पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१२५

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बांधव २४१८ बाँसा बांधव-संज्ञा पुं० [सं०] (१) भाई। बधु । (२) नातेदार। आदि के आटे में मिलाकर खाये जाते हैं। यह एक विल- रिश्तेदार । (३) मित्र । दोस्त । क्षण बात है कि प्रायः अकाल के समय बाँल अधिकता बाँब-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] एक प्रकार की मछली जो साँप के से फूलते है और उस समय इन्हीं फूलों को खाकर सैकड़ों आकार की होती है। आदमी अपने प्राण बचाते हैं। भारत में बालों का फूलना बाँची-संज्ञा स्त्री० [सं० वल्मीक ] (1) दीमकों के रहने का बहुत ही अशुभ माना जाता है। बसों की पत्तियाँ पशुओं भीटा । दीमकों का बनाया हुआ मिट्टी का भीटा। बीठा । को चारे और औषध के रूप में खिलाई जाती है । तथाशीर (२) वह बिल जिसमें साँप रहता हो। साँप का बिल। . या वंशलोचन भी बाँसों से ही निकलता है। बाँमो-संज्ञा स्त्री० दे० "बाँबी"। मुहा०-बाँस पर चढ़ना=बदनाम होना । बाँस पर चढ़ाना=(१) बाँयाँ-वि० दे. "बार्या"। बदनाम करना । (२) बहुत बढ़ा देना । बहुत उन्नत या उच्च कर बाँबाँछोड़ी-संशा मी० [?] एक प्रकार का रखो लहसुनिया देना । (३) मिजाज बढ़ा देना। बहुत आदर करके धृष्ट या __ की जाति का होता है। घमंटी बना देना । बाँसों उछलना-बहुत अधिक प्रसन्न होना । बाँबारथी-संश पुं० [सं० गन ] वामन बौना । बहुत ठिंगना। खूब खुश होना। बाँस-संशा पुं० [म. वंश] (1) तृण जाति की एक प्रसिद्ध (२) एक नाप जो सवा तीन गज़ की होती है । लाठा। बनस्पति जिसके कांडों में थोड़ी थोड़ी दूर पर गाँठे होती हैं । (३) नाव रहेने की लगी । (४) पीठ के ब.च की हड्डी जो और गाँठों के बीच का स्थान प्राय: कुछ पोला होता है। गरदन से कार तक चली गई है। रीढ़ । (५) भाला। भारत में इसकी ठोस, पोली, मोटी, पतली, लंबी, छोटी : (डि.) आदि प्राय: २८ जातियाँ और १०० से ऊपर उपजातियाँ बाँसपूर-संज्ञा पुं० [हिं० बॉस+पूरना ] एक प्रकार का महीन होती है। जैसे, नरी, रिगल, कँटबाँस, बोरो, नलबाँस, कपया । उ०-चंदन ता जोखर दुख भारी । बाँसपूर झिल- देवयाँस, बाँसिनी, गोबिया, लतंग । (तिनवा), कोकवा, । मिल की पारी।-जायसी । खेजसई । (तीली), खाँग, तिरिया, करेल, भूली (पैवा), विशेष-कहते हैं कि यह इतना महीन होता था कि इसका बुलगी आदि। यह गरम देशों में अधिक होता है और एक थान बाँस के चोंगे में भरा गसकता था। बहुत से कामों में आता है। इससे घटाइयाँ, टोकरियाँ, पंखे, बाँसफल-संज्ञा पुं० [हिं० बाँस+फल ] एक प्रकार का धान जो कुरसियाँ, रहर, छप्पर, छड़ियों आदि अनेक चीजें बनती संयुक्त प्रांत में पैदा होता है। इसे "बौसी" भी कहते हैं। हैं। कहीं कहीं तो लोग केवल बाँस से ही सारा मकान बाँसली-संज्ञा स्त्री० [हिं० बाँस-+ला (प्रत्य॰)] (१) बांस की बना लेते और कहीं कहीं कच्चे बाँस के चोंगों में भर कर बनी हुई बजाने की बंशी। बाँसुरी । मुरली । (२) इसी चावल तक पका लेते हैं। इसके पतले रेशों से रस्सियाँ भी आकार प्रकार का पीतल लोहे आदि का बना हुआ जाने बनती है। इसके कोपलों का मुस्ख्या और अचार भी तैयार : का बाजा। बंशी । (३) एक प्रकार की जालीदार लंबी किया जाता है । इसके रेशों से मज़ब्त काग़ज़ बनता है। पतली थैली जिसमें रुपया पैसा रखा जाता है और जो कमर प्रायः एक ही स्थान पर बहुत से बाँस एक साथ एक में बाँधी जाती है। हिमयानी ।। झुरमुट में उत्पन्न होते हैं जिसे कोठी कहते हैं। गरम देशों यांसा-संज्ञा पुं० [हिं० बाँस ] बाँस का बना हुआ चोंगे के में प्राय: बहुत बड़े तथा मोटे और ठंडे देशों में छोटे और आकार का वह छोटा नल जो हल के साथ बँधा रहता पतले बाँस होते हैं। कुछ बाँस ऐसे होते है जो जड़ की है। इसी में बोने के लिए अन्न भरा रहता है जो नीचे और अधिक मोटे और सिरे की और पतले होते जाते हैं। की ओर से गिर कर खेत में पड़ता है । अरना । कुछ ऐसे भी होते हैं जिनकी मोटाई सब जगह बराबर रहती है । ऐसे बाँस प्रायः छबियाँ और छाते की इंडियाँ संज्ञा पुं० [सं० वंश-रीद ] नाक के ऊपर की हड्डी जो बनाने के काम में आते हैं। बहुत बड़े पास प्रायः सौ सौ दोनों नथनों के ऊपर बीचोबीच रहती है। हाथ तक लंबे होते हैं। कुछ छोटे बाँस लता के रूप महा०-बाँसा फिर जाना-नाक का टेढ़ा हो जाना ( जो मृत्यु- में भी होते हैं। सब प्रकार के श्वासों में एक प्रकार के फूल । काल के समीप होने का चिह माना जाता है।) लगते हैं। पर कुछ बाँस, विशेषतः बड़े बांस, फूलने के संज्ञा पुं० [सं० वंश ] पीठ की लंबी जी जो गरदन के पीछे प्राय: तुरंत नष्ट हो जाते हैं। बांस के फूल आकार नीचे से लेकर कमर तक रहती है। रीड़। में जई की बालों के समान होते हैं और उनमें छोटे छोटे संज्ञा पुं० [हिं० प्रिय+बॉस ] एक प्रकार का छोटा पौधा दाने होते है जो चावल कहलाते हैं और पीसकर ज्वार जिसमें चपई रंग के बहुत सुदर फूल लगते हैं। इसके बीज तार। ला