा देना । भरमाना । यातों मे फुसलाना । कोई अयुक्त कार्य कराने के लिये बातों का प्रभाव डालना । जैसे,—उसने यहका कर उससे यह काम कराया है। उ.-नई रीति इन अबै चलाई। काहु इन्हें दियो । बहकाई ।-सूर । (४) ( बातों से ) शांत करना । बहलाना (बक्षों को)। हतोल* -संज्ञा स्त्री० [हिं० बहता+ल (प्रत्य॰)] जल बहाने की नाली। बरहा । उ०-ग्रीषम निदाघ समै बैठे अनु- राग भरे बाग में यह ति बहताल है रहँट की। लाल । हत्तर-वि० [सं० द्विसप्तत्ति, प्रा. बहतरि ] सत्तर और दो। सत्तर से दो अधिक। संज्ञा पुं० सत्तर से दो अधिक की संख्या और अंक जो हम प्रकार लिखा जाता है-७२। हत्तरवा-वि० [हिं० बहत्तर+वॉ (प्रत्य॰)] [स्त्र बहत्तरवीं ] ! जिसका स्थान बहत्तर पर पड़े। जो क्रम में इकहत्तर वस्तुओं के पीछे पड़े। हदुरा-संशा पुं० [देश॰] एक कीड़ा जो धान वा चने में लग कर उसके पत्ते काट कर गिरा देता है। हन-संशा स्त्री० दे० "बहिन"। हना-कि० अ० [ सं० वहन ] (1) द्रय पदार्थों का निम्नतल की ओर आप से आप गमन करना । पानी या पानी के रूप की वस्तुओं का किसी ओर चलना । प्रवाहित होना । उ.-हिमगिरि गुहा एक अति पावनि । बहू समीप सुर- सी सुहावनि ।-तुलसी। संयो० क्रि०-जाना। मुहा०-बहती गंगा में हाथ धोना=किसी ऐसी बात से लाभ उठाना जिससे सब लाभ उठा रहे हो । बहती नदी में पांव पखारना-दे. "बहती गंगा में हाथ धोना । बह चलना पानी की तरह पतला हो जाना । जैसे, दाल या तर- कारी का। (२) पानी की धारा में पड़कर जाना । प्रवाह में पड़कर गमन करना । जैसे, बाद में गाय, बैल, छप्पर आदि का बह जाना । (३) त्रवित होना । लगातार बॅद या धार के रूप में निकल कर चलना। (जो निकले और जिसमें से निकले दोनों के लिये )। जैसे, मटके का धी बहना, शरीर से रक्त बहना, फोड़ा बहना । (४) वायु का संचरित होना । हवा का चलना । जैसे, हवा बहना । उ.-(क) गुंज मंजुतर मधुकर श्रेनी। विविध बयारि यहा सुखदेनी । -तुलसी । (ख) चाँदनी के भारन दिखास उनयो सो चंद गंध ही के भारन बहत मंद मंद पौन । --द्विजदेव । (५) कहीं चला जाना। इधर उधर हो जाना । हट जाना । दूर होना । जैसे,—(क) मंडली टूटते ही सब इधर उधर बह गए । (ख) कवृतरों का इधर उधर बह जाना । ( कबूतरबाज़)। उ.-सुक सनकादि सकल मन मोहे, यानिन ध्यान बहो।-सूर । (६) ठीक लक्ष्य या स्थान से सरक जाना । हट जाना । फिसल जाना । जैसे, टोपी के गोट का नीचे बह आना । धोती का कमर के नीचे बह जाना। (७) विना ठिकाने का होकर घूमना । मारा मारा फिरना । जैसे,—न जाने कहाँ का बहा हुआ आया यहाँ ठिकाना लग गया।14) सन्मार्ग से दूर हो जाना । कुमार्गी होना । आवारा होना । चौपट होना । बिगड़ना । चरित्रभ्रष्ट होना । जैसे,—लुच्चों के साथ में पर कर वह बह गया। उ०-मातु पितु गुरु जननि जान्यो भली खोई महति । सूर प्रभु को ध्यान चित धरि अतिहि काहे बहति । -सूर । (९) गया बीता होना । अधम या बुरा होना । जैसे,—वह ऐसा नहीं बह गया है कि तुम्हारा पैसा छूएगा। (१०) गर्भपात होना। अड़ाना । (चौपायों के लिये)।(११) बहुतायत से मिलना । सस्ता मिलना। संयो० क्रि०-चलना। (१२) (रुपया आदि ) डूब जाना । नष्ट जाना । व्यर्थ खर्च हो जाना। (१३) कनकौवे की डोर का ढीला पड़ना। पतंग का पेटा छोबना । (१४) जल्दी जल्दी अंडे देना। महा-बहता हुआ जोड़ा-बहुत अंडे देनेवाला जोड़ा (कबूतर) । (१५) लाद कर ले चलना। ऊपर रख कर ले चलना । बहन करना । उ०-जन्म याहि रूप गयो पाप बहत ।- सूर । (१५) खींच कर ले चलना (गाड़ी आदि) । उ.-- अस कहि चढ़ यो ब्रझरय माही। श्वेत तुरंग बहे रथ काहीं।