पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१३७

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बातकंटक २४३० बादना me- मुहा०—बात तक पहुँचना-दे. "बात पाना"। बात पाना करि लंक न जारी । (ख) बातुल भूत-घिबस मतवारे । ते असल मतलब समझ जाना । नहिं बोलहिं बधन बिधारे। तुलसी। (२६) काम । कार्य । कर्म । आचरण । व्यवहार । जैसे,---- बालूनिया-वि० दे० "बातूनी"। (क) उसे हराना कोई बड़ी बात नहीं। (ख) एक बात | बातूनी-वि० [हिं० बात+ऊनी (प्रत्य॰)] बकवादी । बहुत करो तो वह यहाँ से चला जाय । (ग) कोई बात ऐसी न | बोलने या घात करनेवाला। करो जिससे उन्हें दुःख पहुँचे। (२७) संबंध । लगाव । वाथू-संज्ञा पुं० [सं० वस्तुक, प्रा० बाथुअ] बथुआ नाम का साग। तअल्लुक्क। जैसे, उन दोनों के बीच ज़रूर कोई बात बाद-संज्ञा पुं० [सं० वाद ] (1) यहस । तर्फ। खंडन मंडन है । (२८) स्वभाव । गुण । प्रकृति । लक्षण । जैसे,—उसमें की बात चीत । उ०—सजल कठौता भरि जल कहत बहुत सी बुरी बातें हैं। (२९) वस्तु । पदार्थ । चीज़ । निषाद। चहु नाव पग धोह करहु जनि बाद।---तुलसी। विषय । जैसे,—उन्हें कमी किस बात की है जो दूसरों (२) विवाद । झगड़ा । हुजत । उ०-(क) गौतम की के यहाँ माँगने जायेंगे। उ०—कितक बात यह धनुप रुद्र घरनी ज्यों तरनी तरंगी मेरी, प्रभु सो विवाद के के बाद को सकल विश्व कर लहों । आशा पाय देव रघुपति की न बढ़ायहीं। तुलसी । (ख) जे अबूझ ते बाद बढ़ावें।- छिनक माँझ हठि गैहों।—सूर । (३०) बेचनेवाली वस्तु विश्राम का मूल्य कथन । दाम । मोल । जैसे,—यहाँ तो एक बात मुहा०—याद बढ़ाना-झगड़ा बढ़ाना। होती है। लीजिए या न लीजिए । (३१) उचित पथ या (३) नाना प्रकार के तर्क वितर्क द्वारा बात का विस्तार । उपाय । कर्तव्य । जैसे,—तुम्हारे लिए तो अब यही बात झकझक । तूल कलामी। उ.--त्यों पदमाकर वेद पुरान है कि जाकर उनसे क्षमा मांगो । उ.-पप्यो सोच भारी पढ़यो, पदि के बहु बाद बढ़ायो । पभाकर । (४) नृप निपट खिसानो भयो गयो उठि "सागर में बूडौं" यही प्रतिझा । शर्त । बाज़ी । होडाहोड़ी। उ०-कूदत करि बात है।-प्रियादास। रघुनाथ-सपथ उपरा उपरी करि बाद।-तुलसी। बातकंटक-संज्ञा पुं० [सं० वातकंटक ] एक वायु रोग। मुहा०—बाद मेलना-शर्त बदना । बाजी लगाना । उ.- बातचीत-संशा स्त्री० [हिं० बात+चिंतन ] दो या कई मनुष्यों के | बाद मेलि के खेल पसारा । हार देय जो खेलत बीच कथोपकथन । दो या कई आदमियों का एक दूसरे हारा ।—जायसी। से कहना सुनना । वार्तालाप । अव्य० [सं० वाद; हिं. वादि वाद करके, हठ करके, व्यर्थ ] मुहा०-यातचीत चलना, या ठिबना-दे. “बात (२)"। व्यर्थ । निष्प्रयोजन । फिज़ल । बिना मतलब । उ-भए बात-वि० [सं० वातल ] वायु युक्त । वायुवाला । बटाऊ नेह तजि बाद बकति बेकाज । अब अलि देत बातप-संज्ञा पुं० [सं० वातप] हिरन । (अनेकार्थ) उराहनो उर उपजति अति लाज ।—बिहारी। बातफरोश-सं पुं० [हिं० बात+फरोश] (1) बात बनानेवाला । अन्य० [अ० } पश्चात् । अनंतर । पीछे। बात गढ़नेवाला । (२) झूठ मूठ इधर उधर की बात वि० (१) अलग किया हुआ । छोड़ा हुआ । जैसे,- कहनेवाला। ख़र्चा बाद देकर तुम्हारा कितना रुपया निकलता है ? बातर-संज्ञा पु० | देश० ] पंजाब में धान बोने का एक ढंग। क्रि० प्र०—करना ।—देना । वातलारोग-संज्ञा पुं० [सं०] एक योनिरोग जिसमें सुई चुभने (२) दस्तूरी या कमीशन जो दाम में से काटा जाय । की सी पीड़ा होती है। (३) अतिरिक्त । विवाय । (४) असल से अधिक दाम वाती-संवा स्त्री० [सं० वी ] (8) लंबी सलाई के आकार में जो व्यापारी माल पर लिख देते और बाम बताते समय बटी हुई रुई या कपड़ा । (२) कपड़े या रुई को घटकर घटा देते हैं। संज्ञा पुं० [फा०] बात । हवा । बनाई हुई सलाई जो तेल में डुबा कर दिया जलाने के यौ०—बादनुमा । काम में आती है। बत्ती । उ०—यही सराव सप्तसागर | बादकाकुल-संज्ञा पुं० [सं० ] ताल के मुख्य ६० भेदों में से घृत याती शैल धनी।-सूर । (ख) परम प्रकास रूप दिन एक भेद । उ०—प्लुतौ लघु चतुष्कच मौनौ द्रुत युगं लघुः। राती । नहि कछु चहिय दिया घृत बाती । तुलसी। लघु चतुष्क बिना शदं तालस्याद्वादकाकुलः ।-संगीत (३) वह लकड़ी जो पान के खेत के ऊपर बिछा कर छप्पर दामोदर । छाते हैं। बादना-क्रि० [सं० वाद+ना (प्रत्य॰)] (1) बकवाद करना । बातुल-वि० [सं० वातुल ] (1) पागल । सनकी। चौरहा।। तर्क वितर्क करना । (२) झगड़ा करना । हुजत करना । उ.-(क) बातुल मातुल की न सुनी सिष का तुलसी उ.--(क) बादहि सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह ते कछु