पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१२

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फलालोन २३०५ फल्गुनक फलालीन, फलालेन, फलालन-संज्ञा पुं० [अ० फ्लॉनल ] एक मजा पु० [म.] (१) प्रियंगु । (२) मूसली । (३) प्रकार का ऊनी वस्त्र जो बहुत कोमल और ढीली ढाली अमड़ा। बुनावट का होता है। संना to [हिं, फल+ई (अन्य ) छोटे छोटे पौधों में फलाम्लिफ-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की इमली की चटनी। लगनेवाले व लये और चिपटे फल जिनमें गृदा नहीं होता फलारा-संज्ञा पु० दे० "फलाहार"। बल्कि उसके स्थान पर एक पंक्ति में कई छोटे छोटे बीज फलारिष्ट-संज्ञा पुं० [सं०] चरक के अनुसार एक प्रकार का होते है। ये फल खाए नहीं जाते बल्कि करचे ही तरकारी अरिष्ट जो बवासीर के रोगी को दिया जाता है। आदि के काम में आते हैं। प्राय: सभी फलियाँ खाने में फलार्थी-संज्ञा पुं० [सं० फलार्थिन् ] वह जो फल की कामना बहुत पौष्टिक होती हैं और सूख जाने पर पशुओं के भी ___ करे । फलकामी। खाने के काम में आती हैं। जैसे, मटर की फली, म फलाशन-संज्ञा पु० [सं०] (१) वह जो फल खाता हो। फल. . की फली। खानेवाला । (२) तोता । फलीता-मंशा पु० [अ० फीला ] (1) बड़ आदि के वररोह या फलाशी-संज्ञा पुं० [सं० फलाशिन् ] वह जो फल ग्वाता हो। छाल आदि के रेशों से बटी हुई रम्सी का टुकदा जिममें फल खानेवाला। तोड़ेदार बंतक दागने के लिए आग लगाकर रखी जाती फलासंग-संज्ञा पुं० [सं०] वह आसक्ति जो किसी कार्य के फल है। पलीता । (२) बत्ती । (३) पत्ती डोर जो गोट लगाते पर हो। समय सुदरता के लिए कपड़े के भीतर किनारा छोड़ फलासब-संज्ञा पुं० [ मं0 ] चरक के अनुसार दारव, खजूर आदि कर ऊपर से वग्विन्या की जाती है। फलों के आसव जो २६ प्रकार के होते हैं। फलीभूत-वि०म० | लाभदायक । फलदायक । जिसका फल फलास्थि-संज्ञा पुं॰ [सं०] नारियल का पेड़ । या परिणाम निकले। जैसे, परिश्रम फलीभूत होना । फलाहार-संशा पु० [सं०] फलों का आहार । केवल फल फलंदा-मंशा पु० [सं० फलेंद्र ] एक प्रकार का जामुन जिसका खाना । फल-भोजन । फल, बड़ा, गूदेदार और मीठा होता है। इसके पेड़ और फलाहारी-संगा पुं० [सं० फलाहारिन् ] श्री फलाहारा ] फल- पत्ते भी जामुन से बड़े होते हैं। फरेंद। ग्वानेवाला । जो फल खाकर निर्वाह करता हो। पर्या-नंद । राजवृ । महाफला । सुरभिपया । महाजन्य । वि० [हिं० फलाहार+ई (प्रत्य०) । फलाहार संबंधी । फलेंद्र-संवा ए. [ मं० ] फलंदा। बड़ा जामुन । जिसमें अन न पड़ा हो। जो केवल फलों से बना हो। फलेपाकी-संडारा ( सं०] गंधमुम्ता । फलि-संज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार की मछली जिसका मांस । फलेपुष्पा-संज्ञा स्त्री० [सं० | गृमा । भारी, चिकना, बलकारक और स्वादिष्ट होता है। फलरुहा-मंज्ञा स्त्री० [ मं0 ] पार्शल या पायर का वृश्च । फलिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) एक प्रकार की निष्पावो जो फलोत्तमा-संक्षा स्त्री० [म.] (१) काकली दाम्व । (२) हरे रंग की होती है । (२) सरपत आदि के आगे का दुग्धिका । दुधिया । (३) त्रिफला । नुकीला भाग। फलोत्पत्ति-मंज्ञा त्रा० [ में ] आम का पेड़ । फलित-वि० [सं० ] (1) फला हुआ । (२) संपन्न । पूर्ण। फलोदक-संज्ञा पु. [ सं . ] एक यक्ष का नाम । यौ०-फलित ज्योतिष ज्योतिष का वह अंग जिसमे ग्रहो के योग से फलोदय-मशा पु० [सं०] (1) लाभ । (२) हर्प । (३) शुभाशुभ फल का निरूपण किया जाता है। विशेष-दे० 'ज्योतिष" देवलोक । मंशा पु० (१) वृक्ष । पेथ । (२) पत्थर फूल । छरीला । फलोद्भव-वि० [सं०] जो फल में उत्पन्न हुआ हो। फलितव्य-वि० [सं०] जो फलने के योग्य हो। फलने लायक । । फल्क-मंज। ए० [सं० । विपारितांग । फलिन-संज्ञा पु० [सं०] (१) वह वृक्ष जिसमें फल लगते हों। फल्गु-वि० सं० ] (१) अपार । जिसमें कुछ तस्व न हो। (२) (२) करहल । (३) श्योनाक वृक्ष । (४) रीठा । निरर्थक । व्यर्थ । (३) शुद्र । छोटा । (४) सामान्य । फलिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) प्रियंगु । (२) अग्निशिग्वा वृक्ष । साधारण। (३) मूसली । (४) इलायची। (५) मेंहदी। नवकरंज। संज्ञा स्त्री० [सं०] बिहार की एक नदी का नाम । गया तीर्थ (६) श्योनाक । (७) भायमाणा लता। (4) जल-पीपल । इसी नदी के किनारे है।। (९) दुधिया । दूधी। (१०) दाव का बना हुआ आयव। फल्गुन-संज्ञा पु० [मं० ] (१) अर्जुन । (२) फाल्गुन मास । फली-संज्ञा पुं० [सं० फालन् ] (१) श्योनाक । (२) कटहल । वि० फाल्गुनी नक्षत्र संबंधी । (३) वह वक्ष जिसमें फल लगते हों। | फल्गुनक-संज्ञा पुं० [सं० ] पुराणानुसार एक जाति का नाम ।