पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बहीरा २४११ बहुदर्शी 3०-ऐसे रघुबीर छीर-नीर के विवेक कवि भीर की बहीर यथेष्ट । बस । काफ़ी । जैसे,—अब मत दो, इतना बहुत है। को समय के निकारिहों । हनुमान । (३) सेना की मुहा०-महुत अच्छा=(१) स्वीकृतिसूचक वाक्य । एवमस्तु । सामग्री। फ़ौज का सामान । उ०---हुकुम पाय कुतवाल ऐमा ही होगा । (२) धमकी का वाक्य । खैर, ऐसी करो, ने दई बहीर लदाय ।--सूदन । हम देख लेंगे। कोई परवा नहीं। बहुत करके=(१) अधिकतर ।

  • अव्य० [सं० बाइस ] बाहर । उ०-कोऊ जाय द्वार ज्यादातर। बहुधा । प्रायः। अक्सर । अधिक अवसरों पर ।

ताहि देत हैं अढ़ाई सेर । बेर जनि लाओ चले जाव यों जैसे,-बहुत करके वह शाम ही को आता है । (२) अधिक बहीर के।-प्रियादास । संभव है। बीस बिस्ने । जैसे,—बहुत करके तो वह वहाँ पहुँच वहींग-संज्ञा पुं० दे० "बहेदा"। गया होगा, न पहुँचा हो तो भेज देना । बहुत कुछ कम बहु-वि० [सं०] (1) बहुत । एक से अधिक । अनेक । (२) नहीं । गिनती करने योग्य । जैसे,—अभी उनके पास बहुत ज़्यादा । अधिक। कुछ धन है। बहुत खूब !-१) वाह। क्या कहना है ! संज्ञा स्त्री० दे० "बहू"। उ०ी जनवासहि राउ, सुत, . (किसी अनोखी बात पर)। (२) बहुत अच्छा । बहुत है- सुतबहुन समेत सब।-तुलसी। कुछ नहीं है। (व्यंग्य)। बहुत हो जिए-रहने दो। बहुकंटक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) जवासा । (२) जाव । चल दो। तुम्हारा काम नहीं। हिंताल वृक्ष । क्रि० वि० अधिक परिमाण में। ज़्यादा । जैसे,—वह बहुत बहुकंटा-संशा सी० [सं०] कंटकारी। दौरा। बहुक-संशा पुं० [सं० ] () केकता। (२) आक । मदार । बहुतक*-वि० [हिं० बहुत+एक, अथवा स्वार्थे 'क' ] बहुत से । (३) पपीहा । चातक । बहुतेरे। 30-बहुतक बढ़ी अटारिन्ह निरखहि गगन बहुकन्या-संज्ञा स्त्री० [सं० ] घृतकुमारी। बिमान । तुलसी। बहुकर-संज्ञा पुं० [सं०] (१) झाडू देनेवाला । (२) ऊँट । बहुताँ-वि० [हिं० बहुत ] (1) बहुत । (२) बनियों की बोली में बहुकरी-संशा स्त्री० [सं०] झाडू । बुहारी। तीसरी तौल का नाम । (तीन की संख्या अशुभ समझी बहुकणिका-संज्ञा स्त्री [सं०] मसाकानी । ___ जाती है, इससे तौल की गिनती में जब बनिये तीन पर आते बहुकेतु-संज्ञा पुं० [सं०] एक पर्वत का नाम । (रामायण) ! तब यह शब्द कहते हैं। बहुगंध-संज्ञा पु० [सं०] (१) दारचीनी । (२) कुंदुरू। यहुता-संशा स्त्री० [सं०] बहुस्त । अधिकता । (३) पीतचंदन । । बहुताइत-संशा स्त्री० दे० "बहुतायत"। बहुगंधा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (1) जूही । (२) स्याहजीरा ।। बहुताई-संज्ञा स्त्री० [हिं० आई+आयत (प्रत्य० ] बहुतायत । बहुगव-संशा पुं० [सं०] एक पुरुवंशीय राजा । ( भागवत). अधिकता । ज्यादती। बहुगुड़ा-संशा स्त्रा० [सं० ] (१) कटकारी । भेंटकट या। (२) बटुतात-संज्ञा स्त्री० दे० "बहुतायत"। भूम्यानलको। बहुतायत-संज्ञा स्त्री० [हिं० बहुत+आयत (प्रत्य॰)] अधिकता । बहगुना-संज्ञा पुं० [हिं० बहु+गुण] चौड़े मुँह का एक गहरा ज़्यादती । कसरत ।। यरतन जिसके पेंदे और मुँह का घेरा बराबर होता है। बहुतिक्ता-संशा स्त्री० [सं०] काकमाची। इससे यात्रा आदि में कई काम ले सकते हैं। शायद इसी बहुतेरा-वि० [हिं० बहुत+एरा (प्रत्य॰)] [स्त्री० बहुतरी ] बहुत से इसे बहुगुना कहते हैं। सा। अधिक। बहुथि -संज्ञा पुं० [सं०] शाऊ का पेठ । क्रि० वि० बहुत । बहुत प्रकार से। बहुत परिमाण में । जैसे,- बहुश-वि० [सं०] बहुत बातें जाननेवाला । जानकार । मैंने बहुतेरा समझाया, पर उसने एक न मानी । बहुटनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बहूँटा ] बाँह पर पहनने का एक | बहुतेरे-वि० [हिं. बहुतेरे ] संख्या में अधिक । बहत से। अनेक गहना । छोटा बहूँटा । उ०-बहु नग लगे जराव की बहुत्व-संशा पुं० [सं०] आधिक्य । अधिकता। अँगिया भुला बहुटनी बलय संग को। -सूर । बहुत्वक-संज्ञा पुं० [सं०] भोजपत्र । बहुत-वि० [सं० बहुतर । अथवा सं० प्रभूत, प्रा० पहुत्त ] (१) एक बहुत्वच-संज्ञा पुं० [सं०] भोजपत्र । दो से अधिक । गिनती में ज़्यादा। अनेक । जैसे,-वहाँ बहुदर्शिता-संज्ञा स्त्री० [सं०] बहुशता । बहुत सी बातों की बहुत से आदमी गए। (२) जो परिमाण में अल्प या न्यून | समझ । न हो। जो मात्रा में अधिक हो। जैसे,—आज सुमने बहुत | बहुदर्शी-संशा पुं० [सं० रहुदर्शिन् ] जिसने बहुत कुछ देखा हो। पानी पिया। (३) आवश्यकता भर या उससे अधिक। जानकार । बहुश।