पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१२६

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बाँसागड़ा २४१९ बाँहमरोड़ बहुत छोटे और काले रंग के होते हैं। इसकी लकड़ी के लेना-शरण में आना । बाँह चढ़ाना-(१) किसी कोयलों से बारूद बनती है। पिषा-बासा। कार्य के करने के लिये उद्यत होना । कोई काम बाँसागड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० बॉस+गाना ] कुश्ती का एक पंच। करने के लिये तैयार होना। (२) लड़ने के लिये तैयार होना । बाँसिनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बाँस ] एक प्रकार का बाँस जिसे बरि बाँह देना सहायता देना। सहारा देना। मदद करना । याल, उना अथवा कुल्लुक भी कहते हैं। उ.-(क) नूपुर जनु मुनिवर कल हसन रचे नीब दै बाँसी-संशा थी० [हिं० बाँस+ई (प्रत्य॰)] (1) एक प्रकार ! बाह। तुलसी। (ख) कीन्ह सखा सुग्रीव प्रभु दीन्ह का मुलायम पतला बाँस जिसमे हुक्के के नैचे आदि बनते बाँह रघुबीर । तुलसी। बाँह बुलंद होना=(१) बल- हैं। (२) एक प्रकार का गेहूँ जिसकी बाल कुछ काली । वान् या साहसी होना । (२) हृदय उदार होना । दान देने के होती है। (३) एक प्रकार का धान जिसका चावल बहुत लिये उठनेवाला हाथ होना। सुगंधित, मुलायम और स्वादिष्ट होता है। यह संयुक्त प्रांत : यौ०-बोह-बोल-रक्षा करने वा महायता देने का वचन । में अधिकता से होता है । इसे बॉम्पकल भी कहते हैं। (४) सहायता करने का वादा । उ.-भाई को न मोह छोह एक प्रकार की घास । इसके डंठल मोटे और को होते हैं, सीता को न तुलसी कहत मैं विभीषण की कछू न सबील इसीलिए इपे पशु कम खाते हैं। (५) एक प्रकार का की । लाज बाँह-बोल की, नेवाजे की संभार सार, साहेब पक्षी। (६) एक प्रकार का पत्थर जिसका रंग सफेदी न राम सो, बलैया लीजै सील की।—तुलसी। लिए पीला होता है और जो बड़ी बी सिलों के रूप में (२) बल । शक्ति । भुजबल । उ०-मैन महीप सिंगार- पाया जाता है। पुरी निज बाँह बसाई है मध्य ससी के। (३) सहायक । बाँसुरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बास ] बाँस का बना हुआ प्रसिद्ध मददगार । बाजा जो मुँह से फेंक कर बजाया जाता है। यह बाजा मुहा०-बाँह टूटना सहायक या रक्षक आदि का न रह जाना । प्राय: डेढ़ बालिइत लंबा होता है और इसका एक सिरा (४) भरोला । आसरा । सहारा । शरण । उ०—(क) तेरी बाँस की गाँठ के कारण बंद रहता है। बंद सिरे की ओर बाँह बसत बिसोक लोकाल सब, तेरो नाम लिए रहे सात स्वरों के लिये सात छेद होते हैं और दूसरी ओर आरति न काहु की। -तुलसी। (ख) तिनकी न काम बजाने के लिए एक विशेष प्रकार से तैयार किया हुआ सकै चापि छाँह । तुलसी जे बसे रघुबीर बाँह।-तुलसी। छेद होता है। उसी छेदवाले सिरे को मुँह में लेकर पूँकते (५) एक प्रकार की कसरत जो दो आदमी मिलकर है और स्वरोंवाले छेदों पर उँगलियाँ रख कर उन्हें बंद कर करते हैं। इसमें बारी बारी से हर एक आदमी अपनी देते हैं। जब जो स्वर निकालना होता है तब उस स्वरवाले । बाँह दूसरे के कंधे पर रखता है, और वह उसे अपनी बाह छेद पर की उँगली उठा लेते हैं। इसी प्रकार बार बार । के ज़ोर से वहाँ से हटाता है। इसमें बाहों पर ज़ोर पड़ता उँगलियाँ रख और उठा कर बजाते हैं। मुरली । बंशी। और उनमें बल आता है। (१) कुरते, कमीज़, अंगे, बाँसली। कोट आदि में लगा हुआ वह मोहरीदार टुकड़ा जिसमें बाँसुली-संशा स्त्री० [हिं० बाँस ] (१) एक प्रकार की घास जो बाँह डाली जाती है। आस्तीन । जैसे,—इस कुरते की अंतर्वेद में होती है। फसल के लिये यह बड़ी ही हानिकारक बाँह कुछ छोटी हो गई है। होती है। इसका नाश करना बहुत ही कठिन होता है। संज्ञा पुं० दे० "बाह" या "बाही"। (२) दे. “बाँसुरी"।

बाँहतोड़-संज्ञा पुं० [हिं०] कुश्ती का एक च । इसमें जब गर-

बाँसुलीकंद-संज्ञा पुं० [हिं० वाँमुली+सं० कंद ] एक प्रकार का दन पर जोर के दोनों हाथ आते हैं तब उन हाथों पर से जंगली सूरन या जमीकंद जो गले में बहुत अधिक लगता अपना एक हाथ उलट कर उसकी जाँच में अड़ा देते हैं और है और प्रायः इसी के कारण खाने के योग्य नहीं होता। ' दूसरा हाथ उसकी बगल से ले जाकर गरदन पर से खुमाते बाँह-संशा स्त्री० [सं० बाहु ] (1) कंधे से निकल कर देश के रूप हुए उसकी पीठ पर ले जाते हैं। फिर उसे टॉग से मार में गया हुआ अंग जिसके छोर पर हथेली या पंजा लगा कर गिरा देते हैं। होता है । भुजा । हाथ । बाहु।। बाँहमरोड़-संज्ञा स्त्री० [हिं०] कुश्ती का पेंच। इसमें जब जोड़ मुहा०-बांह गहना या पकड़ना=(१) किसी की सहायता का हाथ कंधे पर आता है तब अपना हाम उसको बगल करने के लिये हाथ बढ़ाना । सहारा देना। हर तरह से मदद में ले जा कर उसकी उँगलियाँ पकड़ कर मरोड़ देते हैं देने के लिये तैयार होना। अपनाना । (२) विवाद करना । और दूसरे हाथ से उसकी कोहनी पकड़कर टॉग से मारते पाणिग्रहण करना । शादी करना । बाँह की छाँह है जिससे जोर गिर जाता है। यह पेंच उसी समय किया बाँहमरा कंधे पर लिया कर