पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४२३ बाज़ी उससे कुछ पहले अर्थात् जाड़े के आरम्भ में काटी जाती है। मुहा०—बाज़ार करना-चीजें खरीदने के लिये बाजार जाना । इसके खेतों में खाद देने या सिंचाई करने की विशेष आवश्य. बाजार गर्म होना=(१) बाजार में चीजों या ग्राहकों आदि कता नहीं होती । इसके लिये पहले तीन चार बार ज़मीन की अधिकता होना । खूब लेन देन या खरीद विक्री होना । जोत दी जाती है और तब बीज बो दिए जाते हैं । एकाध ! (२) खब काम चलना । काम जोरों पर होना । जैसे,—आज वार निराई करना अवश्य आवश्यक होता है। इसके लिये कल गिरिपसारियों का बाजार गर्म है। बाजार तेज़ होना- किसी बहुत अच्छी जमीन की आवश्यकता नहीं होती और (१) बाजार में किसी चीज की माँग बहुत अधिक होना। यह साधारण से साधारण जमीन में भी प्रायः अच्छी तरह गाहकों की अधिकता होना । (२) किसी चीज का मूल्य वृद्धि होता है। यहाँ तक कि राजपुताने की बलुई भूमि में भी पर होना । (३) काम जोरो पर होना । खब काम चलना । यह अधिकता से होता है। गुजरात आदि देशों में तो ! बाज़ार मंद होना=(१) बाजार में किसी चीज की मांग असटी बरारी रूई बोने से पहले ज़मीन तैयार करने के : कम होना । ग्राहकों का कमी होना । (२) किसी पदार्थ के लिये भी इसे छोते हैं। बाजरे के दानों का आटा पीसकर । मूल्य में निरंतर ह्रास होना । दाम घटना । (३) कारबार कम और उसकी रोटी बनाकर खाई जाती है। इसकी रोटी चलना । बाज़ार भाव-वह मूल्य जिस पर कोई चीज बाजार बहुत ही बलवईक और पुष्टिकारक मानी जाती है। कुछ में मिलती या बिकनी हो । प्रचलित मूल्य । बाज़ार लाना लोग दानों को योंही उबाल कर और उसमें नमक मिर्च बहुत सी चीजों का इधर उधर ढेर लगना । बहुत सी चीजों आदि डालकर खाते हैं। इस रूप में इसे "खियड़ी" कहते का यों ही सामने रखा होना । बाज़ार लगाना-चीजों को हैं। कहीं कहीं लोग इसे पशुओं के चारे के लिये ही बोते इधर उधर फैला देना । अटाला लगाना । है। वैद्यक में यह बादी, गरम, रूखा, अग्निदीपक, पित्त को (२) वह स्थान जहाँ किमी निश्चित समय, बार, तिथि कुपित करनेवाला, देर में पचनेवाला, कांतिजनक, बलबईक । या अवसर आदि पर सब तरह की दूकाने रगती हों। और स्त्रियों के काम को बढ़ानेवाला माना गया है। हाट । ठ। जोधरिया । बाजवा । मुहा०-बाज़ार लाना=बाजार में दुकानों का खुलना । वाजहर-संज्ञा पुं० दे. “जहरमोरा ()"। बाजारी-वि० [फा०] (1) बाज़ार-संबंधी। बाजार का । (२) बाजा-संज्ञा पुं० [सं० वाद्य ] कोई ऐसा यंत्र जो गाने के साथ | मामूली । साधारण । जो बहुत अच्छा न हो। (३) बाज़ार अथवा यों ही, स्वर (विशेषतः राग रागिनी ) उत्पन्न में इधर उधर फिरनेवाला । मर्यादा रहित । जैसे, करने अथवा ताल देने के लिये यजाया जाता हो । बजाने बाज़ारी लौंडा । (४) अशिष्ट । जैसे, बाज़ारी बोली, का यंत्र । बाघ। बाज़ारी प्रयोग। विशेष साधारणतः बाजे दो प्रकार के होते है। एक तो ये यौ०-बाज़ारी औरत वेश्या । रडा । जिनमें से स्वर या राग-रागिनियाँ आदि निकलती है। बाज़ारु-वि० दे० "बाजारी"। जैसे, बीन, सितार, सारंगी, हारमोनियम, बाँसुरी आदि । वाजि -संज्ञा पुं० [सं० वाजिन् ] (1) घोड़ा । (२) बाण । और दूसरे वे जिनका उपयोग केवल ताल देने में होता (३) पक्षी । (५) अडूसा। है । जैसे, मृदंग, तबला, ढोल, मजीरा आदि । विशेष- वि० चलनेवाला। दे. "वाय"। बाज़ी-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] (1) दो व्यक्तियों या दलों में ऐसी क्रि० प्र०-बजना । -बजाना । प्रतिज्ञा जिसके अनुसार यह निश्चित हो कि अमुक बात होने यौ०-बाजागाजा-अनेक प्रकार के रजते हुए बाजों का । था न होने पर हम तुम को इतना धन देंगे अथवा तुमसे समूह। इतना धन लेंगे। ऐसी शर्त जिसमें हार जीत के अनुसार बाजाब्ता-क्रि० वि० [ फा ] जाब्ते के साथ । नियमानुसार । कुछ लेन-देन भी हो। शर्त । दाँव । बदान । कायदे के मुताबिक । जैसे,-बाज़ाब्ता दरखास्त दो। क्रि० प्र०--बदना ।—लगना।—लगाना । वि. जो जास्ते के साथ हो। जो नियमानुकूल हो। जैसे,- मुहा०-बाजी मारना=नाजी जीतना । दाँव जीतना । बाज़ी अभी बाज़ान्ता नकल नहीं मिली है। ले जाना-किसी बात में आगे बढ़ जाना । श्रेष्ठ ठहरना । बाज़ार-संशा पुं० [फा०] (1) वह स्थान जहाँ अनेक प्रकार के (२) आदि से अंत तक कोई ऐसा पूरा खेल जिसमें शर्त पदार्थों की तुकाने हों। वह जगह जहाँ सब तरह की या दांव लगा हो । जैसे,—दो बाजी ताश हो जाप, तो चीज़ों की, अथवा किसी एक ही तरह की चीज़ की बहुत Bimadलादी के खेलने का समय सी दूकानें हों। Host Graduate Caller of A t hammar से भाता है। दांव