पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/११९

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२४१२ बहुमूल्य बहुदल-संज्ञा पुं० [सं०] चेना नाम का अन्न । जिसका पौधा अजवाइन का सा पर उससे छोटा होता है। बहुदला-संज्ञा स्त्री० [सं०] चंचु । चंच नाम का साग । एते सौंफ़ के से होते हैं और धनिये के फूलों के से पीले रंग बहुदुग्ध-संज्ञा पुं० [सं० ] गेहूँ। के गुच्छे लगते हैं। उँगली की तरह या पतली गाजर सी बहुदुग्धा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] थूहर का पेड़ । स्नुही। लंबी जड़ होती है। बीज भूरे हलके और हरसिंगार के बहुधर-संशा पुं० [सं०] शिव । महादेव । बीजों के से होते हैं तथा बाज़ार में "बनफली" या "हफू" बहुधा-क्रि० वि० [सं०] (१) बहुत प्रकार से । अनेक ढंग से। (हकीमी) के नाम से बिकते हैं। (२) यहुन करके । प्रायः । अकसर । अधिकतर अवसरों बहुफेना-संशा स्त्री० [सं०] (१) सातला । पीले दूधवाला पर। थूहर । (२) शंखाहुली। बहुधान्य-संज्ञा पुं० [सं०] साठ संवत्सरों में से बारहवाँ बहुबल-संज्ञा पुं० [सं० ] सिंह। संवस्पर। बहुयल्क-संज्ञा पुं० [सं०] पियासाल। बहुधार-संज्ञा पुं० [सं०] वज्र हीरक । एक प्रकार का हीरा । बहुबाहु-संशा पुं० [सं०] रावण । उ.--तजि जानकिहि कुसल बहुनाद-संज्ञा पुं० [सं०] शंख । गृह जाहू। नाहिँ त अस होइहि बहुबाहू ।-तुलसी। बहुपत्र-संज्ञा पुं० [सं०] (१) अभ्रक । अबरक । (२) प्याज । 'बहुबीज-संज्ञा पुं० [सं०] (१) बिजौरा नीबू । (२) बीज- पलांड। (३) वंशपत्र । (४) मुचकुंद का पेड़। (५) वाला केला । (३) शरीफा। पलाश। बहुभाषी-संशा पुं० [सं० बहुभाषिन् ] बहुत बोलनेवाला । बहुपत्रा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) तरुणीपुष्प वृक्ष । (२) बकवादी। शिवलिंगनी लता । (३) गोरकादुग्धी । दुधिया धाग्य। बहुभुजक्षेत्र-संज्ञा पुं० [सं०] रेखागणित में वह क्षेत्र जो चार (४) भूआँवला । (५) घीकुवार। (६) वृहती । (७) से अधिक रेस्याओं से घिरा हो। अतुका । पहादी नाम की लता जिम्मकी पत्तियाँ दवा के , बहुभुजा-संशा स्त्री० [सं०] दुर्गा । काम में आती हैं। बहुमंजरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] तुलसी । बहपत्रिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) भूम्यामलकी। (२) बहुमत-संज्ञा पुं० [सं०] (१) अलग अलग बहुत से मत । महाशतावरी । (३) मेथी । (४) बच । बहुत से लोगों की अलग अलग राय । जैसे,---बहुमत से बात बहुपत्री-संशा स्त्री० [सं०] (३) भूम्यामलकी। (२) लिंगिनी। बिगढ़ जाती है। (२) बहुत से लोगों की मिलकर (३) तुलसी का पौधा । (४) जतुका । (५) वृहती। एक राय । अधिकतर लोगों का एक मत । जैसे,—सभा (६) दुधिया घास। में बहुमत से यह प्रस्ताव पास हो गया। बहुपद्-संज्ञा पुं० दे० "बहुपाद"। बहुमल-संशा पुं० [सं०] सीसा नाम की धातु । बहुपाद-वि० [सं.] अधिक परोंवाला। बहुमूत्र--संज्ञा पुं० [सं०] एक रोग जिसमें रोगी को मूत्र बहुत संज्ञा पुं० वटवृक्ष । बरगद का पेड़। बड़ का पेड़। उतरता है। पेशाब अधिक आने का रोग। बहुपुत्र-संचा पुं० [सं०] (१) पाँचत्र प्रजापति का नाम । (२) विशेष—यह रोग दो प्रकार का होता है। एक में तो सप्तपणं। केवल जल का अंश ही बहुत उतरता है, दूसरे में मत्र बहुपुत्रिका-संशा खी० [सं०] स्कंद की अनुचरी। एक मातृका। के साथ शर्करा या मधु निकलता है। बहुमत्र शब्द से बहुपुष्प-संज्ञा पुं० [सं०] (१) पारिभद्र वृक्ष । फरहद का पेड़। प्रायः यही दूसरे प्रकार का रोग समझा जाता है । यह बहुत (२) नीम का पेड़। भयंकर रोग है और इसमें रोगी की आयु दिन दिन क्षीण बहुपुपिका-संशा मी० [सं० ] धातकी वृक्ष । धाय का पेस। .. होती चली जाती है । वैद्यक में यह प्रमेह के अंतर्गत माना बहुप्रज-वि० [सं०] जिसके बहुत संतान हों। गया है। विशेष—दे॰ "मधुमेह" । संशा पुं० (१) शूकर । सूअर । (२) मुंज का पौधा । बहुमूर्ति-संज्ञा पुं० [सं०] (१) बनकपास । (२) विष्णु । बहुफल-संज्ञा पुं० [सं०] (१) कदंब । (२) विकत । कटाई। (३) बहुरूपिया। बनभंटा। बहुमूल-संक्षा पुं० [सं०] (1) रामशर । सरकंटा । (२) बहुफला-संशा स्त्री० [सं०] (1) भूम्यामलकी। (२) खीरा । नरसल । (३) शोभांजन। शिग्न । सहिजन ।सैजना। प्रपुष । (३) क्षविका । एक प्रकार का यनभंटा। (४) बहुमूलक-संज्ञा पुं० [सं०] स्वस । उशीर । काकमाची (५)ोटा करेला । जंगली करेला । करेली। बहुमूला-संज्ञा स्त्री० [सं०] शतावरी । बहुफली-संशा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की जंगली गाजर । बहुमूल्य-वि० [सं० ] अधिक मूल्य का । क्रीमती। .. .