पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बाँड़ीवाज़ बाँधनू याँदीबाज़-संशा पुं० [हिं० बाड़ी+फा बाज़ ] (१) लाठीबाज़ । लोग एक ही नियम मे बाँध लिए गए। (७) मंत्र, संत्र एकड़ी से लड़नेवाला । (२) उपद्रवी । शरारती। आदि की सहायता से अथवा और किसी प्रकार प्रभाव, बाँदा-संशा पुं० [फा० बंदा, ] [ श्री. बाँदी ] सेवक । दास । शक्ति या गति आदि को रोकना । जैसे,—(क) वह देखते उ.----जहाँगीर वै चिस्ती निहकलंक जस चाँद । वै मखम ही साँप को बाँध देते हैं, उसे अपनी जगह से आगे बढ़ने जगत के हौं वहि घर को बाँद । —जायसी । ही नहीं देते। (ग्व) आजकल पानी नहीं बरसता, मानो बाँदर-संज्ञा पुं० [सं० वानर ] दे. बंदर । किसी ने बाँध दिया है। (८) प्रेम-पाश में बन्द करना । बाँदा-संज्ञा पुं० [सं० बंदाक ] (1) एक प्रकार की वनस्पति जो (९) नियत करना । मुकर करना । ऐसा करना जिससे ___ अन्य वृक्षों की शाखाओं पर उगकर पुष्ट होती है। कोई वस्तु किसी रूप में स्थिर रहे या कोई वात बराबर हुआ पर्या०-तरुभुक् । शिखरी । वृक्षरुहा । गंधमादनी । वृक्षा करे। जैसे, हद बाँधना | महसूल बांधना। महीना दनी । श्यामा। बाँधना । (१०) पानी का बहाव रोकने के लिये बाँध आदि (२) किसी वृक्ष पर उगी हुई कोई दूसरी वनस्पति ।। बनाना (११) चूर्ण आदि को हाथों से दबाकर सिंह के बाँदी-संशा श्री० [.. बंदा ] लौंडी। दापी । रूप में लाना । जैसे, लड्डू बाँधना । गोटी योधना। (१२) मुहा०—बाँदी का बेटा वा जना=(१) परम अधान । अत्यंत मकान आदि बनाना । जैसे, घर बांधना । (१३) किसी ___आज्ञाकारी 1 (२) तुच्छ । हीन । (३) वर्णसंकर । दोगला। विषय का, वर्णन आदि के लिये, ढाँचा या स्थूल रूप बाँद-संज्ञा पुं० [सं० बंदी ] बँधुवा । दी। उ०-पांखन फिर । तैयार करना । रचना के लिये सामग्री जोड़ना । उपक्रम फिर परा सो फाँद । उहि न सकहिं उरझे, भए बाद । करना । योजना करना । न्यास करना। बैठाना । बंदिश जायसी। करना । जैसे, रूपक बाँधना । मज़मून याँधना । (१४) बाँध-मंशा पुं० [हिं० बाँधना रोकना ] नदी या जलाशय आदि कम या व्यवस्था आदि ठीक करना । जैसे, कतार बाँधना । के किनारे मिट्टी पत्थर आदि का बनाया हुआ धुस्य । यह (१५) ठीक करना । दुरुस्त करना । मन में बैठाना । स्थिर पानी की बाढ़ आदि रोकने के लिये बनाया जाता है। करना । जैसे, मंसूबा बाँधना । धुस्स।बंद। उ०-देत फटिक जस लागै गढ़ा । बाँध संयो० किल-डालना ।—देना ।—लेना । उठाय पाहूँ गढ़ मढ़ा ।-जायगी। (१६) किसी प्रकार का अस्त्र या शस्त्र आदि साथ रखना। क्रि० प्र०—बांधना। जैसे, हथियार बाँधना । तलवार बांधना। बाँधना-क्रि० स० [सं० बंधन ] (1) एसी, तागे, कपड़े आदि की बाधनीपौरि-संज्ञा स्त्री० [हिं० बाँधना+पौरि ] पशुओं के बाँधने सहायता से किसी पदार्थ को बंधन में करना । रस्सी, डोरे का स्थान । पशुशाला । उ०—कविग्वाल चरायो लै आयो आदि की लपेट में इस प्रकार दबा रखना कि कहीं इधर . धरै फिरि बाँधनी-पौरि सुहावनी है।—बाल। उधर हट न सके । कसने या जकड़ने के लिये किसी बाँधनू-संगा पुं० [हिं० बाँधना ] (१) वह उपाय जो किसी कार्य चीज़ के घेरे में लाकर गाँठ देना । जैसे, हाथ पैर बाँधना को आरंभ करने से पहले सोचा या किया जाय । घोड़ा बांधना । (२) रस्सी, तागा आदि किसी वस्तु पहले से ठीक की हुई तरकीब या विचार | उपक्रम । में लपेटकर दृढ़ करना जिससे वह वस्तु अथवा रस्सी या मंसूबा । तागा इधर उधर हट या खरक न सके। कसने या जकड़ने के क्रि० प्र०-बाँधना। लिये रस्सी आदि लपेटकर उसमें गाँठ लगाना । जैसे, ररूपी (२) कोई बात होनेवाली मानकर पहले से ही उसके बाँधना । जंजीर बांधना। (३) कपड़े आदि के कोनों को संबंध में तरह तरह के विचार । ख्याली पुलाव । चारों ओर से बटोरकर और गाँठ देकर मिलाना जिसमें क्रि० प्र०बांधना। संपुट सा बन जाय । जैसे, गठरी बांधना। (४) चारों ओर (३) झूठा दोष । मिथ्या अभियोग । तोहमत । कलंक । (४) से बटोरे या लपेटे हुए कपड़े के भीतर करना । जैसे, यह कल्पित बात । मन से गढ़ी हुई बात । (५) कपड़े की धोती गठरी में बाँध लो। (५) कैद करना । पकड़कर रंगाई में वह बंधन जो रंगरेज़ लोग चुनरी या लहरिण- बंद करना । (६) नियम, प्रभाव, अधिकार, प्रतिज्ञा दार रंगाई आदि रंगने के पहले कपड़े में बाँधते हैं। या शपथ आदि की सहायता से मर्यादित रखना । ऐसा क्रि० प्र०-बांधना। प्रबंध या निश्चय कर देना जिससे किसी को किसी विशेष (६) चुनरी या और कोई ऐसा वस्त्र जो इस प्रकार बाँध प्रकार से व्यवहार करना पड़े। पाबंद करना । जैसे,--(क) कर रँगा गया हो। उ०—कह पदमाकर स्यौं बाँधनू वपन- आपको तो उन्होंने वचन लेकर बाँध लिया है । (ख) सब वारी या ब्रज-बसनवारी हो हरनधारी है। माकर ।