पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/११६

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२४०९ बहाली बहल्ला*-संज्ञा पुं० [हिं० बहलना । फा. बहाल] आनंद। प्रमोद । बात कहना। मिस । हीला । जैसे, काम के वक्त तुम उ-चला चला छायो रय है गयौ बहल्ला हमै लल्ला घीमारी का बहाना करके बैठ जाते हो। देत ईस आज अवधभुवार को ।----रघुराज । क्रि० प्र०-फरना। बहल्ली-संज्ञा पुं॰ [ ? ] कुश्ती का एक पेंच । (२) उक्त उद्देश्य से कही हुई झूल बात । वह यात जिसकी बहस-संशा स्त्री० [अ०] (1) बाद । दलील । तर्क। खंडन । ओट में अस्सल बात छिपाई जाय । मंडन की युक्ति। किसी विषय को सिद्ध करने के लिये क्रि० प्र०-ढूंढना। उत्तर प्रत्युत्तर के साथ बात चीत । (३) निमित्त । कहने सुनने के लिये एक कारण । प्रसंग। क्रि० प्र०—करना। योग । जैसे,—(क) होले रोजी, बहाने मौत । (ख) (२) विवाद । झगड़ा । हुज्जत । (२) हो। बाज़ी । चलो, इसी बहाने हम भी बंबई देग्य आएँगे। बदायदी। उ०--मोहि तुम्हें यादी बहस को जीते जदु- बहार-संज्ञा स्त्री० [फा०] (1) बसंत ऋतु । फूलों के विरूने राज । अपने अपने विरद की दुहूँ निबाहत लाज - का मौसिम । उ.-जिन दिन देखे वे कुसुम गई सो बीति विहारी। वहार ।-बिहारी । (२) मौज । आनंद। बहसना*-क्रि० अ० [अ० बहस+ना] (१) बहस करना । विवाद ! क्रि० प्र०—आना।-उड़ना ।—सूटना ।—होना । करना। तर्क वितर्क करना । (२) होड़ लगाना । शर्त (३) यौवन का विकास । जवानी का रंग। (४) शोभा। बाँधना । यहसि करत बहु हेतु जहँ एक काज की सौंदर्य । रमणीयता । सुहावनापन । रौनक । जैसे,—(क) सिद्धि । इहो समुच्चय कहत है जिनकी है मति रिद्धि । उसके सिर पर कलँगी क्या बहार देती है। (ग्व) यहाँ मतिराम । बड़ी बहार है। वहाउ/-संशा पुं० दे. “यहाव"। क्रि० प्र०-देना। बहादुर-वि० [फा०] (1) उत्साही । साहसी । (२) शूरवीर।। (५) विकास । प्रफुलता। पराक्रमी। मुहा०-बहार पर आना-विकसित होना। पूर्ण शोभासंपन्न बहादुरी-संशा स्त्री० [फा०] वीरता । शूरता।। बहाना-क्रि० स० [ हि० बहना ] (1) द्रव पदार्थों को निम्नतल ... (६) मज़ा । तमाशा । कौतुक । जैसे,—ज़रा उस बेवक्फ की ओर छोड़ना या गमन कराना । पानी या पानी सी को वहाँ ले चलो, देवो क्या बहार आती है। पतली चीज़ों को किसी ओर ले जाना । प्रवाहित करना। क्रि० प्र०-आना। जैसे, खून की नदी बहाना। (७) नारंगी का फूल । (८) एक रागिनी । संयोकि०-देना। बहारगुर्जरी-संज्ञा स्त्री० [फा० बहार+सं० मुरी ] संपूर्ण जाति (२) पानी की धारा में डालना। श्रहती हुई चीज़ में : की एक रागिनी जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं। इस प्रकार डालना कि बहाव के साथ चले। प्रवाह के बहारनशान-संशा पुं० [फा०] मुकाम राग का पुत्र । एक राग। साथ छोड़ना । जैसे, नदी में तख्ते या लट्ठ बहाना । बहारना -क्रि० स० दे. "बुहारना"। (३) लगातार बूंद या धार के रूप में छोड़ना या निका- : बहारी-संशा स्त्री० दे० "बुहारी"। लना । ढालना । गेरना । लुढ़ाना । जैसे,-घड़े का पानी बहाल-वि० [फा०] (1) जहाँ जैसा था वहाँ वैसा ही। पूर्व- क्यों व्यर्थ बहा रहे हो? वत् स्थित । ज्यों का त्यों जैसे,—अदालत का फैसला मुहा०-फोदा बहाना-फोड़े में इस प्रकार छेद कर देना जिससे बहाल रहा। उसमें का मवाद निकल जाय । जैसे,—यह दवा फोदे को क्रि० प्र०—करना ।-होना। बहा देगी। - मुहा०-नौकरी पर बहाल करना- जिस जगह पर नौकर (५) वायु संचालित करना। हवा चलाना। (५) व्यर्थ था उसी जगह पर फिर मुकरर करना। व्यय करना। खोना । गँवाना । जैसे,—उसने लाखों (२) भला चंगा । स्वस्थ । (३) प्रसन्न । जैसे, तबीयत रुपये बहा दिए। (६) फेंकना। दालना। पकड़े या बहाल करना। लिए न रहना। (७) सस्ता बेचना । कौड़ियों के मोल ! बहाली-संज्ञा स्त्री० [फा० ] पुनर्नियुक्ति। फिर उसी जगह पर दे देना। मुकर्ररी। संशा पुं० [फा० बहानः ] (1) किसी बात से बचने या संशा स्त्री० [हिं० बहलाना ] झाँसा पट्टी। धोखा देने- कोई मतलब निकालने के लिये अपने संबंध में कोई झूठ । वाली बात। ६०३